राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) में एक ऐसे रिसर्च स्कॉलर का पीएचडी गाइड बदलने की कार्रवाई की जा रही है, जिसकी एक भी प्रोग्रेस रिपोर्ट विवि में नहीं है। गाइड का कहना है संबंधित रिसर्च स्कॉलर ने उनके मार्गदर्शन में शोधकार्य किया ही नहीं है। वहीं, 5 साल होने पर रिसर्च स्कॉलर ने एक्सटेंशन री-रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन भी नहीं किया।
यह मामला आरजीपीवी के यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (यूआईटी) के एसोसिएट प्रो. उदय चौरसिया का है। वे वर्तमान में डिपार्टमेंट ऑफ कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग के एचओडी (जून 2022 से) हैं। यूआईटी में रेगुलर फैकल्टी (असिस्टेंट प्रोफेसर रहते) के साथ यही पर फुल टाइम पीएचडी रिसर्च स्कॉलर के रूप में जुलाई 2017 दाखिला लिया था। इस बीच यह असिस्टेंट प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर भी बन गए।
रजिस्ट्रार ने पूछा तो गाइड ने दिया जवाब...
प्रो. चौरसिया ने विवि प्रशासन को बताया कि गाइड प्रोफेसर डॉ. संजय सिलाकारी व्यक्तिगत कारणों से रिसर्च वर्क में रुचि नहीं ले रहे हैं। जबकि डॉ. सिलाकारी ने विवि के रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर बताया है कि चौरसिया पिछले कई वर्षों से शोध कार्य के लिए उनके संपर्क में नहीं है। इन्होंने परामर्श करके अथवा मेरे मार्गदर्शन में कोई भी शोधकार्य नहीं किया गया है। गाइड के अनुसार इनके रिसर्च का स्टेटस जीरो हो सकता है। इस मामले में चौरसिया ने कुछ भी बोलने से इनकार किया।
कमेटी ने की सिफारिश...
कुलपति प्रो. सुनील कुमार ने मामले में तीन सदस्यों की कमेटी बनाई। कमेटी ने छात्रहित में गाइड बदलने सिफारिश कर दी। विवि के रजिस्ट्रार डॉ. आरएस राजपूत का कहना है कि डॉ. संजय सिलाकारी का पत्र प्राप्त हुआ है। कुलपति द्वारा बनाई गई कमेटी ने क्या अनुशंसा की है यह देखकर निर्णय लिया जाएगा।
एक्सपर्ट व्यू...
हर साल 6 महीने में जमा करनी होती है रिपोर्ट...
बीयू के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. एचएस त्रिपाठी का कहना है कि पीएचडी रिसर्च स्कॉलर शोध कार्य कर रहा है या नहीं, इसके लिए हर 6 महीने एक प्रोग्रेस रिपोर्ट जमा करनी होती है। ऐसा नहीं होता है तो यह माना जाएगा कि शोध कार्य हुआ ही नहीं है।
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