रौन के ररी गांव में मां मंशादेवी मंदिर चल रही भागवत कथा के अंतिम दिन साध्वी ऋचा मिश्रा ने कहा कि लीलाधर भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की मिसाल संसार में आज भी दी जाती है। मित्र चाहे बड़ा हो या छोटा लेकिन मित्रवत भाव हमेशा बना रहना चाहिए। समाज को श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता से सीख लेनी चाहिए। उन्होंने बताया कि सांदीपनि मुनि के आश्रम में श्री कृष्ण और सुदामा ने शिक्षा ग्रहण की थी, दोनों बाल सखा थे।
कालांतर में श्री कृष्ण द्वारिकाधीश बने और सुदामा गरीब ब्राह्मण हुए। पत्नी के हठ करने पर सुदामा अपने मित्र से मिलने द्वारिका पहुंचे। जहां नगर वासियों के तमाम तिरस्कार को दरकिनार कर सुदामा ने श्रीकृष्ण से मिलने का निश्चय किया। मित्र के आगमन का समाचार पाकर द्वारिकाधीश का विह्वल होकर अपने मित्र से मिलने नंगे पैर दौड़ पड़े। वहां मौजूद लोग हैरान रह गए कि एक राजा और एक गरीब साधू में कैसी दोस्ती हो सकती है। भगवान कृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गए और पाठशाला के दिनों की यादें ताजा की। श्री कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है।
इस सुदामा संकोच में पड़ गए और चावल की पोटली छुपाने लगे। ऐसा देखकर कृष्ण ने उनसे चावल की पोटली छीन ली। भगवान कृष्ण सूखे चावल ही खाने लगे। सुदामा की गरीबी देखकर उनके आंखों में आंसू आ गए। सुदामा कुछ दिन द्वारकापुरी में रहे लेकिन संकोचवश कुछ मांग नहीं सके। विदा करते वक्त कृष्ण उन्हें कुछ दूर तक छोड़ने आए और उनसे गले लगे। आज समाज में मित्रता स्वार्थ बस हो रही है।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.