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कमान को जितना अधिक अपनी ओर खींचेंगे तीर उतनी ही तेजी के साथ जाकर सामने वाले पर वार करता है। ठीक उसी प्रकार कुछ लोग शब्दों की चासनी के साथ मीठा मीठा बोलकर बड़ी ही विनम्रता के साथ पेश आते हैं। इनकी वृति भले ही विनम्र हो लेकिन इनके भावों की कुटिलता अलग ही झलकती है और जब इनकी पोल खुलती है तो ऐसे लोग फिर किसी का भी विश्वास हासिल नहीं कर पाते।
उपरोक्त उदगार मुनि समता सागर महाराज ने प्रातः कालीन प्रवचन सभा में व्यक्त किए। उन्होंने उत्तम आर्जव धर्म की व्याख्या करते हुए कहा किनमन नमन में फेर है, अधिक नमें बेईमान। दगाबाज दूना नमे, चीता चोर समान। उन्होंने कहा कि अपने मतलब के उद्देश्य से मीठा बोलकर उससे क्षमा याचना करना विनम्रता की श्रेणी में नहीं आता। कभी कभी अपनी ठग विद्या अपने आप पर ही भारी पड़ती है।
मुफ्त बांटकर सरकार ने सभी को आलसी बना दिया
उन्होंने कहा कि सरकार की मनरेगा की योजना में यही था कि मेहनत मजदूरी करो और पेट भरो लेकिन मुफ्त मुफ्त सब कुछ मुफ्त बांटकर सरकार ने सभी को आलसी बना दिया। अब अगर उस पर रोक लगाने की बात करो तो आंदोलन शुरू हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि दूसरों को ठगकर, धोखा देकर हम भले ही थोड़ी देर के लिए आनंदित हो जाएं और अपने आपको चालाक और चतुर समझने लगें लेकिन ध्यान रखना भले ही हम दूसरों को छल रहे हो लेकिन छले तो अपनी ही आत्मा में पड़ेंगे।
संसारी प्राणी का जीवन माया की मूर्ति बना हुआ है
उन्होंने कहा कि संसारी प्राणी का जीवन माया की मूर्ति बना हुआ है। बहुरुपियापन इतना अधिक हो गया है कि यह लोगों का स्वभाव सा बन गया है। माया के मुखौटे इतने अधिक सज गए हैं कि वास्तविकता का पता ही नहीं चलता कि कौन सच्चा है और कौन झूठा है? मुनि श्री ने कहा कि यह पंचम काल चल रहा है। इसमें दुख ही दुख है। इस काल में सुख तो है लेकिन अपने सुख से ज्यादा यदि सामने वाले के पास ज्यादा सुख आ जाए तो दुख शुरू हो जाता है। व्यक्ति अपने दुख से कम दुखी है। सामने वाले के सुख से ज्यादा दुखी नजर आ रहा है।
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