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अब इसे प्रशासनिक लापरवाही कहें या बेशकीमती भूमि पर दुकान निर्माण कराने के बाद भूल जाना। पंचायत समिति कार्यालय का एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें भ्रष्टाचार दर भ्रष्टाचार हो रहा है और किसी को कानों कान खबर तक नहीं है। पंचायत समिति परिसर के तुलसीवन रोड पर सड़क किनारे बनी 11 दुकानों के निर्माण के 3 साल बाद भी पंचायत प्रशासन को यह नहीं मालूम है कि इन दुकानों का आवंटन किसे किया गया, कितने रुपए में किस दुकान को दिया गया, कौन इनमें किराएदार है और किस से कितना किराया लेना है। ऐसे में जो किरायेदार दुकानों पर काबिज हैं उनकी लॉटरी निकल आई है, क्योंकि पिछले 3 साल से उन्हें किराये के लिए किसी ने नहीं छेड़ा है। ऐसे में पंचायत समिति की 11 दुकानों के किरायेदार मौज कर रहे हैंं।
तत्कालीन विकास अधिकारी दिनेश चंद्र कटारा ने बताया था कि एक दुकान के आवंटन की एवज में 50 हजार की अमानत राशि और 1500 रुपए प्रति माह का किराया रखा गया, लेकिन कौन सी दुकान किसे आवंटित हुई इसकी नोटिस बोर्ड पर कोई सूची चस्पा नहीं की गई। ना ही उसे अखबारों में निकलवाना उचित समझा गया। तत्कालीन उपप्रधान मनोज कुमार ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मामले की जांच कराने की बात कही थी और शहर के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल कुमार ने तत्कालीन कलेक्टर शुचि त्यागी से जांच करने की मांग की थी।
सीधी बात रामजीत सिंह, विकास अधिकारी
सवाल : दुकानों का आवंटन पारदर्शी रूप से क्यों नहीं किया गया। जवाब : जानकारी नहीं है, फाइल चली है उसे देखकर ही बताउंगा। सवाल : कितनी दुकानें बनीं और कितनों का आवंटन किया गया। जवाब : कन्फर्म नहीं है। 11 दुकानों की जानकारी है। सवाल : क्या पंचायत प्रशासन ने आवंटन में भ्रष्टाचार किया है। जवाब : फाइल मिलेगी तभी तो पता चल सकेगा।
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