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BSF में बेटी का चयन, पढे़ं संघर्ष की कहानी:मजदूरी कर पढ़ी, सुबह 5 बजे गलियों में दौड़ी; अब वहीं घोड़े पर सवार होकर निकली

राजगढ़एक वर्ष पहले
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बीएसएफ की वर्दी में घोड़े पर बैठी बेटी, आगे पीछे लोगों का जुलूस और ढोल नगाड़ों की थाप पर थिरकती भीड़। नजारा राजगढ़ जिले के एक गांव में देखने को मिला है। गांव पिपल्या रसोड़ा में रहने वाली संध्या का चयन सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में हुआ है। 8 महीने की ट्रेनिंग पूरी कर बेटी वर्दी में गांव लौटी तो परिवार सहित गांववाले भावुक हो गए। लोगों ने बेटी की उपलब्धि पर जश्न मनाया। गाजे-बाजे के साथ बेटी को घोड़े पर बैठाकर जुलूस निकाला गया। इस दौरान ग्रामीणों के साथ संध्या ने भी जमकर डांस किया। इस मौके पर संध्या ने कहा - यह मेरे लिए यादगार पल है।

पूरे गांव में निकाला जुलूस, भावुक हुई बेटी

बेटी संध्या गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने उन्हें घोड़े पर बैठा दिया। इसके बाद ढोल की थाप पर नाचते-गाते पूरे गांव में जुलूस निकाला गया। इस दौरान गांव के हर घर के बाहर उनका माला पहनाकर स्वागत किया गया। लोगों का प्रेम देखकर फौजी बेटी भी भावुक हो गई।

गांववालों ने तिलक लगाकर बेटी का स्वागत किया
गांववालों ने तिलक लगाकर बेटी का स्वागत किया

पिता मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करते हैं

नरसिंहगढ़ तहसील के ग्राम पिपल्या रसोड़ा गांव में रहने वाले मजदूर देवचंद भिलाला की बेटी संध्या भिलाला का अप्रैल 2021 में बीएसएफ में चयन हुआ था। इसके बाद संध्या राजस्थान ट्रेनिंग के लिए चली गई। रविवार को ट्रेनिंग खत्म कर 8 महीने बाद वह वर्दी में वापस अपने गांव लौटी। इस खुशी के मौके पर गांववालों ने संध्या का जोरदार स्वागत किया।

संध्या के हौंसले की कहानी - दूसरों के खेत में मजदूरी कर पढ़ी

27 साल की संध्या ने यह साबित कर दिया कि दुख की चट्टान हौंसलों के आगे घुटने टेक देती है। संध्या का जन्म देवचंद भिलाला के घर हुआ। देवचंद मजदूर हैं। उनकी तीन बेटियां और दो बेटे हैं, जिसमें से तीसरे नंबर की है। संध्या ने अब बीएसएफ की वर्दी पहन ली है। उसका सीमा सुरक्षा बल में चयन हुआ है। वह नेपाल, भूटान की बॉर्डर पर सुरक्षा करेगी। एमए पास संध्या के लिए यह मुकाम पाना आसान नहीं था। गरीबी की वजह से संध्या ने दूसरों के खेतों पर काम किया। मजदूरी के रुपयों से उसने 12वीं तक की पढ़ाई की।

गांव में इतना प्यार पाकर भावुक हुई संध्या
गांव में इतना प्यार पाकर भावुक हुई संध्या

12वीं पास होने के बाद उसने एक निजी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। हालांकि उसने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। गांव में दो लोग फौज में हैं, उन्हें देख और उसकी बातें सुन उसे भी सेना में भर्ती होने का जुनून चढ़ गया। इस कारण वह पढ़ाने और खुद की पढ़ाई के साथ सुबह उठकर दौड़ लगाना शुरू किया। सुबह 5 बजे वह लोगों को गली में दौड़ती नजर आने लगी। दो बार फौज में विफल होने के बाद भी हार नहीं मानी और लगातार 7 साल प्रायस करने के बाद उसे आखिरकार सीमा सुरक्षा बल के लिए चुन लिया गया।