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मानव का स्वभाव रहा है कि वह मन की वक्रता वश दूसरों के राई समान दोष को भी दूरबीन से देखता है। और अपने दोषों को कभी देखना ही नहीं चाहता है। जो दूसरों के बजाय अपने दोषों को देखकर उन्हें दूर करता है वह इंसान आत्म साधक की श्रेणी में पहुंच जाता है। इसलिए दूसरों के दोषों को देखने की वजाए अपने दोषों को देखकर उन्हें दूर करने की कोशिश करो। अपने दोष देखने के लिए अपने मन की ओर झांकना होगा। यह बात जैन मुनि विहसंत सागर महाराज ने कही।
महावीर दिगंबर जैन मंदिर कस्टम रोड जवाहर गंज में धर्मसभा को संबोधित करते हुए रविवार को मुनि विहसंत सागर महाराज ने कहा कि आचार्य कुंदकुंद देव ने समयसार में कहा है कि निश्चय को पकड़ो। निश्चय से ही आपका कल्याण संभव है। जो अपना कल्याण चाहता है उसे कभी दूसरों में कमियां नहीं देखनी चाहिए। दूसरों क कमियां देखने में हम अपनी ईमानदारी को खो बैठते हैं। जैसे पानी और अग्नि के संबंध से पानी गर्म हो जाता है वैसे ही आत्मा और कषाय का निमित्त संबंध है।
इंसान को अपना कर्म ईमानदारी से करना चाहिए। बेईमानी से काम खराब होता है। मुनि विहसंत सागर के साथ मंच पर मुनिश्री विश्वसूर्य सागर महाराज एवं ऐलक विनियोग सागर महाराज मोजूद थे। इस दौरान जैन मंदिर में आयोजत धर्मसभा में शहर के सैकड़ों लोग मौजूद थे। धर्म सभा सुनने लोग प्रतिदिन आ रहे हैं। साथ ही महिलाएं भी आ रही हैं।
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