धार जिले में कारम नदी पर बन रहे जिस बांध की दीवार धंसी, उसके कॉन्ट्रैक्ट में धांधली हुई। एक तरफ डैम बनाने को लेकर कॉन्ट्रैक्ट-कॉन्ट्रैक्ट का खेल चलता रहा, तो दूसरी तरफ मंत्री-अफसर सब चुपचाप देखते रहे। पहला कॉन्ट्रैक्ट गुजरात की कंपनी को मिला, लेकिन ई-टेंडर में टेंपरिंग उजागर होने पर इसे रद्द कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली की AOS कंस्ट्रक्शन को कॉन्ट्रैक्ट मिला, लेकिन उसने काम नहीं किया। AOS कंस्ट्रक्शन ने ग्वालियर की सारथी कंस्ट्रक्शन को काम दे दिया।
अब जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट और इंजीनियरिंग चीफ एमएस डाबर इस खेल पर परदा डालने में जुटे हैं। मंत्री को जांच कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है। सवाल उठ रहे हैं कि जब कंपनियां कमीशन के खेल में काम ट्रांसफर कर रही थीं, तब अफसर और मंत्री खामोश क्यों थे?
अफसरों को परवाह नहीं रही कि कॉन्ट्रैक्टर 304 करोड़ का डैम कैसे बना रहा है? दैनिक भास्कर ने मौके पर ही इंजीनियरिंग इन चीफ एमएस डाबर से पूछा कि जब डैम का निर्माण हो रहा था, तो उन्होंने क्या देखा? जवाब में वे सिर्फ यही कहते रहे कि मैं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से मॉनिटर कर रहा था। जब सवाल किया गया कि क्या एक कंपनी दूसरी कंपनी को इस तरह से पूरा कॉन्ट्रैक्ट हैंडओवर कर सकती है? इस सवाल पर उन्होंने स्वीकार किया कि AOS कंस्ट्रक्शन ने ये काम किसी और कंपनी को दे दिया था।
हालांकि, उन्होंने इस बात का सीधा जवाब नहीं दिया कि क्या कॉन्ट्रैक्ट इस तरह से ट्रांसफर किया जा सकता है? साथ ही उन्होंने कॉन्ट्रैक्टर पर कार्रवाई के सवाल को भी टाल दिया। एक्सपर्ट्स का कहना है कि आमतौर पर कॉन्ट्रैक्ट फर्म मदद के लिए कुछ काम सबलेट करती है, लेकिन पूरा काम ट्रांसफर करना नीतिगत रूप से ठीक नहीं है।
जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट भी सीधे तौर पर जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात से बचते दिखे। दैनिक भास्कर से उन्होंने सिर्फ यही कहा कि जांच कमेटी बना दी गई है। हम दोषियों के खिलाफ एक्शन लेंगे, लेकिन सिलावट ने भी इस बात का जवाब नहीं दिया कि कॉन्ट्रैक्ट क्यों ट्रांसफर किए थे?
यही सवाल राजवर्धन सिंह दत्तीगांव से भी पूछा गया, लेकिन उन्होंने कहा कि इसका जवाब जल संसाधन मंत्री सिलावट ही देंगे।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की संयोजक मेधा पाटकर कहती हैं कि मामले की जांच होनी चाहिए। विस्थापितों के साथ भी अन्याय हुआ है।
उधर, कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने डैम के निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि किसके घर सूटकेस पहुंचे, सबको मालूम है।
ग्रामीणों का भी कहना है कि डैम के निर्माण में शुरू से ही लापरवाही बरती जा रही थी। वह इसकी शिकायत भी स्थानीय स्तर पर कर चुके थे, लेकिन कार्रवाई नहीं की गई। समय रहते प्रशासन इसे समझ लेता, तो 18 गांव को खाली करने की नौबत नहीं आती।
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