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सनातन परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता-पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। मित्रता में जाति, पाति, ऊंचा-नीचा का कोई भेद नहीं होना चाहिए। जिस मित्रता में छल और कपट होता है, उसका अंत बहुत बुरा होता है। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता एक मिसाल है।
यह बात गुरुवार को लहार क्षेत्र के बिजौरा गांव के श्रीराम जानकी मंदिर में चल रही सात दिवसीय कथा में कथा वाचक नित्यानंद बापूजी ने कही। बापूजी ने बताया कि कहा कि भगवान जब भी धरा पर अत्याचार और पाप की वृद्धि होती है, अधर्म का नाश तथा भक्तों का उद्घार करने के लिए अवतार लेते हैं।
इसलिए हर युग में जब-जब भी भगवान ने अवतार लिया है तब असत्य पर सत्य की जीत हुई है। उन्होंने बताया भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पहले कंस के राज्य से प्रजा दुखी थी। कंस के पाप का घड़ा भरने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया। भगवान कृष्ण ने अवतार लेकर कंस का वध किया।
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