युग के आदि में जब भगवान रिषभ देव को जिन्हें जगत आदिनाथ भगवान के नाम से जानता है से समवशरण में पूछा गया कि आपके वंश में और कितने तीर्थंकर होंगे तो प्रभु की दिव्य ध्वनि में आया कि प्रभु का पोता मारिच अंतिम तीर्थंकर बनेगा मारिच ने जब ये सुना कि मेरे दादा कह रहे हैं कि मैं अंतिम तीर्थंकर बनूंगा तो वह कहता है कि यहां भी राजनीति आ गई। अंतिम क्यों पहला, दूसरा क्यों नहीं और अंहकार में चला गया।
अंहकार के कारण जीव अनंत दुखों के सागर में चला जाता है। उसे पता ही नहीं चलता कि उसने ऐसा कर्म कर लिया जो सागरो परियंत संसार में भटकता रहेगा। उक्त उद्गार सुभाषगंज में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आर्यिका आदर्श मति माताजी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आपका जन्म ऐसे समय में हुआ जब संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महामूनिराज विचरण कर रहे हैं।
हमें उनके दर्शन करने उनकी निकटता पाने का सौभाग्य मिल रहा है सद्गुरु का सानिध्य भाग्य से मिलता है। इसके पहले धर्म सभा में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जलन विजय जैन, इंदू गांधी, सपना अजमेरा, ज्योति जैन, राजेन्द्र जैन ने किया।
जीवन में किया हुआ पुरुषार्थ आगे फल देता है
इसके पहले आर्यिका दुर्लभ मति माता जी ने कहा कि निमित्त अकेला कुछ नहीं कर सकता उसके लिए उपादान की आवश्यकता होती है। उपादान को जाग्रति करने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है। जीवन में किया हुआ पुरूषार्थ कभी खाली नही जाता कभी नहीं तो आगे फलता है। कभी-कभी निमित्त मिल भी जाए लेकिन उपादान कमजोर हो तो कार्य में सफलता नहीं मिली। सही निमित्त मिलने पर आपका उपादान जाग्रत हो तो कार्य में सफलता मिलती चलीं जाती हैं।
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