राज्य में सरकारी कामकाज और प्रशासनिक व्यवस्थाओं में जल्द ही बड़े बदलाव होंगे। डीसी के अिधकार घटेंगे तो निचले अफसरों का ‘पावर’ बढ़ाने की तैयारी है। सचिवों के अतिरक्त प्रभार भी कम होंगे। सचिव,डीसी या मंत्री से जुड़े अधिकारियों के लिए फाइलों के निस्तारण की समय सीमा तय होगी। राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को इससे छूट रहेगी। सीएम हेमंत सोरेन ने पूर्व विकास आयुक्त डॉ. देवाशीष गुप्ता की अध्यक्षता में बनी राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों को लागू करने पर सैद्धांतिक सहमति दे दी है।
अब मुख्य सचिव सुखदेव सिंह विभागीय प्रधानों के साथ बैठक करेंगे। इसमें आयोग की अहम सिफारिशें लागू करने की रूपरेखा बनेगी। राज्य में सरकार बनते ही मार्च 2020 में इस आयोग का गठन किया गया था, जिसे प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार का दायित्व सौंपा गया था। आयोग ने जनवरी 2022 में रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे अब सीएम की सहमति मिल गई है। ये बदलाव इसी साल लागू होने की उम्मीद है।
क्या है प्रशासनिक सुधार आयोग की अहम सिफारिशें
1. डीसी के पास 116 कमेटियों का है दायित्व, इससे अटक जाते हैं काम
आयोग ने कहा है कि डीसी के पास अपने मूल दायित्व के अलावा 116 कमेटियों के अध्यक्ष या सदस्य का दायित्व है। ऐसे में यह स्पष्ट ही नहीं रहता कि उसे करना क्या है और क्या नहीं। इसी कारण जिलों में बहुत से काम नहीं हो पाते। जबकि यही डीसी जब केंद्र में जाते हैं तो तेजी से बेहतर काम करते हैं, क्योंकि वहां सब कुछ स्पष्ट रहता है। इसलिए इनका दायित्व घटाने की जरूरत है। इसके विपरीत एडिशनल कलेक्टर और एसडीओ जैसे अफसरों के पास कम दायित्व है, इसलिए इसे बढ़ाने की जरूरत है।
2. स्थानीय निकाय को मजबूत करें, डिलीवरी-सर्विस का काम सौंपे
रिपोर्ट में डिलीवरी और सर्विस को सरकार से हटाकर स्थानीय निकायों के हवाले करने की सिफारिश की गई है। कहा गया है कि सरकार खुद ऐसे काम न कर स्थानीय निकायों को मजबूत करे। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र के ज्यादा से ज्यादा काम उससे कराए। केरल का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि वहां 1984 से ही स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था स्थानीय निकाय के जिम्मे है।
3. सचिव समेत बड़े अफसरों को अधिक अतिरिक्त प्रभार न दें
रिपोर्ट में सचिव समेत बड़े अधिकारियों को अधिक विभागों का अतिरिक्त प्रभार देने से बचने की सलाह दी गई है। कहा है कि एक अधिकारी को अधिक प्रभार देने से वे अपने मूल दायित्व को भी पूरा नहीं कर पाते हैं। दूसरे विभागों का भी काम प्रभावित होता है। आयोग ने हर स्तर पर अधिकारियों और कर्मचारियों के काम और दायित्व काे नए सिरे से तय करने की सिफारिश की है। क्योंकि फैसला लेने में देरी होने पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है और श्रम भी बेकार चला जाता है।
4. मंत्री के ओएसडी और निजी सचिव की जवाबदेही तय हो
मंत्री कोषांग को जवाबदेह बनाने के लिए कार्यपालिका नियमावली में भी संशोधन की जरूरत बताई गई है। कहा है कि फाइलों को लेकर मंत्री के ओएसडी व निजी सचिव की जवाबदेही तय हो। प्रारूप भी सुझाया है-एक माह में कितनी फाइलें आईं। कितने का निपटारा हुआ और कितने लंबित हैं। इसमें कितने नीतिगत और कितने अन्य मामले हैं। यह रिपोर्ट हर माह राज्यपाल और सीएम के प्रधान सचिव को भेजने की व्यवस्था हो।
और ये सुझाव भी दिए
इसलिए बदलाव...
न मैनपावर, न जवाबदेही, विकास पर पड़ रहा असर
राज्य में कामकाज की स्थिति संतोषजनक नहीं है। बगैर दबाव के काम नहीं हो पाता है। मैनपावर की कमी के साथ-साथ जवाबदेही सुनिश्चित न होने का असर विकास के कामों पर भी पड़ता है। इसी को देखते हुए प्रशासनिक प्रणाली की दक्षता में सुधार और कल्याणकारी राज्य के लिए आयोग को आवश्यक अनुशंसा करने को कहा गया था। हालात यह है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 खत्म होने में सिर्फ 17 दिन बचे हैं। विकास का हाल देखें तो 15 फरवरी तक विकास के 56 प्रतिशत पैसे ही खर्च हो पाए हैं। राज्य का योजना बजट 57,259 करोड़ रुपए हैं, जिनमें से 32,200 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। अन्य क्षेत्रों में भी गवर्नेंस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
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