लहार तहसील के नरौल गांव में शाला सरकार गौंड़ बाबा मंदिर परिसर में चल रही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन आज कथाव्यास श्रीकृष्ण शास्त्री ने भगवान श्रीकृष्ण की अपने भक्तों पर की गई कृपा की कथा कही। कथाव्यास शास्त्री ने कहा कि जब धर्मराज युधिष्ठिर कौरवों से जुआ में अपना सब कुछ हार गए और द्रोपदी को भी दांव पर लगाकर हार गए।
तब दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को द्रोपदी को बीच सभा भवन में लाकर उसके वस्त्र उतारने का आदेश दिया। दुशासन जब पांचाली का चीर खींचने लगा तो उसने सभा भवन में उपस्थित सभी लोगों से मदद मांगी। लेकिन किसी भी व्यक्ति ने द्रोपदी की कोई मदद नहीं की।
अंत में द्रोपदी ने अपने आप को असहाय जानकर उसने भगवान श्रीकृष्ण को याद किया और उनसे अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की और उनसे पूछा कि, हे! भक्तवत्सल आप तो कहते हो कि मानव को अपने पाप और पुण्य कर्मों का ही फल उसका मान और अपमान कराता है। तो है करूणा निधान मैंने कौन सा ऐसा पाप कर्म किया है, जिसके कारण आज अनेक महारथियों से भरी राज्यसभा में सबके सामने मेरा चीरहरण हो रहा है।
तब भगवान ने द्रोपदी को उसके पूर्व जन्म का स्मरण कराया भगवान ने कहा कि पूर्व जन्म में खेल- खेल में तुमने स्नान करते हुये एक संत के वस्त्र छिपा दिए थे और तुम वहां से चली गयी थी, जिसके बाद नदी से बाहर आकर अपने वस्त्र न पाकर नाराज साधु ने श्राप दिया था कि जिसने भी मेरे वस्त्र छिपाए हैं और जिसके कारण मुझे सबके सामने बगैर वस्त्रों के सामने आकर लज्जित होना पड़ा, अपने अगले जन्म में उसे भी सबके सामने लज्जित होना पड़ेगा, उसी श्राप के कारण यह सब हुआ है, परन्तु भगवान श्रीकृष्ण की भक्त होने के कारण भगवान ने उसकी पुकार सुनी और उसके चीर को बढ़ाकर उसके सम्मान की रक्षा की।
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