भोपाल गैस त्रासदी की बरसी के ठीक पहले प्रभावित इलाके में जागरुकता, सतर्कता और सुरक्षा का दिखावा है। पर हकीकत कुछ और ही है। यहां बाकी दिनों में या कहें पूरे साल जहरीले कचरे पर ही बच्चे नंगे पैर क्रिकेट खेलते मिल जाएंगे। दीवार हर साल फोड़ दी जाती है जो त्रासदी की बरसी के पहले अचानक फिर से साबुत कर दी जाती है। खानापूर्ति के नाम पर बाहर सुरक्षा गार्ड बैठा रखे हैं लेकिन पिछले हिस्से में कोई रोक टोक नहीं है। दैनिक भास्कर की टीम ने फूटी दीवार के रास्ते से प्रवेश किया तो अंदर जहरीले कचरे पर ही बच्चे क्रिकेट खेलते मिल गए। सूचना के बाद आनन फानन में दीवार तो बनवा दी गई लेकिन सवाल यह है कि सालभर क्या?
भोपाल गैस त्रासदी को 37 साल बीत चुके हैं, लेकिन लापरवाही अब भी जारी है। जहां हजारों लोगों की जिंदगी खत्म करने वाली घटना हुई, वहां आज भी जहरीला कचरा डंप है। कचरा भी ऐसा कि कोई निपटान के लिए जगह देने को तैयार नहीं है। खतरनाक इतना कि कागजों में उसके आसपास जाने पर भी रोक है।
भास्कर रिपोर्टर ने ग्राउंड पर जैसा देखा-वैसा लिखा
यूनियन कार्बाइड कारखाने के मुख्य गेट से अंदर जाने की अनुमति मांगी तो सामने होम गार्ड जवान ने अंदर आने का कारण पूछा। फिर बताया गया कि अंदर जाने की अनुमति नहीं है। पूछने पर बोले- प्रशासन ने अंदर प्रवेश प्रतिबंधित किया है। अंदर जहरीला कचरा है।
चारों तरफ से मुआयना किया, तो पता चला कि जगह-जगह दीवारों में छेद हैं। जेपी नगर साइड दीवार में बड़ा से छेद से लोग आसानी से आना-जाना कर रहे थे। कुछ लोग जानवरों को चराने के लिए अंदर जा रहे थे, तो बच्चे परिसर में ही ग्राउंड में क्रिकेट खेलते नजर आए। वहीं, कुछ युवक अंदर की सड़कों पर घूम रहे थे। यहां रोकने टोकने वाला कोई नहीं था।
हमने कुछ युवाओं से पूछा, तो बोले कि हम तो रोजाना अंदर तक घूमते हैं। उनसे जहरीले कचरे को लेकर सवाल किया, तो बोले कि अब कुछ नहीं है। यहां सबकुछ खत्म हो गया। उन्होंने यूनियन कार्बाइड परिसर की मशीनों और शेड की तरफ इशारा कर बताया कि हम तो वहां तक रोजाना आते-जाते हैं।
झाड़ियों के बीच से मशीन तक जाने का रास्ता है। जहां मशीनों में लगे पाइप पूरी तरह जंग में खराब हो चुके हैं। वहीं, थोड़ी दूरी पर शेड बने हैं। परिसर में एक तरफ बने टैंक हैं, जिनके अंदर गंदा पानी भरा है। यहां पर भी लोग बेरोकटोक आते-जाते है।
अब दीवारों को छेद बंद करने की खानापूर्ति
इन लापरवाही के छेदों को बरसी के पास आते ही फिर बंद कर जिम्मेदारों ने खानापूर्ति कर दी है। दीवार के छेदों को जिम्मेदारों ने जगह-जगह से बंद कर दिया है।
57 एकड़ में फैली है फैक्ट्री
2-3 दिसंबर 1984 की आधी रात को जहरीली गैस से हजारों लोगों की मौत हो गई। आज भी सैकड़ों लोग उस त्रासदी को झेल रहे हैं। यूनियन कार्बाइड की 87 एकड़ जमीन में से एक बड़े हिस्से पर कब्जा हो गया है। 57 एकड़ जमीन पर फैक्ट्री बनी है। इसके परिसर में सैकड़ों मीट्रिक टन कचरा बैग में रखा है। इसके अलावा आसपास भी जमीन के अंदर कचरे को दबाया गया है।
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