समस्या:अस्पताल में आइसोलेशन वार्ड नहीं, सामान्य के साथ भर्ती किए जा रहे टीबी के मरीज

मुरैना2 वर्ष पहले
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  • नर्सिंग सेंटर की जगह कामकाजी हॉस्टल भी नहीं बना

करोड़ों रुपए की लागत से बन रही नई बिल्डिंग में भी टीबी व फ्लू जैसे मरीजों को भर्ती करने के लिए सेपरेट आइसोलेशन वार्ड का इंतजाम नहीं है। नई बिल्डिंग का काम पूरा होने को है लेकिन अभी तक अस्पताल प्रबंधन से जुड़े अफसरों ने इस बात पर गौर ही नहीं किया।

हालात यह है कि स्वाइन फ्लू, चिकनगुनिया व अन्य फ्लू जो एक से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच सकते हैं, इनसे पीड़ित व्यक्तियों को भर्ती करने के लिए सिर्फ एक रूम रिजर्व कर रखा है। जब बीमारियां फैलती हैं तो इसी रूम के बाहर सिर्फ बोर्ड बदल दिया जाता है।

जिला अस्पताल में बनकर तैयार हो रही नई बिल्डिंग के साइड में डयूटी डॉक्टर व स्टाफ नर्स के लिए 18 आवास बनाए जाने हैं। लेकिन अभी इनका निर्माण शुरू नहीं हुआ है। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि नई बिल्डिंग के एक कॉर्नर में स्थित यही जगह आइसोलेशन वार्ड बनाने के लिए अनुकूल है। एक तो यह पूरी बिल्डिंग से अलग है, दूसरा बिल्डिंग के ड्रॉइंग-डिजाइन में बदलाव करना अब मुश्किल है। इसलिए इस सेपरेट जगह पर डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ के आवास के बजाय आइसोलेशन वार्ड बनाकर फ्लू व टीबी रोग से पीड़ित मरीजों को भर्ती किया जा सकता है। इससे सामान्य मरीजों के संक्रमित होने का खतरा भी नहीं रहेगा।

नई बिल्डिंग बनने के बाद भी मेडिकल वार्डों में रहेगी बेड की कमी

जिला अस्पताल में रोज 1200 लोग ओपीडी में पहुंचते हैं। इनमें से 300 से अधिक मरीज रोज भर्ती होते हैं। सबसे अधिक 60 प्रतिशत मरीज मेडिकल वार्ड के होते हैं।लेकिन मेल-फीमेल मेडिकल वार्ड के एक-एक कमरे कोविड आईसीयू व कोविड सेंटर में चले गए। इसकी वजह से सिर्फ एक-एक वार्ड में 40-40 पलंग बचे हुए हैं। इन्हीं पर मरीजों को भर्ती करने की सुविधा है। नई बिल्डिंग में मेटरनिटी, ट्रॉमा सेंटर जैसे वार्ड शिफ्ट हो भी जाएंगे। तब भी पुरानी बिल्डिंग में मेल-फीमेल वार्डों में पलंग की कमी रहेगी।

इधर, अस्पताल में 60 से अधिक डॉक्टर, एमडी-मेडिसिन के सिर्फ 3, तीसरी लहर की तैयारियां भी अधूरीं

जिला अस्पताल में यूं तो 60 से अधिक डॉक्टर पदस्थ हैं लेकिन एमडी मेडिसिन सिर्फ 3 हैं। डॉ. योगेश तिवारी, डॉ. राघवेंद्र यादव, डॉ. अंकुर गुप्ता। जबकि गर्मियों के सीजन में एमडी-मेडिसिन की ओपीडी में रोज 600 से 800 मरीज आते हैं। इसके अलावा कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर से निपटने की तैयारियां सिर्फ बैठकों तक सीमित हो गईं। तीसरी लहर में बच्चों के संक्रमित होने की आशंका को देखते हुए पल्स ऑक्सीमीटर, पैरामॉनीटर, सक्शन पंप सहित जो मेडिकल इक्विपमेंट की डिमांड भोपाल भेजी गई थी। उस पर न तो शासन ने अमल किया न स्थानीय अफसरों व कलेक्टर ने पत्राचार किया। ऐसे में जब तीसरी लहर में संक्रमण फैलने लगेगा, तब आनन-फानन में दूसरी लहर की तरह हालत बिगड़ जाएगी।