आठनेर ब्लॉक के सातनेर में सोमवार को झाड़ियों में फेंकने पर कुत्ते के मुंह से छुड़ाया गया नवजात बालक जिला अस्पताल के एसएनसीयू में तीसरे दिन बुधवार को जिंदगी की जंग हार गया। नवजात ने ताे दम तोड़ दिया, लेकिन सिस्टम की संवेदनाएं भी मर गई हैं, क्योंकि उसे छोड़ने वालों को ढूंढने का अधिकारी केवल 3 दिन से दिखावा कर रहे हैं।
परिवार में बच्चे को जिंदा रखने की कोई संवेदना नहीं थी, यदि होती तो उसे अस्पताल या पालने में छोड़ते, लेकिन उसे खुले में छोड़ दिया था। 3 दिनों में ना ही पुलिस पता लगा सकी हैं और ना ही स्वास्थ्य विभाग गांवों में महिलाओं को हुए प्रसव की जानकारी जुटा पाई है। पुलिस ने इस मामले में ग्रामीणों से पूछताछ के अलावा आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से जानकारी मांगी है। लेकिन अभी तक नवजात को झाड़ियों में फेंकने वाले आरोपियों का पता नहीं चल सका है। जिला अस्पताल में शव का पीएम करवाकर डीएनए जांच के लिए भेजा जाएगा।
झाड़ियों में फेंकने से पीठ, पेट पर चोट थी, पैर की एक अंगुली खा गया था कुत्ता
23 जनवरी को आठनेर क्षेत्र के सातनेर गांव में अज्ञात ने सात माह में जन्मे नवजात को झाड़ियों में फेंक दिया था। उसे आवारा कुत्ता मुंह में दबाकर घूम रहा था। ग्रामीणों ने कुत्ते से छुड़ाकर अस्पताल में भर्ती करवाया था। जिला अस्पताल के एसएनसीयू प्रभारी डॉ. आयुष ने बताया झाड़ियों में फेंके जाने से नवजात के पीठ, पेट और पैर में चोटें आईं थी।
एक पैर की अंगुली कुत्ते ने खा ली थी उसकी हालत गंभीर थी। झाड़ियों में फेंकने और कुत्ते के मुंह में दबाने से उसके शरीर में चोटें आई थीं। उसकी बार-बार सांस रुक रही थी। साढ़े छह से सात माह में डिलेवरी हुई थी। संक्रमण बढ़ने और समय से पहले जन्म होना अाैर शरीर में चोट अाना मौत का कारण बना।
कहां गईं इनकी संवेदनाएं
परिवार
बच्चे को जिंदा रखने की कोई संवेदना नहीं थी, उसे अस्पताल या पालने में छोड़ने के बजाय खुले में रख दिया । पुलिस
टीआई आंगनबाड़ी- आशा कार्यकर्ताओं से जानकारी ले रहे, स्वास्थ्य विभाग से डिलेवरी का रिकॉर्ड लेकर जांच नहीं की ।
स्वास्थ्य विभाग
पुलिस ने नहीं पूछा तो बीएमओ ने भी खुद संज्ञान लेकर बच्चे के गुनहगारों तक पहुंचने की कोशिश नहीं की।
आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से रिकॉर्ड मांगा है : टीआई
आठनेर टीआई विजय राव माहोरे ने बताया कि ग्रामीणों से पूछताछ कर कुछ के कथन लिए हैं। आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बोला गया है कि आसपास के गांव में 7-8 माह की कितनी गर्भवती महिलाएं थीं जिनकी डिलेवरी होना थी। बच्चा प्रीमैच्योर 7 माह का है, पहले डिलेवरी करवा दी गई हो इसका आप पता लगाकर बताएं। आसपास के गांव में अपने मुखबिर जानकारी जुटाने के लिए लगाए हैं। आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से रिकॉर्ड मांगा है 7-8 माह की कौन-कौन गर्भवती थीं। शंका है कि दायी जैसी जो महिलाएं रहती हैं उनसे घर में ही प्रसव कराया गया होगा। प्रथमदृष्टया यह गांव का मामला नहीं लग रहा है।
अवैध गर्भपात या घर में प्रसव
यह मामला अवैध गर्भपात का हो सकता है, या किसी के घर में प्रसव कराने की आशंका है। सातनेर सहित आसपास के गांवों में स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला तैनात रहता है। लेकिन विभाग द्वारा स्वास्थ्य विभाग के अमले को सक्रिय नहीं किया है। तीन दिनों में भी विभाग घर में प्रसव होने या अवैध गर्भपात होने की जानकारी नहीं जुटा पाया है। इससे विभाग की मानवीय संवेदना को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
पुलिस ने हमसे कोई रिकॉर्ड नहीं मांगा है
पुलिस ने हमसे डिलेवरी के संबंध में कोई रिकॉर्ड नहीं मांगा है। पुलिस ने केवल आशा कार्यकर्ता, एएनएम, सीएचओ से पूछा था कि कोई डिलेवरी तो आप लोगों ने नहीं की है। आसपास के क्षेत्र से कोई ने आकर प्रसव ताे नहीं कराया। हमने भी अपनी ओर से एएनएम, सीएचओ, आशा कार्यकर्ता से पता किया था कि कोई प्रसव तो नहीं हुआ है। कोई आसपास से तो नहीं आया था। लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली है। यदि संस्थागत प्रसव होता तो पता चल जाता। स्वास्थ्य अमले से जानकारी ली जाएगी।
- डॉ. अजय माहोर, बीएमओ, आठनेर
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