सामने आ सकते हैं कई रहस्य:पौधों में जीवन की खोज करने वाले वैज्ञानिक जेसी बोस की तिजोरी गिरिडीह में 86 साल से बंद

रांची14 दिन पहले
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पारसनाथ में भौतिकी, जीवविज्ञान और वनस्पति विज्ञान पर कर रहे थे रिसर्च, 1937 में हुआ था निधन - Dainik Bhaskar
पारसनाथ में भौतिकी, जीवविज्ञान और वनस्पति विज्ञान पर कर रहे थे रिसर्च, 1937 में हुआ था निधन

महान वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस की तिजोरी का राज कब खुलेगा। यह सवाल लंबे समय से अनुत्तरित है। पहले बिहार, फिर झारखंड में सरकारें बनती-बदलती रहीं। किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब झारखंड में यह मांग उठ रही है कि 86 साल से छिपे राज को सरकार अब तो सामने लाए। पेड़-पौधों में जीवन की खोज करने वाले सर जेसी बोस ने गिरिडीह में जीवन के अंतिम समय गुजारे थे।

23 नवंबर 1937 काे उन्होंने यहां अंतिम सांस ली थीं। वे जिस घर में रहते थे, अब जिला विज्ञान केंद्र बन चुका है। इस भवन के एक कमरे में एक तिजोरी है, जो बंद है। यह खुले तो विज्ञान के कई छिपे राज सामने आ सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक तिजोरी की बनावट ऐसी है कि इसे वैज्ञानिक ही खोल सकते हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को तिजोरी खुलवाने के लिए आमंत्रित किया गया था, पर वे आ नहीं आ सके।

पौधे भी सांस लेते हैं...गिरिडीह में रहकर बोस ने बनाया था यंत्र

क्रेस्कोग्राफ और सूक्ष्म तरंग डिटेक्टर।
क्रेस्कोग्राफ और सूक्ष्म तरंग डिटेक्टर।

दैनिक भास्कर ने गिरिडीह विज्ञान भवन की जानकारी ली। भवन में क्रेस्कोग्राफ और सूक्ष्म तरंग डिटेक्टर के मॉडल रखे हैं। दोनों यंत्रों का आविष्कार सर जेसी बोस ने किया था। ये वैसे यंत्र हैं, जिससे पता चला था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। वे भी इंसान की तरह सांस लेते हैं और दर्द महसूस कर सकते हैं। उन्होंने गिरिडीह के पारसनाथ पर्वत की तराई में लंबे समय तक रहकर भौतिकी, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और पुरातत्व विज्ञान में कई शोध किए थे। वे जिस मकान में रहते थे, इसकी जानकारी कम लोगों को थी।

सर जगदीश चंद्र बोस
सर जगदीश चंद्र बोस

सरकार के संज्ञान में बातें आई तो भवन को जगदीश चंद्र बोस स्मृति विज्ञान भवन का नाम दिया गया। बिहार के तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई ने 28 फरवरी 1997 को भवन का उद्घाटन किया था। इस भवन में जेसी बोस की बाल्यावस्था, युवावस्था, माता-पिता, परिवार के सदस्य, दोस्त और अनुसंधान के दौरान उनकी गतिविधियों से संबंधित तस्वीरें मौजूद हंै। सर जेसी बोस मेमोरियल सोसाइटी ने कोलकाता स्थित बोस इन्स्टीट्यूट को पत्र भेजकर इस भवन को सहेजने की मांग की है।

यही वह तिजोरी है, जिसे आज तक खोला नहीं गया

विद्वानों के अनुसार, विज्ञान केंद्र में रखी तिजोरी को खोलने की कोशिश नहीं की गई। बिना सरकारी पहल के इसे खोला नहीं जा सकता है। इसलिए झारखंड और केंद्र सरकार को इसे खुलवाना चाहिए। संभावना है कि गिरिडीह में बंद तिजोरी में किसी महत्वपूर्ण रिसर्च से जुड़े साक्ष्य हों या कुछ ऐसा हो, जो सामने आने पर दुनिया चमत्कृत हो जाए।

तिजोरी में महत्वपूर्ण डाक्यूमेंट्स हो सकते हैं, इससे विज्ञान व विद्यार्थियों को फायदा

सर जेसी बोस भारत के ऐसे महान वैज्ञानिक थे, जिनकी दोस्ती तरंगों से थी। विज्ञान को उन्होंने काफी कुछ दिया। छोटी तरंगें उत्पन्न करने का तरीका बताया। हेनरिक हर्ट्ज के रिसीवर को उन्नत रूप दिया। संचार माध्यमों की कार्य प्रणाली में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। पौधों में जीवन की खोज उनकी ही देन है। पौधों की धड़कन स्क्रीन पर दिखाने वाले उपकरण का आविष्कार किया था। 1928 में क्रेस्कोग्राफ नामक उपकरण का आविष्कार किया, जो पौधों की वृद्धि मापने वाला यंत्र है।

रेडियो और सूक्ष्म तरंगों पर काम किया। सर बोस भौतिकी, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान रखते थे। गिरिडीह में उनकी तिजोरी बंद पड़ी है। यह विज्ञान के नजरिये से महत्वपूर्ण है। 1937 में जिस समय उनकी मृत्यु हुई, वे गिरिडीह में वनस्पति विज्ञान पर कार्य कर रहे थे। इसलिए संभावना है कि तिजोरी में निश्चित तौर पर विज्ञान से जुड़े महत्वपूर्ण डाक्यूमेंट्स होंगे। कई शोध पत्र भी हो सकते हैं, जो देश, विज्ञान और रिसर्च करने वाले छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं।