भोपाल की पहचान अभी तक झीलों के शहर के नाम पर है। अब इसकी पहचान टाइगर्स कैपिटल के रूप में भी होगी। भोपाल के आसपास 40 के ज्यादा टाइगर का मूमेंट है। देशभर में शहरी इलाके में इतने बाघ कहीं नहीं हैं। यहां के टाइगरों की खासियत है कि वे इंसानों के फ्रेंड जैसे हो गए हैं। 15 साल में एक भी जनहानि नहीं हुई।
जंगल के साथ वन विहार नेशनल पार्क में भी उनकी दहाड़ गूंज रही है। यहां सफेद बाघिन 'रिद्धि' भी है। बाघ पन्ना दिनभर योग जैसी मुद्रा में रहता है तो बाघिन गौरी सफाई पसंद है। दिनभर खुद को साफ करती रहती है। 29 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर-डे पर जानिए भोपाल के टाइगर्स के बारे में...
भोपाल के कलियासोत, केरवा, समरधा, अमोनी और भानपुर के दायरे में 13 रेसीडेंशियल बाघ घूम रहे हैं। इनका जन्म यहीं हुआ है। अब इनका यहां दबदबा भी कायम है। बाघिन टी-123 का तो पूरा कुनबा ही है। कई बार भोज यूनिवर्सिटी में बाघ की चहल-कदमी देखने को मिली है, लेकिन उन्होंने कभी इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाया। शहर से जुड़े रातापानी इलाके में बाघ हैं।
वन विहार के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एके जैन ने बताया कि वन विहार में 13 बाघ हैं। इन्हें मिलाकर भोपाल के आसपास 40 से ज्यादा बाघ हैं। बाघों के मामले में भोपाल की दो खास बातें हैं। पहली बीचों-बीच वन विहार नेशनल पार्क का होना और दूसरी आसपास बाघों का बसेरा होना है।
क्यों है एमपी टाइगर स्टेट
2019 में आई बाघों की रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल 2967 बाघ हैं। इनमें सबसे अधिक बाघ मध्यप्रदेश में 526 हैं। यहां 6 टाइगर रिजर्व हैं। कान्हा नेशनल पार्क में 118, बांधवगढ़ में 115, पन्ना में 70, पेंच में 60, सतपुड़ा में 50 और संजय डुबरी में 25 से अधिक बाघ हैं। रातापानी में भी बाघों का बसेरा है। यहां भी बड़ी संख्या में टाइगर पाए जाते हैं। ऐसे में इस बार हुई गणना में भी मप्र टाइगर स्टेट का तमगा बरकरार रख सकता है।
वन विहार का 'पंचम' अब अंबानी के चिड़ियाघर में
वन विहार देश में पहला ऐसा नेशनल पार्क है, जो शहर के बीचों-बीच है। यहां 13 बाघ हैं। एक बाघ 'पंचम' को देश के बड़े उद्योगपतियों में से एक मुकेश अंबानी के जामनगर गुजरात में बन रहे दुनिया के सबसे बड़े चिड़ियाघर को सौंपा गया है। वन विहार में जो बाघ हैं, उनमें सबसे खूबसूरत सफेद बाघिन 'रिद्धि' है। मटककली, बंधन, बंधनी, शौर्य, बंधु, सत्तू, सुंदरी, शरण, गंगा, पन्ना, बांधव और गौरी भी है। डिप्टी डायरेक्टर डॉ. जैन ने बताया कि ज्यादातर बाघों के नाम वन विहार में ही रखे गए हैं। नाम उसी जगह के नाम पर रखे जाते हैं, जहां से बाघ लाए जाते हैं।
'शौर्य' है चालक, बाड़े से निकलकर पेड़ के नीचे आराम करते मिला था
वन विहार में मौजूद ज्यादातर बाघ वयस्क हैं, जिन्हें रेस्क्यू करके यहां लाया गया। इनमें शामिल 'शौर्य' सबसे चालक है। कुछ दिन पहले वह बाड़े से निकलकर हिरण के बाड़े में पहुंच गया था। एक पेड़ के नीचे आराम करते मिला था। रिद्धि को इंदौर जू से यहां लाया गया था। पन्ना दिनभर उछल-कूद करता रहता है। बंधन-बांधव गंभीर मुद्रा में रहते हैं। कठ-काठी में काफी अच्छे हैं। मटककली फ्रेंडली है। वहीं, शरण गुस्सैल है। वन विहार में आने वाले 80% टूरिस्ट इन्हें देखने ही आते हैं।
हफ्ते में 2 दिन उपवास करती है बाघिन
इंदौर जू की एक टाइग्रेस हफ्ते में दो दिन उपवास रखती है। उसके सामने मीट रखा होने के बाद भी वह नहीं खाती। ये बाघिन कोटा से लाई गई है। बाकी टाइगर एक दिन यानी सोमवार को उपवास पर रहते हैं। एक टाइगर रोजाना 10 किलो मीट उन्हें कभी-कभी मटन भी दिया जाता है। सोमवार को उन्हें मीट नहीं दिया जाता, ताकि इनका डाइजेस्टिव सिस्टम ठीक रहे। आज वर्ल्ड टाइगर (बाघ) डे है। ऐसे में हम देश के नंबर वन स्वच्छ शहर इंदौर के जू के टाइगर्स के बारे में बता रहे हैं। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें... सोमवार को उपवास करते हैं इंदौर के टाइगर
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