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टाउन हॉल में चल रही राम कथा में मंगलवार को चित्रकूट धाम से पधारे कमल किशोर दास (कान्हा जी) महाराज ने भगवान राम वनवास प्रसंग का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया। अयोध्या में राम के राजतिलक की तैयारी, कैकेयी के कोप भवन में प्रवेश, राजा दशरथ द्वारा उनकी मनुहार में तीन वरदान देते हुए श्रीराम को वनवास की आज्ञा देना, सीता, लक्ष्मण सहित राम का वन गमन और चित्रकूट में भरत मिलाप तक के बहाने रामायणकालीन पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनैतिक मूल्यों के प्रति कमल किशोर दास ने जागरुकता भरे संदेश दिए।
उन्होंने कथा आरंभ करते हुए कहा कि राम के वन-गमन एवं कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी हुईं थी। राजा दशरथ उन्हें समझा रहे थे। राम के निवास के बाहर भारी भीड़ थी। लक्ष्मण भी वहीं थे। महल में पहुंचकर राम ने पिता को प्रणाम किया। फिर पिता से पूछा, क्या मुझसे कोई अपराध हुआ है। कोई कुछ बोलता क्यों नहीं।
आप ही बताइए, माते। इस पर कैकयी बोली महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात वही दोनों वर मांगे, जिससे वे पीछे हट रहे हैं। यह शास्त्र-सम्मत नहीं है। रघुकुल की नीति के विरुद्ध है। कैकेयी ने बोलना जारी रखा, मैं चाहती हूं कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष वन में रहो। इस मार्मिक कथा को आचार्य कमल किशोर ने जब रामायण की पांति पढ़-पढ़कर सुनाया तो उपस्थित भक्तों की आंखों भी भर आई।
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