हम रात की गश्त कर रहे थे। दरोगाजी (राजकुमार जाटव) को कहीं से काले हिरणों के शिकार किए जाने की जानकारी मिली। उन्होंने हमसे कहा- शहरोक जंगल चलना है। शहरोक पहुंचे तो दरोगा बोले- सगा बरखेड़ा रोड तरफ चलना है। हम लोग उधर चले गए। मेन रोड से गांव की सड़क पर पहुंच गए। हमारे चारों तरफ जंगल था। दरोगाजी बाइक पर थे और हम चार लोग फोर व्हीलर से थे। दरोगाजी ने कहा- मैं बाइक से आगे-आगे चल रहा हूं। जहां-जहां मैं बताऊं वहां चलो। कुछ आगे जाकर वह रुक गए। उनके कहने पर दो आरक्षक फोर व्हीलर से उतरकर नीचे खड़े हो गए।
रात के ढाई बज रहे होंगे, इतने में दूसरी तरफ से बदमाश आ गए। गोली चलना शुरू हो गईं। हम थोड़ी दूर खड़े थे। गोली की आवाज सुनकर कुछ आगे बढ़े तो कोई नहीं दिखा। हमलावर 8 से 10 की संख्या में थे। हम उनसे लगभग 300 फीट की दूरी पर थे। फायरिंग की बस आवाज आ रही थी। कुछ भी नहीं दिख रहा था। पता ही नहीं चल रहा था कि कहां से गोली चल रही है। बस आवाज आ रही थी। हमें संभलने का मौका ही नहीं मिला। समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें।
मैं गाड़ी चला रहा था, तो एक गोली मेरे हाथ में आकर लगी। एक गोली गाड़ी में लगकर मेरी पीठ में उसका छर्रा लगा। हाथ से खून निकल आया। हमने उन लोगों को भी देखा, लेकिन वो एक-दूसरे से आसपास नहीं दिखे। वो अलग-अलग जगह पर खड़े थे और गोलियां चलाए जा रहे थे।
मुझे प्रदीप भैया (आरक्षक) आरोन अस्पताल ले आए। मैं और प्रदीप भैया ही फोर व्हीलर में बैठे थे। बाकी लोग हमें नहीं दिखे, नहीं तो उन्हें भी ले आते। आरोन अस्पताल में प्रदीप भैया मुझे छोड़कर थाने चले गए। मैंने डॉक्टर से कहा कि एम्बुलेंस करा दो, ताकि गुना अस्पताल चले जाएं। लेकिन, एम्बुलेंस नहीं मिली। बाजार से एक प्राइवेट गाड़ी बुलवाई। उससे गुना जिला अस्पताल पहुंचे।
...जैसा कि इस वारदात में घायल हुए पुलिस टीम के ड्राइवर लखनगिरी गोस्वामी ने बताया
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