बाघ अपने जन्म स्थान से निकलकर ऐसे स्थान पर पहुंच रहे हैं, जहां कभी उनकी मां उन्हें लेकर नहीं गई। भोपाल के एक बाघ ने देवास पहुंचकर अपना कुनबा बढ़ाया, वहीं भोपाल के ही टी-2 बाघिन के दूसरी बार के जन्मे 3 बाघ में से एक ने सतपुड़ा नेशनल पार्क पहुंचकर साम्राज्य स्थापित किया।
भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के अध्ययन दल ने बाघों के जेनेटिक इनहेरिटेंस का पता करते हुए इनके 11 कॉरिडोर चिह्नित किए हैं। अब इन्हें स्टेपिंग स्टोन कॉरिडोर के रूप में विकसित किया जाएगा। ऐसा प्रयोग देश में पहली बार मप्र से शुरू होगा। इसके लिए गांवों को हटाया नहीं जाएगा, बल्कि लोगों को वन ग्राम की तरह बाघों के साथ रहने के लिए जागरूक किया जाएगा।
11 कॉरिडोर प्रदेश में चिह्नित... बालूपाट, सिराली, बोरदीखुर्द समेत 15 वनग्राम आ रहे बीच में
स्टेपिंग स्टोन कॉरिडोर कॉन्सेप्ट के तहत पहला प्रयोग केरवा और इछावर के कॉरिडोर से होगा। इसमें कॉरिडोर को दूसरे कॉरिडोर से जोड़ने के लिए हर 200-250 किमी पर ऐसे इलाके तैयार करेंगे, जिससे बाघ एक से दूसरे टाइगर रिजर्व में जाए तो उसे रुकन, भोजन के लिए अनुकूल वातावरण मिल सके। चिह्नित कॉरिडोर में बालूपाट, सिराली, डूंडाला, बोरदीखुर्द सहित 15 वन ग्राम आ रहे हैं। यहां प्रशिक्षण कार्यक्रम चलेगा, ताकि ग्रामीण बाघों के साथ रहना सीखे।
प्रदेश के यह हैं चिह्नित कॉरिडोर
रातापानी से ओंकारेश्वर सेंचुरी, पन्ना टाइगर रिजर्व से रातापानी, सतपुड़ा से मेलघाट (महाराष्ट्र) टाइगर रिजर्व, बांधवगढ़ से संजय दुबरी टाइगर रिजर्व, कान्हा से पेंच, पेंच से सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, पन्ना से माधव टाइगर रिजर्व शिवपुरी, पन्ना से रानीपुर (उप्र) नेशनल पार्क, संजय दुबरी से घासीदार होते हुए झारखंड का पलामऊ पार्क, माधव से कुनो पालपुर श्योपुर, कुनो पालपुर से रणथंभौर (राजस्थान)।
विश्लेषण...पहले ओंकारेश्वर तक कॉरिडोर था
सारे वन डिविजन से जानकारी मांगी गई थी कि क्या कभी उनके क्षेत्र में बाघ ने उपस्थिति दर्ज कराई है। देहरादून संस्थान के विश्लेषण में सामने आया कि कभी बाघों का भोपाल से ओंकारेश्वर तक कॉरिडोर था। यहां अब बस्तियां और अतिक्रमण हो गया है।
स्टेपिंग स्टोन कॉरिडोर कॉन्सेप्ट पर बाघों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर पर काम शुरू कर दिया है। इससे बाघों के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सके।
-आलोक कुमार, पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ
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