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CM सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर अब भी संशय:गवर्नर बोले-लिफाफा चिपक गया है...खुल नहीं रहा, एक महीने पहले चुनाव आयोग ने भेजा था लेटर

रांची9 महीने पहले
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झारखंड के CM हेमंत सोरेन की विधायकी पर अभी भी संशय बना हुआ है। इस पर राज्यपाल का कहना है कि लिफाफा इतना चिपका हुआ है कि खुल नहीं रहा है। शुक्रवार को वे राजधानी रांची में टीबी उन्मूलन अभियान को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे। उसी समय मीडिया ने पूछा कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में आपके पास जो लिफाफा आया है, वह कब खुलेगा? इसी पर राज्यपाल ने कहा कि लिफाफा इतना जोर से चिपका है कि खुल ही नहीं रहा है।

दरअसल, हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सभी को राज्यपाल रमेश बैस के फैसले का इंतजार है। चुनाव आयोग का फैसला रहस्य बना हुआ है। जब तक राज्यपाल फैसले का खुलासा नहीं करते तब तक सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी पर संशय बना रहेगा। इसी पर अब राज्यपाल ने ये बयान दिया है। वहीं राज्यपाल के इस बयान पर हेल्थ मिनिस्टर बन्ना गुप्ता ने बयान देने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि इस पर कुछ नहीं कहेंगे।

वहीं हेमंत सोरेन के बाद उनके भाई और दुमका से विधायक बसंत सोरेन की विधायकी का मामला भी राजभवन में लटका है। सूत्रों की माने तो ECI ने झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को बसंत सोरेन की अयोग्यता के संबंध में को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के 9A के तहत अपनी राय भेज दी है। अब राज्यपाल को चुनाव आयोग की राय पर फैसला लेना है।

क्या है पूरा मामला

रांची के अनगड़ा में सीएम हेमंत सोरेन के पत्थर खनन लीज मामले को लेकर बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल से शिकायत की थी। इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बताते हुए हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता समाप्त करने की मांग की गई थी।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम रघुवर दास ने इस साल 10 फरवरी को सीएम हेमंत सोरेन पर पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। उन्होंने डॉक्यूमेंट्स दिखाते हुए दावा किया कि हेमंत ने अनगड़ा में अपने नाम से पत्थर खदान की लीज ली है और चुनाव आयोग को दिए शपथ पत्र में यह जानकारी छिपाई है।

चूंकि सीएम सरकारी सेवक हैं, इसलिए लीज लेना गैरकानूनी है। साथ ही यह पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव एक्ट 1951 का उल्लंघन है। बीजेपी नेताओं ने 11 फरवरी को राज्यपाल से मिलकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की मांग की।

इसके बाद राज्यपाल रमेश बैस ने शिकायत को चुनाव आयोग को भेजकर सुझाव मांगा। चुनाव आयोग ने इसकी सुनवाई शुरू कर शिकायतकर्ता बीजेपी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर अपना-अपना पक्ष रखने के लिए कहा। चुनाव आयोग ने इसी महीने अपनी सुनवाई पूरी की। अब चर्चा है कि आयोग ने अपना सुझाव राज्यपाल को भेज दिया है। इस प्रकार गेंद अब वापस राज्यपाल की कोर्ट में है।

पहले बात उन 3 बड़े किरदार की, जिनके कारण सोरेन संकट में आए

  • रघुवर दास: 10 फरवरी को पहली बार लगाए थे आरोप: भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम रघुवर दास ने 10 फरवरी को सीएम हेमंत सोरेन पर पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। उन्होंने मीडिया को दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि हेमंत ने अनगड़ा में अपने नाम से पत्थर खदान की लीज ली है और चुनाव आयोग को दिए शपथ पत्र में यह जानकारी छिपाई है। चूंकि सीएम सरकारी सेवक हैं, इसलिए लीज लेना गैरकानूनी है।
  • बाबूलाल मरांडी: दस्तावेज के साथ राज्यपाल से की शिकायत: भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास और सांसद दीपक प्रकाश ने 11 फरवरी को राज्यपाल से शिकायत की। लीज के दस्तावेज सौंपते हुए हेमंत की विधायकी रद्द करने की मांग की। शपथ पत्र में जानकारी छिपाने का आरोप भी लगाया।
  • निशिकांत दुबे: पीएम और गृह मंत्री तक मामले को पहुंचाया: झामुमो की संथाल की राजनीति और सांसद निशिकांत दुबे की टकराहट भी बड़ी वजह बनी। अवैध खनन पर मुखरता से उन्होंने हेमंत सोरेन पर लगातार निशाना साधा। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले को भी उन्होंने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री तक पहुंचाया।

अगर इलेक्शन कमीशन की अनुशंसा में CM हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन की विधानसभा निरस्त रद्द करने की सिफारिश की है और उस पर राज्यपाल फैसला लेते हैं तो फिर सरकार पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। बहुमत के लिए 41 विधायकों की जरूरत पड़ती है, जबकि पांच दिन पहले सोरेन सरकार को विश्वास मत में 48 विधायकों का समर्थन मिला था। दोनों भाइयों की सदस्यता जाती है तो भी 46 विधायक रहेंगे। वहीं विपक्ष के पास 29 विधायक हैं।

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