राजधानी भोपाल से 20 किमी दूर एक ऐसा गांव है, जो हर साल तेज बारिश के बाद टापू में बदल जाता है। इस गांव का नाम पड़रिया जाट है। पिछले 4 दिन तक यह गांव टापू बना रहा और 700 लोग घरों में कैद रहे। इस दौरान स्कूल नहीं खुले, बीमार हॉस्पिटल नहीं जा पाए यहां तक कि रक्षाबंधन पर भाइयों की कलाई भी सूनी रह गई। ग्रामीणों के इस सारे दर्द की वजह केवल एक पुलिया है।
दरअसल मेन रोड पर बनी पुलिया बारिश के साथ ही डूब जाती है, और उसके ऊपर छह-सात फीट तक पानी बहने लगता है। ऐसे में राजधानी से लगे इस गांव की तस्वीर पलभर में बदल जाती है। ऐसे में ग्रामीण अपना सामान भी बाहर नहीं पहुंचा पाते हैं और उन्हें आर्थिक रूप से नुकसान भी होता है। दैनिक भास्कर की टीम पड़रिया जाट गांव पहुंची और वहां लोगों के हाल जानें...
जर्जर पुलिया को जैसे-तैसे पार किया
दैनिक भास्कर की टीम भोपाल के इंद्रपुरी, आनंद नगर इलाके से रायसेन बायपास होते हुए पड़रिया जाट गांव पहुंची। यहां पहुंचने तक रास्ते की सड़कें ऐसी हैं कि पेट का पानी भी नहीं हिले, लेकिन जैसे ही गांव आया, गाड़ी अचानक रोकनी पड़ी। वजह थी, घोड़ा पछाड़ नदी पर बनी छोटी सी पुलिया... कुछ घंटे पहले पुलिया के ऊपर से छह-सात फीट तक पानी गुजर रहा था। इस कारण जर्जर हो चुकी इस पुलिया को जैसे-तैसे पार कर टीम संकरे रास्तों से गांव पहुंची।
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दूध-सब्जी बेचने नहीं जा सके
घर के बाहर खड़े प्रेम नारायण जाट ने बताया- 8 साल से परेशान हैं। जब भी बारिश होती है, सभी लोग घरों में कैद होकर रह जाते हैं। स्कूल बंद हो जाते हैं, दूध-सब्जी बेचने भोपाल नहीं जा पाते। गांव पानी से घिरकर टापू में तब्दील होकर रह जाता है। प्रताप ने बताया कि बारिश में ज्यादातर दिनों तक गांव टापू ही बना रहता है। चार दिन बाद बुधवार को रास्ता खुला है। आज पानी उतरा तो बाहर निकल पा रहा हूं।
एक अन्य रहवासी रवि जाट ने बताया- आसपास के नालों का पानी नदी में आता है। इससे गांव के मेन रोड पर घोड़ा पछाड़ की पुलिया पर इतना पानी भर जाता है कि इस पार से उस पार तक नहीं जा पाते। हर बार तेज बारिश में यही हाल होते हैं। कई बार तो बीमार लोगों को हॉस्पिटल तक नहीं ले जा सके, क्योंकि गांव के चारों ओर पानी भरा रहता है। मजबूरन दवाई देकर गांव में ही इलाज करना पड़ता है।
पानी होने से गांव नहीं आया, भोपाल के अस्पताल में ही रहा
मंगल सिंह ने बताया- मुझे सांस की बीमारी है। आठ दिन से भोपाल के अस्पताल में इलाज करा रहा था। पुलिया पर पानी होने से अस्पताल में ही था। गांव नहीं आ पा रहा था। आज जैसे ही पानी उतरा, मैं गांव आ गया। मुझे हर आठ दिन में अस्पताल जाना पड़ता है। बारिश के दिनों में ज्यादा दिक्कतें होती हैं।
रक्षाबंधन पर नहीं आ पाई बहनें
9-10 अगस्त को तेज बारिश होने से दो दिन तक पुलिया के ऊपर से छह-सात फीट पानी बहा। इस कारण रक्षाबंधन पर बहनें गांव में नहीं आ पाईं। दो दिन तक पुलिया पर पानी नहीं रहा, लेकिन फिर तेज बारिश होने से रास्ता बंद हो गया। राजधानी के करीब होने से ग्रामीण दूध और सब्जी लेकर यहां आते हैं। पुलिया पर पानी होने से उनका दूध-सब्जी का बिजनेस भी ठप हो गया। वहीं, बच्चों की पढ़ाई भी बुरी तरह से प्रभावित हुई। गांव के कई बच्चे भोपाल के कॉलेजों में पढ़ते हैं। रोजाना आना-जाना करते हैं। वहीं, आसपास के स्कूलों में भी बच्चे पढ़ने जाते हैं। दूसरी ओर गांव में जो स्कूल हैं, वहां भी पढ़ाई नहीं हुई, क्योंकि पुलिया पर पानी होने से टीचर भी नहीं आ पा रहे थे।
आठ साल पहले बनी थी पुलिया, लेकिन ऊंचाई कम
बारिश के दिनों में गांव के टापू बन जाने की बड़ी वजह पुलिया ही है। करीब आठ साल पहले लोकनिर्माण विभाग ने यह पुलिया बनाई थी, जिसकी ऊंचाई काफी कम है। ग्रामीणों की मांग है कि पुलिया की ऊंचाई बढ़ जाए तो झंझट ही खत्म हो जाए। ग्राम पंचायत ने पुलिया की ऊंचाई बढ़ाने का प्रस्ताव बनाया है।
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