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बड़वानी के किसान की हरी मिर्च ने बदली किस्मत:5 एकड़ से सालाना 40 लाख की कमाई, जानिए- कैसे बचाते हैं वायरस के खतरे से

नरेंद्र मुकाती, बड़वानी7 महीने पहले
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बड़वानी के किसान विजय चोयल 5 एकड़ जमीन में मिर्च की खेती कर सालाना 35 से 40 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं। बड़वानी क्षेत्र में जहां वायरस की वजह से किसानों की मिर्च की फसल बर्बाद हो जाती है, वहीं विजय जैविक तरीके खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं। विजय का कहना है कि रासायनिक खाद की वजह से फसलें बर्बाद हो रही थीं। विजय सजवानी गांव के रहने वाले हैं।

विजय पिछले तीन साल में 5 एकड़ में हरी मिर्च की ही खेती कर रहे हैं। अगर मौसम उनका साथ देता है तो उनकी कमाई लागत से तीन से चार गुना अधिक हाे जाती है। विजय ने 2 माह में 3 लाख रुपए खर्च किए हैं। वहीं अभी तक 4 लाख की मिर्च बेच चुके हैं। इस साल भी 40 लाख रुपए के करीब कमाई होने की उम्मीद है। वे पिछले तीन साल से जैविक खेती कर रहे हैं।

रासायनिक खाद छोड़कर गोबर की खाद को अपनाया

विजय कहते हैं, पहले मैं केले की खेती करता था। केले की फसल के बाद मिर्च की खेती करने में किसान को सबसे अधिक खर्च लगता है। आंकड़े बताते हैं कि जिन किसानों ने आत्महत्या की है, उनमें 70 फीसदी किसान मिर्च की खेती करने वाले थे। एक मात्र मिर्च ऐसी फसल है, जिसमें किसान अत्यधिक खर्च करता है। फसल में वायरस आने के बाद पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। विजय का कहना है कि मिर्च की फसल में वायरस लगने का प्रमुख कारण रासायनिक खाद है। वायरस से बचाव के लिए जैविक खाद सबसे बड़ा हथियार है।

किसान अधिक उत्पादन के लालच में रासायनिक खाद का उपयोग अत्यधिक मात्रा में करने लगते हैं। इससे किसान एक साल तो मुनाफा कमा लेता है, लेकिन अगले साल फसल में वायरस आ जाता है। वायरस आने का कारण रासायनिक उर्वरकों से जमीन के अंदर पाए जाने वाले केंचुआ की मृत्यु दर बढ़ रही है। इससे जमीन कड़क हो रही है। केंचुआ जमीन को कड़क होने से बचाता है। जमीन कड़क हो जाने से पौधों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। साथ ही पौधे की जड़ें ग्रोथ नहीं कर पाती। इससे पौधे की पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं। धीरे-धीरे उत्पादन खत्म हो जाता है।

केंचुए का कैसे करें संरक्षित?

किसान विजय के अनुसार, वे हर साल 6 से 7 ट्रॉली गोबर खाद प्रति एकड़ में डालते हैं। इससे केंचुओं को उनका आहार भरपूर मात्रा में मिलता है और केंचुओं की संख्या भी बढ़ती है। इससे जमीन की उर्वरक क्षमता बनी रहती है। गोबर खाद के उपयोग से खेती में अन्य उर्वरकों के जो खर्चे थे, वह बहुत कम हो चुके हैं। वहीं खेती में अगर किसान के पास 5 एकड़ जमीन है, लेकिन कुछ एकड़ में उत्पादन कम हो रहा है, तो वहां केचुओं की कमी होगी, जिसे पूरी करने के लिए केंचुआ खाद का उपयोग करते हैं।

मिर्च की खेती के लिए हल्की उपजाऊ मिट्‌टी ही सही

मिर्च की खेती के लिए 15 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान होना सही रहता है। कम तापमान में इसके पौधों को नुकसान पहुंच सकता है। जलभराव की स्थिति में पौधों के खराब होने की आशंका अधिक रहती है। अच्छी जल निकासी वाली जमीन का चुनाव करें। मिर्च की अच्छी पैदावार लेने के लिए हल्की उपजाऊ मिट्टी सही रहती है। मिर्च की खेती के लिए जमीन का पीएच स्तर (पावर ऑफ हाइड्रोजन) 6-7 होना चाहिए। इसकी खेती के लिए विभिन्न प्रकार कार्बनिक पदार्थ युक्त मिट्टी हो तो ज्यादा अच्छा रहता है।