अफ्रीका तक जाते हैं गुना के अमरूद:युवक ने 18 बीघा में लगाए साढ़े पांच हजार पौधे; हर साल हो रही 20 लाख की कमाई

गुना6 महीने पहलेलेखक: आशीष रघुवंशी
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इलाहाबादी और लखनवी अमरूद का स्वाद चखना हो तो गुना के अमरूद मंगवा लीजिए। यहां इलाहाबादी और लखनवी किस्मों की ग्राफ्टिंग कर अमरूद की जी-विलास किस्म की खूब पैदावार हो रही है। यहां के अमरूदों की सप्लाई यूरोपियन और अफ्रीकन कंट्रीज तक की जाती है।

आइए आपको ले चलते हैं गुना शहर से 10 किलोमीटर दूर गढ़ा गांव। जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके सुमेर सिंह का परिवार पारंपरिक खेती करता है, लेकिन उनके बेटे धनंजय सिंह ने कुछ अलग करने की सोची। धनंजय ने परंपरागत खेती के जोखिम से अलग हटकर 18 बीघा जमीन पर अमरूद का बगीचा लगाया। इस बगीचे की लागत करीब 7 लाख रुपए आई। अब उनको अमरूद से प्रतिवर्ष 18 से 20 लाख रुपए की आमदनी हो रही है।

जानते हैं धनंजय सिंह की कहानी उन्हीं की जुबानी...

मैंने अपनी स्कूली शिक्षा इंदौर से पूरी की। इसके बाद दिल्ली के कॉलेज से हिस्ट्री ऑनर्स से ग्रेजुएशन किया। इरादा आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का था, लेकिन कुछ व्यक्तिगत कारणों से वापस लौटना पड़ा। मेरे परिवार में पहले से पारंपरिक खेती होती रही है। मैंने भी शुरुआत लहसुन, आलू और प्याज की खेती से की। लेकिन इसमें मुनाफा कम और जोखिम ज्यादा था। मैं इसका विकल्प तलाश रहा था। कई तरह के पौधों की पैदावार को लेकर रिसर्च की तो अमरूद के बारे में जानकारी मिली। पता चला कि महाराष्ट्र के अहमदनगर में अमरूद के सबसे अच्छे पौधे मिलते हैं।

मैं पौधे लेने अहमदनगर पहुंच गया। वहीं से अमरूद के पौधे लेकर आया। पहले जी-विलास (G-Vilas) किस्म के पौधे लाया। यह लखनवी एल-49 और इलाहाबादी सफेद को मिलाकर बनाई जाती है। यह ग्राफ्टेड पौधा होता है। 60 रुपए का एक पौधा मिलता है। 2017 में कुल साढ़े 5 हजार पौधे रोपे। पहले साल की उपज बाजार तक नहीं पहुंची, लेकिन दूसरे साल से प्रति सीजन 20 लाख रुपए के अमरूद बेच रहा हूं।

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किस तरह की खाद और मिट्‌टी जरूरी
अमरूद का पौधा लगाने से पहले ऐसे खेत का चयन करें, जहां बारिश के समय पानी का जमाव नहीं होता हो। साथ ही खेत में राख, काली और भूरी मिट्टी का मिश्रण करें। पौधे लगाने के लिए जुलाई का मौसम बेहतर होता है। गर्मी के दिनों में पौधे रोपने से बचें। देसी और रासायनिक दोनों प्रकार के खाद का उपयोग कर सकते हैं।

पौधे लगाने से पहले ऐसे तैयार किया खेत

धनंजय कहते हैं कि मैंने अप्रैल के महीने में खेत की जुताई (पलटी प्लाऊ) कर एक महीने के लिए ऐसे ही छोड़ दिया। इसके बाद देसी खाद डाली गई और फिर बेड बनाने की प्रक्रिया शुरू की। 3 फीट चौड़े और 80 मीटर लंबे बेड बनाए गए। बेड की लंबाई भी सीमित रखी, ताकि हर पौधे को बराबर प्रेशर से पानी मिल सके। इसके बाद मल्चिंग (पॉलिथीन बिछाने की प्रक्रिया) की गई। वैसे बिना मल्चिंग के भी पौधे लगाए जा सकते हैं, लेकिन ऐसा करने पर कचरा बहुत उग जाता है। मल्चिंग करने के बाद 8-8 फीट की दूरी पर 10 इंच के गड्ढे किए गए। गड्ढे करने के बाद फिर महीने भर के लिए छोड़ दिया। गड्ढों में बाविस्टिन और डीकंपोज्ड खाद डाला। फिर पहली बारिश के बाद पौधे लगा दिए।

पहले साल फल आते ही तोड़ देना चाहिए
अमरूद का उत्पादन पहले साल ही शुरू हो जाता है, लेकिन फल लगने की शुरुआत होते ही उन्हें तोड़ देना चाहिए। क्योंकि पेड़ छोटा होता है, इसलिए अधिक भार नहीं पड़ने देना चाहिए। दूसरे वर्ष से उत्पादन लिया जाता है। इस वैरायटी का एक अमरूद आमतौर पर 300-350 ग्राम का होता है। कई अमरूद तो 500 ग्राम तक के होते हैं। एक पेड़ से 15-20 किलो तक उत्पादन रोजाना मिलता है। वैसे तो इसकी पैदावार सालभर होती है, लेकिन सर्दियों के मौसम की फसल ली जाती है। क्योंकि सर्दियों में लगने वाले अमरूदों का स्वाद अच्छा होता है। साथ ही इनका वजन भी ज्यादा होता है।

पेड़ों को अप्रेल में सुखा देते हैं
धनंजय कहते हैं कि एक बार के पौधे की उम्र लगभग 25 वर्ष होती है। हालांकि, हर वर्ष उत्पादन लेने के बाद इनकी कटिंग की जाती है। अप्रैल महीने में पेड़ों को बिना पानी के छोड़ देते हैं। पौधे को पूरी तरह सुखा दिया जाता है। इसके बाद पानी देते ही पौधे में कोपलें फूटने लगती हैं। आम धारणा यह है कि पेड़ के बड़े होने पर ही उसमें फल लगते हैं, लेकिन इस किस्म में छोटे से पौधे में ही काफी फल लगने लग जाते हैं। पेड़ों को 5-7 फीट ही बढ़ने दिया जाता है। एक पौधे पर 15-20 फल लग ही जाते हैं। इसके अलावा हर वर्ष गोबर की खाद पेड़ों में डाली जाती है।

75 रुपए किलो तक मिल जाते हैं दाम

धनंजय ने बताया कि फल को तीन ग्रेड में बांटा जाता है। सबसे अच्छी क्वालिटी के अमरूद को 15-20 किलो के कार्टून में पैक कर दिल्ली की आजाद मंडी में भेज दिया जाता है। यहां से विदेशों में एक्सपोर्ट किया जाता है। दूसरे ग्रेड के फलों को इंदौर, भोपाल, ग्वालियर भेजते हैं। वहीं तीसरे किस्म के फलों को स्थानीय बाजार में भेजा जाता है। लोकल मार्केट में भी इसकी डिमांड काफी रहती है। दिल्ली के मार्केट में एक किलो अमरूद के दाम 60-75 रुपए तक मिल जाते हैं। वहीं लोकल मंडी में यह 25-40 रुपए किलो तक मिलते हैं। दूसरे अमरूद के मुकाबले 5-7 रुपए किलो कीमत ज्यादा मिलती है। दिल्ली के जिस व्यापारी को अमरूद बेचते हैं, वह यूरोपियन और अफ्रीकन कंट्रीज में एक्सपोर्ट करता है।