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शहर के प्रमुख तालाबों में शामिल लाला का ताल का पानी दिनों दिन गंदा होता जा रहा है। पूरे ताल में काई (चोई) फैल गई है और पानी हरा हो गया है। अब जानवरों के पीने लायक भी नहीं बचा है। पानी के गंदे होने से जलीय जीव जंतुओं खासकर मछलियों के लिए खतरा पैदा हो रहा है।
खास बात यह है कि दो साल पहले तालाब की छोटी-छोटी मछलियां बड़ी तादाद में मृत हो गई थीं और अब फिर से वही स्थिति पैदा होने की आशंका है। यह नहीं तालाब के गंदे पानी से महामारी का खतरा भी बढ़ गया है। नगर पालिका न तो तालाब को खाली करा रही है और न ही तालाब की साफ सफाई पर ध्यान है।
बता दें कि शहर में सीतासागर, करनसागर, नया ताल, राधा सागर, तरनताल, लाला का ताल प्रमुख तालाब हैं। इसके अलावा असनई, लक्ष्मन ताल और मुन्नी सेठ की तलैया भी है। इनमें से वर्तमान में सिर्फ असनई ताल और मुन्नी सेठ की तलैया ही ऐसे ताल बचे हैं जो साफ सुथरे हैं।
बांकी पूरे तालाब कचरे, गंदगी से गंदे हो चुके हैं। हाथ में पानी लेने पर खुजली होने लगती है। सीतासागर, करन सागर, नया ताल और तरनताल जलकुंभी से पटे पड़े हैं तो वहीं लाला के ताल में जलकुंभी नहीं है लेकिन पानी बांकी तालाबों से सबसे ज्यादा गंदा है। पानी हरा हो चुका है। हरे रंग की चोई पूरे तालाब को अपनी जकड़ में लिए हुए हैं। जबकि एक दशक पहले तक यह तालाब सबसे सुंदर तालाब था। गंदगी के कारण लोग इसके किनारे से निकलना तक पसंद नहीं करते हैं।
हड़ापहाड़ की तरफ बनी झोपड़ियों और महल के पीछे तालाब के अंदर कटीली झाड़ियां उग आई हैं। इन झाड़ियों की ओट में ही आसपास के लोग शौच करने जाते हैं। एक साल पहले नगर पालिका ने यहां गंदगी न फैलाने के लिए बोर्ड लगाया था और झाड़ झक्कड़ों की सफाई भी की थी लेकिन कुछ लोग जानबूझकर तालाब में कचरा फैलाने पर उतारू रहते हैं। ऐसे शरारती तत्वों की वजह से ही तालाब दिनों दिन गंदा होता जा रहा है।
जानें 3 कारण जिसके कारण तालाब का पानी हो रहा गंदा
कारण 1: शहर की आधी आबादी का गंदा पानी रिसाला मंदिर, रर के पास इमलीपुरा के रास्ते होते हुए सीधे तरनताल में पहुंचता है जिससे तरनताल का पानी गंदा हो गया और इसी तरनताल के जरिए पुलिया से निकलकर गंदा पानी लाला के ताल में पहुंचता है जिससे लाला का ताल का पानी गंदा हो गया है। तरनताल जलकुंभी की चपेट में है और अब जलकुंभी लाला के ताल में पहुंच रही है जिससे इस ताल में भी जलकुंभी फैल रही है।
कारण 2: वर्ष भर की दोनों नवरात्र में इस तालाब में जवारे विसर्जित किए जाते हैं। इसके अलावा मोहर्रम पर बुर्राकें और ताजिए भी इसी तालाब में ठंडे होते हैं। शारदीय नवरात्र में दुर्गा प्रतिमाएं और डोल ग्यारस पर गणेश प्रतिमाएं विसर्जित होती हैं। जिससे घास फूस इसी में सड़ते हैं। शहर भर के लोग इसी तालाब में पूजन सामग्री मय पॉलिथीन के फेंकते हैं। इसलिए भी तालाब का पानी गंदा हो रहा है। तालाब कभी खाली नहीं हुआ और इसी में जमा होता रहता है। इसलिए पानी हरा हो गया है।
कारण 3: कोरोना काल में सात महीने तक सब्जी मंडी हाथी खाना से हटाकर लाला के ताल पर ही लगाई गई। इन सात महीनों में करीब डेढ़ सौ थोक और फुटकर सब्जी विक्रेताओं ने लाला के ताल पर सब्जी की दुकानें सजाईं। कोरोना काल में जब सब्जियां कौड़ियों के भाव पर आ गई थीं तब व्यापारियों ने बची व सड़ीं सब्जियां तालाब में ही फेकीं। सात महीने तक लगातार खराब सड़ी हुईं सब्जियां तालाब में फेंकी गईं जिससे तालाब गंदा हो गया।
शहर का प्रमुख तालाब है लाला का ताल
लाला का ताल सतखंडा महला के ठीक पीछे बना है। चारों तरफ सड़क मार्ग है। पहाड़ी भी है इसलिए इस लिहाज से तालाब पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है। दो साल पहले तक शहर के अधिकांश लोग इसी ताल में स्नान करने आते थे। तालाब के किनारे बने घाटों बैठकर नहाते थे। तालाब पर वाटर स्पोर्टस भी बना है। प्रतिदिन सैकड़ों लोग तालाब के किनारे घूमने भी जाते हैं। सुबह और शाम के समय तालाब पर लोगों की चहल पहल ज्यादा रहती है। रात में तालाब किनारे लगीं लाइटें भी जलने लगती हैं। गर्मियों के मौसम में ज्यादा भीड़भाड़ देखी जाती है।
घाटों की तक सफाई नहीं करा सकी नपा
नपा जहां सीतासागर तालाब को सौंदर्यीकरण के लिए 14 करोड़ से अधिक की राशि खर्च करने की तैयारी में है तो वहीं लाला के ताल पर एक बार भी घाटों की सफाई नहीं कराई गई। जबकि नगर पालिका के पास सफाई कर्मचारियों का अमला भी है। घाटों की सफाई कराने भर से घाटों पर फैल रही दुर्गंध खत्म हो जाएगी। तरनताल से आ रहे गंदे पानी को रोकना भी आवश्यक है। इस नाले के रुकने से तालाब में गंदा पानी आना बंद हो जाएगा। बारिश में जब तालाब ओवरफ्लो होगा तो गंदा पानी निकल जाएगा। इसके बाद स्वच्छ पानी भर जाएगा।
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