मंगलकारी निश्राप्रदाता एवं प्रतिष्ठाचार्य गच्छाधिपति धर्मदिवाकर आचार्य श्रीमद्विजय नित्यसेनसूरीश्वर की प्रभावक निश्रा में जिले के नानपुर में प्रसिद्ध नांदुरी तीर्थ का भव्य पंचान्हिका प्रतिष्ठा परमोत्सव शुक्रवार को नांदुरी तीर्थ में मुख्य प्रतिष्ठा महोत्सव शुभमूहूर्त में सम्पन्न हुआ। मूल नायक भगवान नेमीनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी, गणधर गौतम स्वामी, पुंडरिक स्वामी, सुधर्मा स्वामी तथा गुरूदेव राजेन्द्रसूरीश्वर जी, यतीन्द्रसूरीश्वरी और पूण्य सम्राट जयन्तसेन सूरीश्वरी की प्रतिमा जिनालय के अंदर विराजित की गई। भव्यातिभव्य प्रवेश व प्रतिष्ठामंत्रोच्चार के साथ किया गया।
मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण के पश्चात श्रावक श्राविकाओं पर पुष्पवर्षा की गई। इसके बाद अष्ठोतरी 108 पूजाहुई और मंदिर को दर्शनार्थियों के लिए खोला गया। देर शाम तक मंदिर में दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा।
पोरवाड समाज के काकडीवाला परिवार श्रीसंघो ने किया बहुमान
उल्लेखनीय है कि 150 वर्ष बाद पोरवाड समाज के स्व.कुन्दनलाल जी, जवाहरलाल जी, कमलेश,सपन और कार्तिक काकडीवाला परिवार ने नांदुरी तीर्थ का निर्माण करवाया है। खण्डवा वडोदरा राजमार्ग पर ग्राम नानपुर में नान्दुरी तीर्थ क्षेत्र 3 एकड भूमि पर विस्तारित है। जिसमें 12कमरो की धर्मशाला, 2 हॉल, आदि स्थित है।शुक्रवार को तीर्थ परिसर स्थित पांडाल में जैन श्रीसंघो नानपुर, आलीराजपुर, जोबट, चंन्द्रशेखर आजाद नगर, जोबट, रानापुर, झाबुआ, बाग, टांडा, इन्दौर, दसई सहित देश व प्रदेश के अन्य जैन श्रीसंघों के प्रतिनिधियों ने काकडीवाला परिवार का बहुमान मुख्य समारोह में किया।
गुरुपूजन कर ओढाई कांबली
इससे पूर्व पांडाल में काकडीवाला परिवार ने आचार्य श्रीमद्विजय नित्यसेनसूरीश्वरजी का वासक्षेप पूजन कर कांबली ओढाई। पांडाल में बडी संख्या में देश व प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक श्राविकाएं मौजूद रहे।
गुरूदेव जयन्तसेन सूरिश्वर जी ने दी प्रेरणा
गौरतलब है कि सन् 2004 में पुण्य सम्राट जयन्तसेन सूरिश्वरजी द्वारा बाग नगर में चातुर्मास के दौरान हुई मौन साधना की फलश्रुति के रूप में पूज्य गुरूदेव के मन में नांदुरी तीर्थ का उद्भव हुआ। इसी कारण उन्होने अडसठ तीर्थो की भावयात्रा में नांदुरी तीर्थ की चैत्यवंदन, स्तवन,स्तुतियों की रचनाएं रचकर अपनी दूरदर्शिता का परिचय श्रीसंघ के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। आचार्य भगवंत जयंतसेन सूरीश्वर 5 दिसंबर2004 को उक्त जिनालय में दर्शन करते समय विचार कर रहे थे कि मंदिर से बाहर निकलने पर जो प्रथम व्यक्ति मिलेगा, उसे राजमार्ग पर नया जिन मंदिर बनाने की प्रेरणा देना है।
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