जिले में धान का कटाेरा कहलाने वाले पुनर्वास क्षेत्र में इन दिनों पीले फूलों से लदी सरसों फसल लहलहा रही है। क्षेत्र में इस बार किसानों ने बड़े पैमाने पर सरसों बोई है। गेहूं, चना के बाद तीसरी बड़ी फसल यहां सरसों बन गई है। खाद- पानी की झंझट से बचने किसानों ने इस बार सरसों को विकल्प के रूप में चुना है। इसके दाम भी अच्छे हैं और पैदावार का प्रतिशत भी बेहतर है।
पुनर्वास क्षेत्र के हर गांव में इस बार अधिकांश किसानों ने सरसों लगाई है। क्षेत्र में 800 हेक्टेयर में सरसों की बोवनी हुई है। चोपना के किशोर विश्वास, अमित खराती, गोपीनाथपुर के असीमपाल, नारायणपुर के मणींद्र, तवाकाठी के असीम राय ने बताया कि इस बार गेहूं, चना के बजाए अधिकांश किसानों ने सरसों और कुछ जगह तरबूज को प्राथमिकता दी है।
सरसों में परेशानी कम है, पैदावार अच्छी है। 100 दिन में फसल निकल जाएगी। 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भी फसल निकली तो 1 लाख रुपए की आय प्रति हेक्टेयर हो सकती है। घोड़ाडोंगरी के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी एनके नागले ने बताया कि ब्लॉक में इस बार सरसों का क्षेत्र बढ़ा है। पूरे ब्लाॅक में 1887 हेक्टेयर में सरसों है।
पुनर्वास क्षेत्र में 800 हेक्टेयर के आसपास सरसों है। इस बार फसल बहुत अच्छी है। इस बार सरसों के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही है। वैसे धान में रिकॉर्ड कायम हाे चुका है। पुनर्वास क्षेत्र में बीते 25 सालों में धान की खेती से यहां की तस्वीर बदली है। इस बार पुनर्वास क्षेत्र में किसानों ने 49 करोड़ 8 लाख 24 हजार रुपए मूल्य की 2 लाख 40 हजार 600 क्विंटल धान बेची है, जो एक रिकाॅर्ड है।
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