सीहोर में अनोखी प्रथा:धबोटी गांव में 100 साल से जारी पौधा उखाड़ने की प्रथा

सीहोर2 वर्ष पहले
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पौधा उखाड़ते लोग। - Dainik Bhaskar
पौधा उखाड़ते लोग।

सीहोर में शुक्रवार को धबोटी गांव में दीपावली के अगले दिन पौधा उखाड़ने की प्रथा आज भी बेहद ही रहस्यमयी है। इसके रहस्य इतिहास के गर्त में छिपे हुए हैं, लेकिन आज भी करीब एक दर्जन से अधिक गांवों के लोग हजारों की संख्या में इस प्रथा के साक्षी बनते हैं और यहां पर स्थित खुटियादेव की आस्था और उत्साह के साथ पूजा-अर्चना करते हैं और इस साल भी यहां पर आस्था के साथ मेले का आयोजन किया गया था। इस मेले में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल थे।

गोवर्धन पूजन पर उमड़ा जनसैलाब

करीब 100 सालों से अधिक समय से धबोटी के समीपस्थ यहां पर हर साल दीपावली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजन के पावन अवसर पर हर साल हजारों की संख्या में मवेशियों के स्वास्थ्य सहित अन्य कामनाओं को लेकर यहां पर आते हैं और यहां पर मंदिर में मौजूद देवता की पूजा-अर्चना पूरी आस्था और विश्वास के साथ करते हैं।

शुक्रवार को भी अपनी मनोकामनाओं को लेकर श्रद्धालु पहुंचे थे। इस संबंध में जानकारी देते हुए धबोटी गांव के उपसरपंच ईश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि पौधा उखाड़ने की प्रथा 100 साल से अधिक से चली आ रही है, लेकिन अभी तक किसी ने भी इस दुर्लभ पौधे को नहीं उखड़ सका है।

उन्होंने बताया कि गांव का चौकीदार पटेल जगदीश प्रसाद के मार्गदर्शन में विशेष पूजा-अर्चना के साथ गांव में स्थित खुटियादेव के मंदिर परिसर में पुवाडिया का दो फीट का पौधा जमीन के चार इंच के करीब गढ़ता है और उसके बाद सुबह यहां पर आने वाले श्रद्धालु खुटियादेव के दर्शन करने के बाद उखाड़ने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह चार इंच जमीन में गढ़ा हुआ पौधा 4-5 लोगों के अथक प्रयास के बाद भी जमीन से ठस से मस नहीं होता। एक तरफ तो देश चांद पर जाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन धबोटी गांव में हर साल इस तरह की दिव्य प्रथा होती है।

अद्भूत घटना में करीब 15 हजार से अधिक श्रद्धालु हर साल साक्षी के रूप में मौजूद रहते हैं। गांव के सरपंच देव सिंह और उप सरपंच ईश्वर सिंह ने बताया कि हमारे बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार दिवाली के दूसरे दिन धबोटी गांव में छोटा बारहखंबा से नाम से इस प्रसिद्ध मेले और पौधा उखाड़ने की इस अद्भूत घटना में करीब 15 हजार से अधिक श्रद्धालु हर साल साक्षी के रूप में मौजूद रहते हैं।

इस साल कोरोना संकट काल के कारण मेले में कुछ संख्या कम थी। इसमें धबोटी, धामनखेड़ा, शिकारपुर, काहरी, बामूलिया, बडनगर, कांकड़खेड़ा, भाउखेडी, आमझिर, मोगरा, हसनाबाद, जहागीरपुरा, नयापुर और आल्हदाखेड़ी आदि के ग्रामीण और क्षेत्रवासी श्रद्धा और विश्वास के साथ उपस्थित होते हैं।

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