पंचायत चुनाव और नगरीय निकाय चुनाव कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण को लेकर 10 मई को अगली सुनवाई होगी। मप्र सरकार की ओर से इन चुनावों में ओबीसी काे 35 फीसदी आरक्षण देने की अनुशंसा की है। लगातार चुनाव में हो रही देरी पर कांग्रेस नेता और राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा ने मप्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। तन्खा ने ट्वीट करते हुए लिखा कि यदि मप्र में पंचायत और नगरीय निकाय के चुनाव में दो साल का विलम्ब क़ानूनी दृष्टि से असहनीय है। सर्वोच्च न्यायालय इस विषय पर 10 मई को फ़ैसला सुनाएगा। महाराष्ट्र की नज़ीर आ चुकी है। यदि ओबीसी या किसी भी वर्ग का नुक़सान होता है तो इस विलम्ब के लिए राज्य सरकार ही गुनहगार मानी जाएगी।
शिवराज सरकार के असंवैधानिक अध्यादेश के कारण टले चुनाव
तन्खा ने एक अन्य ट़्वीट में लिखा कि ना शिवराज सरकार असंवैधानिक( unconstitutional) अध्यादेश लाती , ना कोई कोर्ट जाता, ना सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप होता। छत्तीसगढ़ में पंचायती और नगरीय निकाय चुनाव निपट गए , वैसे मप्र में भी हो जाते। अच्छे और ख़राब सलाह या सलाहकार पर सरकार की सोच निर्भर!
मप्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में की ओबीसी को स्थानीय चुनावाें में 35% आरक्षण की सिफारिश
दो दिन पहले मप्र सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि मध्य प्रदेश के पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपने पहले प्रतिवेदन में OBC वर्ग के मतदाताओं की संख्या 48 प्रतिशत बताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को घटाने पर अन्य पिछड़ा वर्ग का मतदाता प्रतिशत 79 प्रतिशत है। आयोग का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक जो सर्वे किया गया है, उसमें ट्रिपल टेस्ट का पालन किया गया है। आयोग ने अनुसंधान और शोध कार्य विश्लेषण और जिलों में भ्रमण कर अपनी 6 अनुशंसाएं सरकार को दी है।
आयोग की तरफ से की गई अनुशसाएं
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