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एकीकृत बिहार में योजना मंत्री रहे 90 वर्षीय बंदी उरांव का सोमवार देर रात निधन हो गया। वे झारखंड कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता और सिसई के पूर्व विधायक थे। रांची के हेहल बगीचा स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। बुधवार सुबह 10:30 बजे उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस भवन लाया जाएगा। बुधवार को ही गुमला के भरनो प्रखंड के दतिया गांव में अंत्येष्टि होगी। उनके पुत्र अरुण उरांव भी आईपीएस अधिकारी रह चुके हैं, जो अभी भाजपा में हैं। पुत्रवधु गीताश्री उरांव कांग्रेस नेता हैं, जो पूर्व शिक्षा मंत्री रही हैं।
पेसा कानून के लिए छाेड़ दी थी एसपी की नाैकरी, कहते थे- फुटबॉल से समाज हो सकता है गोलबंद
जैसा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव ने बताया
बंदी उरांव एक पुलिस अधिकारी के रूप में मेरे गुरु थे। उनकी लिखी फाइलों को पढ़कर मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला था। बहुत ही तार्किक और स्पष्ट रूप से वे फाइल में लिखते थे। जब वे चाईबासा में एसपी थे, तो मैंने उनसे चार्ज लिया था। चाईबासा के बारे में उन्होंने मुझे जितना समझाया था, उसके आधार पर मैंने वहां सेवा की और काफी सफल रहा। वे मेरे मामा ससुर भी थे, लेकिन नाैकरी के बीच रिश्ते काे अहमियत नहीं देते थे। आईपीएस पुलिस अफसर के रूप में किसी घटना की तह तक जाते थे और उस घटना की मूल वजह पता करते थे, ताकि भटके लाेगाें काे जागरूक कर सकें और ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हाे। हमेशा कहते थे, लोगों के मित्र और अभिभावक के रूप में रहोगे तो सच्चे पुलिस अधिकारी बन पाओगे।
फुटबॉल उनका पसंदीदा खेल था। वे कहा करते थे कि इस खेल के माध्यम से पूरे समाज को गोलबंद किया जा सकता है। ग्रामीण इलाकाें में युवाओं काे एकजुट करने के लिए फुटबॉल प्रतियाेगिता कराया करते थे। एक बार भूरिया कमेटी के सदस्य बीडी शर्मा रांची आए ताे उन्हाेंने मुझे बुलाकर मिलवाया था। उस दाैरान शर्मा जी द्वारा किए गए कामाें की विस्तृत चर्चा की थी। मुझे लगा कि आदिवासियाें के प्रति और साेचने की जरूरत है। समाजसेवा के लिए 1980 में गिरिडीह जिले का एसपी रहते हुए उन्होंने नौकरी छाेड़ दी। उस समय आदिवासियाें की जमीन बचाने की उनकी मुहिम के कारण की बड़े लाेगाें के विराेध का भी सामना करना पड़ा। इससे पूरे देश के आदिवासियों के बीच उनकी अलग पहचान बनी। वे कहते थे कि सरकार की पहली प्राथमिकता पेसा कानून लागू करना होना चाहिए। उन्होंने आदिवासी परंपरा और स्वशासन को लिपिबद्ध किया। ग्राम सभा की अवधारणा का सृजन किया, तो दूसरी तरफ पेसा कानून लागू करने को लंबा संघर्ष भी किया। 1996 में जब पेसा कानून पास हो गया तो उन्होंने गांव-गांव में इसका प्रचार-प्रसार किया।
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