एक शख्स ने दिनभर पसीना बहाकर काम किया। इस उम्मीद से कि बच्चों के साथ हंसी-खुशी जिंदगी गुजारेगा, लेकिन जिसके यहां काम किया उसने रुपए नहीं दिए। मेहनतकश शख्स उससे रुपए मांगता है तो उसे तरह-तरह से धमकाया और परेशान किया गया। रात-बिरात आकर घर का दरवाजा खटखटाता और बीवी बच्चों के सामने जलील करता। कहता- इसे समझा लो वरना ठीक नहीं होगा। इससे मजदूर को रुपए नहीं मिलने से ज्यादा तकलीफ जलील करने से हुई। उसने पत्नी से बात की और परिवार सहित सुसाइड करने का फैसला कर लिया।
ये दर्दनाक कहानी भोपाल के शख्स की है। जिसने चार बच्चों और पत्नी के साथ जहर खा लिया। डॉक्टरों ने 5 लोगों को तो बचा लिया, लेकिन एक बेटी को नहीं बचा पाए। हाल में पांचों को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया है। अब भी परिवार तनाव और गम के दौर में गुजर रहा है।
दैनिक भास्कर ने परिवार के मुखिया से बात की। उन्होंने बताया कि स्वाभिमान को धक्का लगा, तो परिवार को खत्म करने की ठान ली। बेटी को खोने का पछतावा भी है। अब परिवार की क्या हालत है? किस स्थिति से गुजर रहा है? पढ़िए, परिवार के मुखिया की कहानी उसी की जुबानी..।
जानिए, सुसाइड का ख्याल कैसे आया और उस रात क्या हुआ ?
मेरा नाम किशोर जाटव है। पेशे से ठेकेदार हूं। पत्नी, तीन बेटियों और एक बेटे के साथ पूरा परिवार हंसी-खुशी जिंदगी जी रहा था। करीब डेढ़ महीने पहले की बात होगी। गांव के तीन लोग (राहुल राजपूत, लक्ष्मण दुबे, जय अश्विनी) के मकान में सेंटरिंग समेत अन्य काम किया। कुछ पैसे उन्होंने दे दिए। जब बकाया देने की बारी आई, तो धमकाने लगे। फोन पर गाली-गालौज करने लगे।
वे घर आकर बच्चों-पत्नी के सामने जलील करते। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि मैं क्या करूं। पत्नी बहुत दु:खी थी। हम गरीब लोग हैं। स्वाभिमान में ऐसा धक्का कभी नहीं लगा था। पत्नी से मैंने बात की। दोनों ने सुसाइड का फैसला लिया।
करीब 10 दिन पहले से मन में सुसाइड के विचार आने लगे। शुरुआत में दिन में दो-तीन बार यह विचार आते, लेकिन धीरे-धीरे यह हावी हो गया। दिनभर इसी के बारे में सोचता रहता था। कुछ काम करने की इच्छा नहीं होती थी। ऐसा लगता था कि अब इस दुनिया में मेरे लिए कुछ नहीं बचा। अब मर जाते हैं, लेकिन बच्चों को देखकर मन पलट जाता था। हर रोज की यही स्थिति रहती थी।
मुश्किलों से निकलने के लिए पत्नी से चर्चा करता। वह भी इतनी परेशान थी कि सुसाइड कर लेने जैसी बात कहने लगी। बच्चों को हम दोनों यह बात नहीं बताते थे। दोनों ने फैसला किया कि सुसाइड कर लेते हैं। हम बाजार से जहर खरीद लाए, लेकिन जब भी जहर खाने की सोचते, तो बच्चों के भविष्य को देखकर टाल देते।
9 जनवरी को हम दोनों ने ठान ही लिया कि आज जहर खा ही लेंगे। हमारे मरने के बाद बच्चे परेशान होंगे, ऐसे में उन्हें भी जहर खिलाने का हम दोनों ने तय किया। जब बच्चों को दूध में जहर पिलाया उस समय मेरे मन में कुछ सूझ नहीं रहा था। बस यही लग रहा था कि अब इस दुनिया से चले जाएं।
