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आपको बता दे कि हमारे चिढ़ी खो का चीतल बड़े ही चालाक व चतुर हैं। इसी चतुराई के चलते दस साल में इनकी संख्या बढ़कर 10 गुना ज्यादा हो गई है। शिकारी जानवर के बीच मौत में मुंह में रहने के बाद भी यह चीतल चतुराई से बच निकलते हैं। इसी चतुराई के चलते चीतल शिफ्टिंग ऑपरेशन के दौरान पकड़ में नहीं आ रहे हैं।
इसके चलते वन विभाग ने दो बार शिफ्टिंग करने के बाद अभियान को रोक दिया था। इसके बाद दिवाली का त्योहार आ गया। वहीं चीतल बोमा पद्धति से ट्रक के अंदर क्यों नहीं आ पा रहे इसका अध्ययन किया तो कई रौचक तथ्य सामने आए हैं। जिले के चिड़ी-खो अभयारण्य में इस समय चीतल की संख्या काफी बढ़ गई है। इसके चलते इन्हे गांधी सागर और सिवनी भेजने अभियान शुरू किया था। जिसे पूरा करने प्रदेश भर के 100 लोगों की एक्सपर्ट टीम जिले में बुलाई थी। जिन्हें 600 चीतल को शिफ्ट करने का टारगेट दिया गया था। अफ्रीका के बोमा पद्धति से होने वाली शिफ्टिंग यानि चीतल को बिना टच किए या छुए सीधे ट्रक में चढ़ाना था। जिसके तहत एक बार 6 और दूसरी बार 12 चीतल पकड़कर गांधी सागर छोड़े गए। इसके बाद चीतल के सतर्क होने से इस अभियान को रोक दिया था।
दो अलग-अलग जगह जाएंगे 600 चीतल
अभ्यारण्य से 600 चीतल को शिफ्ट करने की प्रक्रिया दो चरणों में होगी। इन 600 चीतल में से 500 चीतल गांधी सागर डेम छोड़ेंगे और 100 चीतल सिवनी में छोड़े जाएंगे। इसके लिए वन विभाग ने योजना तैयार की है।
लगातार बढ़ रही है संख्या इसलिए गांधी सागर व सिवनी शिफ्ट करेंगे
अभ्यारण्य में चीतल की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां करीब 2528 चीतल हैं। इसके हिसाब से यहां संख्या ज्यादा है तो मैनेजमेंट के हिसाब से इनकी शिफ्टिंग करना अनिवार्य है। इसके लिए शासन ने 600 चीतल की अनुमति दी है। क्योंकि चीतल के हिसाब से इन दोनों जगह का माहौल ठीक है।
एक दिसंबर से दोबारा काम पर लगेंगी शिफ्टिंग टीम
चीतल शिफ्टिंग के लिए प्रदेश के 100 लोगों की टीम बनाई थी, यह टीम दोबारा से 1 दिसंबर से काम में लगेगी। इसके लिए टीम में अनुभवी लोगों को शामिल किया है। जो पूर्व में बाघ व अन्य वन्य प्राणियों को शिफ्ट कर चुके हैं। इसी अनुभव के आधार पर इन्हें काम सौंपा है।
दूसरे चरण में हवा की दिशा से बदलाव करेंगे ताकि चीतल खतरा महसूस न करे
दूसरे चरण में प्रकिया को सफल बनाने विभाग ने बदलाव किया है। एसडीओ जेएस राठौर ने बताया कि चीतल आदमी की गंध के साथ ही हवा रफ्तार से खतरे को भांप लेते हैं। इसके चलते बाड़ा व बोमा को हवा के विपरीत दिशा की तरफ तैयार किया है। ताकि हवा की मदद से घेरे के खतरे का उन्हें पता नहीं चल सके। यह टीम 40 किमी/ घंटे की रफ्तार से वाहन चलाकर चीतल को गांधी सागर छोड़ेगी।
चीतल के हमले से सावधानी बरत रहा अमला
ऑपरेशन शिफ्टिंग बोमा पद्धति से दोबारा होगा, लेकिन इस दौरान चीतल के हमले से भी बचना होगा। क्योंकि चीतल बचाव में खुर व सींग से हमला कर सकते हैं। चीतल को जल्दी घेरे में लाने विभाग ने कई जतन किए, लेकिन पहले चरण में कम हाथ लगे। इसके चलते अब दूसरा चरण दिसंबर के पहले सप्ताह शुरू होगा।
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