करीब पांच माह पहले बिहार के मधेपुरा जिले से भटककर गुना आ गए एक बुजुर्ग को अंतत उनका परिवार मिल गया। रविवार को उनके बेटे ट्रेन से उन्हें अपने साथ ले गए। बुजुर्ग की कहानी में जहां अस्पताल प्रबंधन की असंवेदनशीलता उजागर होती है, वहीं उम्मीद जगाने वाले कुछ किरदार भी सामने आते हैं। दरअसल 70 साल के शाेभाकांत दादा नामक यह वृद्ध 11 नवंबर को हादसे का शिकार हो गए थे।
उनके एक हाथ व दोनों पैर की हड्डियां बुरी तरह टूट गई थीं। एंबुलेंस से उन्हें अस्पताल लाया गया। यहां उन्हें मामूली मरहम पट्टी के बाद एक वार्ड के बाथरूम के पास बेसहारा छोड़ दिया गया। हाथ-पैर में पट्टा लगाना तो दूर, उनके टांके तक नहीं काटे गए।
दो तीन दिन पहले किसी ने उक्त वृद्ध की जानकारी सामाजिक कार्यकर्ता प्रमोद भार्गव को दी। इससे पहले करीब 200 लोगों को उनके परिवार से मिलवा चुके भार्गव ने बुजुर्ग के साथ लगातार चर्चा करके यह जानकारी हासिल कर ली कि वह मधेपुर जिला के बिसबाड़ी गांव के रहने वाले हैं।
इसके बाद उन्होंने वहां की पुलिस व प्रशासनिक सूत्रों से बुजुर्ग के परिवार का पता लगा लिया। शनिवार को उन्होंने बुजुर्ग की वीडियो कॉल के जरिए उनके बेटों से बात कराई। अपने पिता को देखकर बेटे बुरी तरह रोने लगे। वे तुरंत ही वहां से रवाना हो गए। रविवार सुबह 8.30 बजे उन्हें ट्रेन से पटना भेज दिया गया। वहां उनके पैरों का ऑपरेशन होगा। भार्गव ने बताया कि अस्पताल में वार्ड बॉय गोविंद नामदेव की वजह से बुजुर्ग इतने समय तक बचे रहे।
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