रात में पत्नी सीता जाटव (35), तीन बेटियों कंचन जाटव (15), अन्नू (10), पूरवा (8) और बेटे अभय (12) के साथ घर में हम लोग टीवी देखते रहे। इसके बाद पत्नी ने बच्चों को पिलाने के लिए दूध उबाला। इसी में जहर (कीटनाशक) डाल दिया। बच्चों को दूध के बहाने जहर पिला दिया। हमने भी दूध में मिलाकर जहर पी लिया। इसके बाद सभी बेहोश हो गए।
सुबह छह बजे मुझे होश आया। मैंने भांजे दीपक को फोन कर कहा- अलविदा...। यह आखिरी बात है। इसके बाद फोन काट दिया। मैं वापस बेहोश हो गया। होश आया तो अस्पताल में मिला। इलाज के दौरान सबसे छोटी बेटी पूरवा की मौत हो गई। तब बहुत दुख हुआ। अब उसी के जाने का अफसोस है।
हमने ऐसा क्यों किया, अब भी कुछ समझ नहीं पाता। उस मंजर को यादकर सिहर जाता हूं। बच्चों को देखकर अब दुख होता है, इसलिए पत्नी को बच्चों के साथ मायके भेज दिया है, ताकि वह डिप्रेशन से दूर हो सके। ऐसा लगता है क्या हो गया? लेकिन, अब हिम्मत जुटा रहा हूं कि लड़कर ही न्याय मिलेगा। सुसाइड कोई ऑप्शन नहीं है।
हम लोग इतने चतुर-चालाक नहीं हैं कि प्रताड़ित करने वालों से बदला ले पाते। जिंदगीभर की मेहनत की कमाई से अब तक एक कमरे का घर बना पाए हैं। उसी में पूरा परिवार रहता है। हालांकि हमारे पास किसी का कर्ज नहीं है। थोड़ा-बहुत जो है, वह हम चुका देते, लेकिन हमें इतना प्रताड़ित, जलील किया गया कि सहन नहीं हुआ। ऐसा लगा कि मर जाना ही ठीक है। किसी से हमने मदद भी नहीं मांगी। मरना ही ठीक समझा। मुझे, मेरे परिवार को प्रताड़ित करने वालों के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई नहीं की है, जबकि अस्पताल में मेरे बयान भी हुए। इसके साथ ही घर पर सुसाइड नोट भी छोड़ा था। उसमें भी प्रताड़ित करने वालों का जिक्र किया था। मेरी बेटी की जान इन्हीं लोगों की वजह से गई। मुझे इतना प्रताड़ित, जलील किया कि अब तक मैं उस तनाव से उबर नहीं पाया। प्रताड़ित करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए।
(जैसा कि किशोर ने दैनिक भास्कर को बताया)
सुसाइड करने वाले सोचते हैं, जिंदगी से अच्छी मौत है...
भोपाल की मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य बताती हैं- तनाव हर व्यक्ति को होता है। यह तनाव जब डिप्रेशन में बदल जाता है, तब व्यक्ति सुसाइड का मन बना लेता है। उसे कुछ समझ में नहीं आता। वह निराश, हताश दिखता है। उदास रहने लगता है। नकारात्मकता जब चरम सीमा पर पहुंच जाती है, तो उसे लगने लगता है कि अब जिंदगी से अच्छी मौत है। वह सोचते हैं कि जिंदगी जीने का कोई मतलब नहीं है, मर जाना बेहतर है और वह आत्महत्या का मन बना लेते हैं।
फैमिली के साथ सुसाइड करने वाले यह सोचकर जान देते हैं कि उनके मरने के बाद उनके परिवार को दुख होगा। पालन-पोषण कौन करेगा। ऐसी नकारात्मक सोच से वह एक साथ सुसाइड कर लेते हैं। इसका एक ही इलाज है कि अवसाद के लक्षणों को पहचान कर तुरंत काउंसिलिंग और ट्रीटमेंट कराएं।
भांजे को फोन कर कहा था, मैंने बच्चों को पॉइजन दे दिया...
