बाघ के शिकार स्थल से 2 किलोमीटर दूर स्थित विक्रमपुर गांव में दहशत का माहौल है। वनविभाग की पूरी कार्रवाई के दौरान नर्सरी के आसपास भी ग्रामीण नहीं आ रहे। घटना के संबंध में कोई बात करने को तैयार नहीं है। गलियों में भी पूरे दिन सन्नाटा नजर आया। दूसरी ओर पन्ना टाइगर रिजर्व में शिकारियों से बाघों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बीट गार्ड और सुरक्षा श्रमिकों के हवाले है। जंगल में तैनात रहने वाले इन बीट गार्ड के पास हथियार या सुरक्षा उपकरण के नाम पर कुल्हाड़ी और डंडा ही है।
मप्र सरकार ने पन्ना टाइगर रिजर्व को सुरक्षा के लिए पुलिस विभाग की पुरानी राइफल वन विभाग को दी है ं यही राइफल पन्ना टाइगर रिजर्व के पास भी हैं, लेकिन वन अमले के पास राइफल चलाने की ट्रेनिंग नहीं है। इस कारण से यह राइफल जंगल में तैनात बीट गार्ड को नहीं दी हैं।
एफ्रोडेट दवा में उपयोग होती टाइगर की हड्डी
एफ्रोडेट दवा में कच्चे माल के रूप में टाइगर की हड्डी इस्तेमाल की जा रही है। रिटायर्ड वन अधिकारी जगदीश रावत ने बताया कि दवा में उपयोग के साथ ही चीन सहित कुछ पूर्वी एशिया के देशों में टाइगर की हड्डी का सूप भी बनाया जाता है। इस सूप के इंटरनेशनल खिलाड़ी बेहद महंगी कीमत अदा करते हैं। इस कारण से टाइगर की सभी हड्डियां और खाल विदेशों में तस्करी करके ले जाई जा रहीं हैं।
टाइगर रिजर्व में एक हजार हेक्टेयर जंगल की रखवाली एक बीट गार्ड के हवाले
टाइगर रिजर्व में एक हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल के जंगल को एक बीट में शामिल किया है। एक बीट की रखवाली के लिए एक बीटगार्ड और एक सुरक्षा श्रमिक को तैनात किया है। सुरक्षा श्रमिक 9000 रुपए प्रति माह के मानदेय पर काम करते हैं।
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