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यदि नगर निगम ने कोलार और नर्मदा प्रोजेक्ट के बकाया बिजली बिल के 87 करोड़ रुपए का भुगतान जल्द नहीं किया तो आने वाले दिनाें में शहर में कभी भी पानी सप्लाई में दिक्कत हाे सकती है। बिजली कंपनी ने नगर निगम कमिश्नर काे बाकायदा रिमाइंडर भेजकर कहा है कि बिना सूचना दिए सार्वजनिक जल प्रदाय याेजनाओं के उच्च दाब कनेक्शन काटे जा सकते हैं।
इस अल्टीमेटम के साथ बिजली कंपनी ने मप्र विद्युत प्रदाय संहिता 2004 की धारा 10-18 एवं उच्च दाब विद्युत अनुबंध की धारा 26 का हवाला दिया है। कंपनी के ओएंडएम सर्कल के जनरल मैनेजर पीएस चाैहान ने कहा है कि उच्च कार्यालय द्वारा बकाया राशि काे गंभीरता से लिया जा रहा है।
नाराजगी.. पूरे भुगतान का भराेसा दिलाया, लेकिन किया नहीं
चाैहान ने पत्र में यह भी कहा कि नगर निगम काे कई बार भुगतान करने के लिए कहा गया। निगम प्रशासन ने पूरे भुगतान का भराेसा दिलाया, लेकिन पेमेंट नहीं किया। इससे राशि बढ़ती गई।
नर्मदा- काेलार प्राेजेक्ट से 70 फीसदी आबादी काे हाेता है पानी सप्लाई
नर्मदा और काेलार प्राेजेक्ट से शहर की 70 फीसदी आबादी काे पानी सप्लाई। यदि कनेक्शन काट दिया गया तो राजधानी के कई इलाकों में लोगों को पानी के लिए परेशान होना पड़ सकता है।
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वजह- सरकारी कॉलोनियाें-दफ्तरों का सेवा शुल्क और स्टाम्प ड्यूटी की वसूली बाकी
नगर निगम द्वारा लगभग 100 करोड़ रुपए का बिजली बिल जमा नहीं करने से स्ट्रीट लाइट के कनेक्शन काट दिए गए, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि निगम को राज्य और केंद्र के विभिन्न सरकारी विभागों और संस्थानों से 220 करोड़ रुपए वसूलना है। इसमें सरकारी कर्मचारियों की कॉलोनियों से लेकर उनके दफ्तर के सेवा कर शामिल हैं। इस सेवा शुल्क के अलावा स्टाम्प ड्यूटी आदि को जोड़ लिया जाए तो निगम को कम से कम 500 करोड़ रुपए राज्य शासन से लेना है। अमूमन हर वित्त वर्ष के अंतिम एक-डेढ़ महीने में इस वसूली का मामला उठता है।
नगर निगम नोटिस भेजने से लेकर कुर्की की चेतावनी देने जैसी कार्रवाई करता है। निगम कमिश्नर वीएस चाैधरी कोलसानी का कहना है कि राज्य शासन से सेवा शुल्क के साथ स्टाम्प ड्यूटी और अन्य मदों के भुगतान के लिए शासन को लगातार पत्र लिख रहे हैं। व्यक्तिगत रूप से कई बार चर्चा हुई है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हम बिजली कंपनी जैसा कदम उठाना उचित नहीं मानते।
5 साल पहले पोल-ट्रांसफॉर्मर के 38 करोड़ की वसूली का दिया था नोटिस
पांच साल पहले बिजली बिलों के भुगतान को लेकर नगर निगम और बिजली कंपनी के बीच इसी तरह का विवाद हुआ था। उस समय बिजली कंपनी ने निगम के कुछ दफ्तरों की बिजली काट दी थी। नगर निगम ने बिजली पोल और ट्रांसफार्मर के किराए 38 करोड़ रुपए की वसूली का नोटिस थमा दिया। कुछ दिन बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
चुंगी क्षतिपूर्ति में भी हो गई कटौती
1976 से पहले तक नगरीय निकाय उनके क्षेत्र में आने वाले वाहन और माल से चुंगी वसूलते थे। निकायों की आय का 60% चुंगी से आता था। फिर शासन ने चुंगी खत्म कर दी। लेकिन यह तय हुआ था कि शासन निकायों को चुंगी क्षतिपूर्ति देगा और उसमें हर साल 10% की वृद्धि भी होगी। लेकिन दो साल से इसमें वृद्धि की बजाय कटौती शुरू हो गई।
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