किशोर के भांजे दीपक ने बताया कि मामा ने मुझे 6 बजकर 7 मिनट पर कॉल किया। बोले- आखिरी दुआ सलाम। मैंने पूछा बात बताइए क्या हुआ? बोले- मैंने बच्चों को पॉइजन दे दिया है। इसके बाद मैं सीधा अपने घर से निकलकर मामा के घर पहुंचा। सभी वहां पड़े थे। दो बच्चों के मुंह से फेन भी आ रहा था। 108 एम्बुलेंस को फोन किया और सीधा सभी को हमीदिया लेकर आया। मामा ने बताया था कि उनका काम तो चल रहा है, लेकिन पार्टियां उन्हें पेमेंट नहीं दे रही हैं। मैंने उनसे कहा भी कि पार्टी पेमेंट नहीं दे रही है, तो चलो उनसे जाकर बात कर लेते हैं, क्या दिक्कत है। इस पर बोले कि ठीक है मैं बता दूंगा।
प्रदेश में रोजाना 41 लोग दे रहे जान
NCRB नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट में सुसाइड के मामलों में मध्यप्रदेश देश में महाराष्ट्र, तमिलनाडु के बाद तीसरे नंबर पर है। साल 2021 में प्रदेश में कुल 14, 965 लोगों ने खुदकुशी की है, यानी हर रोज 41 लोग जान दे रहे हैं। झकझोर देने वाला तथ्य यह है कि पिछले तीन साल में सामूहिक सुसाइड के 13 केस सामने आए हैं। इसमें 2019 में दो और 2020 व 2021 में एक-एक मामले सामने आए थे।
2022 में अप्रैल से अगस्त के बीच पांच महीने में 9 परिवारों ने सामूहिक सुसाइड कर लिया। पिछले डेढ़ साल में जान देने वाले 10 परिवारों की बात करें, तो इसमें भोपाल, इंदौर, ग्वालियर जैसे बड़े शहर से लेकर भिंड, रायसेन, टीकमगढ़, नर्मदापुरम, छिंदवाड़ा, उज्जैन व खंडवा जैसे छोटे शहरों और गांव में रहने वाले परिवार तक शामिल हैं। अधिकतर केस में कॉमन ये है कि 7 परिवारों के सुसाइड की वजह आर्थिक तंगी और कर्ज बना और सभी एकल परिवार से थे।
5 राज्यों में आत्महत्या के 50.4% केस मिले
इन पांच राज्यों में हुई आत्महत्याएं देश में सामने आए मामलों का 50.4% है, जबकि बाकी 49.6% मामले अन्य 23 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में दर्ज किए गए। देश की आबादी में सबसे अधिक हिस्सेदारी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में देश में होने वाली आत्महत्याओं के 3.6% मामले दर्ज किए गए। महाराष्ट्र में आत्महत्या के मामले 2020 की तुलना में 13.5% बढ़े हैं। वहीं, तमिलनाडु में 11.5%, मध्यप्रदेश में 9.1% मामले, पश्चिम बंगाल में 8.2 फीसदी और कर्नाटक में आत्महत्या के मामले 8% बढ़े हैं।
इलाज के 3 तरीके
1. टॉक थेरेपी
टॉक थेरेपी को साइकोथेरेपी या कॉग्नटिव बिहेवेरियल थेरेपी (CBT) भी कहते हैं। यह युवाओं में आत्महत्या के रिस्क को कम करके का सबसे असरदार इलाज है। इसमें पीड़ित से बात की जाती है, इस दौरान उसके नेगेटिव और पॉजिटिव फीलिंग्स को नोट किया जाता है। इसके बाद पीड़ित की काउंसलिंग करके, नेगेटिव फीलिंग्स को पॉजिटिव से रिप्लेस किया जाता है।
2. दवाइयों के जरिए
टॉक थेरेपी कारगर तो है, लेकिन उतनी नहीं कि यह पीड़ित को पूरी तरह से नॉर्मल कर दे। अगर किसी युवा में आत्महत्या का रिस्क बढ़ गया है, तो जाहिर है उसमें एंग्जाइटी और डिप्रेशन का स्तर बहुत ज्यादा हो चुका है। ऐसे मामलों में दवाइयां बहुत जरूरी हो जाती हैं।
3. लाइफ स्टाइल में बदलाव
ऐसे लोग जिनमें आत्महत्या का रिस्क ज्यादा है, उन्हें अपनी लाइफस्टाइल पर बहुत ध्यान देना चाहिए। कई स्टडी में यह बात सामने आई है कि लाइफस्टाइल किसी भी मेंटल डिसऑर्डर को ठीक करने में 50% तक कारगर है।
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