गांधीजी की हत्या का ग्वालियर कनेक्शन:​​​​​​​गोडसे ने 500 रु. में खरीदी थी पिस्तौल, सिंधिया महल के सामने सीखा था निशाना लगाना

ग्वालियर2 महीने पहले
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज (30 जनवरी) 75वीं पुण्यतिथि है। महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे का ग्वालियर से भी कनेक्शन रहा है। दरअसल, गांधीजी की हत्या में इस्तेमाल हुई पिस्तौल उस समय 500 रुपए में ग्वालियर से ही खरीदी गई थी।

गांधीजी की हत्या से पहले नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे 4 दिन तक ग्वालियर में ही ठहरे थे। यहां सिंधिया महल के सामने स्वर्ण रेखा नदी के सुनसान इलाके में नाथूराम और आप्टे ने पिस्तौल से गोली चलाना सीखा था। इसके बाद 29 जनवरी 1948 को गोडसे और आप्टे ट्रेन पकड़कर ग्वालियर से दिल्ली पहुंचे थे। 30 जनवरी को दोनों ने गांधीजी की हत्या कर दी थी।

हिंदू महासभा ने ही गोडसे को पिस्तौल दिलाई थी। बता दें कि हाल ही में गांधीजी की हत्या पर बनी फिल्म 'गांधी-गोडसे एक युद्ध' भी रिलीज हुई है। हिंदू महासभा का कहना है कि फिल्म में ग्वालियर का जिक्र कहीं नहीं है, पिस्तौल कहां से खरीदी? यह फिल्म में नहीं दिखाया गया है।

हत्या के बाद गांधीजी की पार्थिव देह। नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। (फाइल फोटो)
हत्या के बाद गांधीजी की पार्थिव देह। नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। (फाइल फोटो)

ग्वालियर में रची गई गांधीजी की हत्या की साजिश

30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला भवन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्रार्थना सभा से उठे थे, उसी दौरान नाथूराम गोडसे ने बापू के सीने को गोलियों से छलनी कर दिया था। यह हत्याकांड कोई एक दिन की प्लानिंग नहीं थी। गांधीजी की हत्या की साजिश आजादी मिलने के 7 दिन पहले से शुरू हो गई थी। एक बार अपने प्रयास में गोडसे विफल हो चुका था। इसलिए इस बार वह कोई मौका गंवाना नहीं चाहता था।

30 जनवरी 1948 से 4 दिन पहले नाथूराम गोडसे अपने प्रोफेसर साथी नारायण आप्टे के साथ ग्वालियर पहुंचा। यहां से दोनों दौलतगंज स्थित हिंदू महासभा के भवन पहुंचे। ग्वालियर में 4 दिन तक रुके। यहीं गांधीजी की हत्या की पूरी प्लानिंग की गई। यहां हिंदू महासभा के नेता डॉक्टर परचुरे और गंगाधर दंडवत ने उनकी मदद की।

इसी पिस्तौल से महात्मा गांधी की हत्या की गई थी।
इसी पिस्तौल से महात्मा गांधी की हत्या की गई थी।

शिंदे की छावनी पर नाश्ता, शाम को मूंगफली खाते थे

हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. जयवीर भारद्वाज की मानें तो गोडसे और नारायण आप्टे गांधीजी की हत्या से पहले ग्वालियर में ही रुके थे। यहां चार दिन तक उनकी दिनचर्या सामान्य थी। सुबह शिंदे की छावनी पर एक नाश्ता दुकान पर नाश्ता करते थे। दिन में हिंदू महासभा के एक नेता के यहां खाना खाते थे और शाम का उनका समय सड़कों पर टहलते हुए मूंगफली खाकर निकल जाता था।

ग्वालियर शुरू से ही हिंदू महासभा का गढ़ रहा है। गोडसे इसी का सदस्य था।
ग्वालियर शुरू से ही हिंदू महासभा का गढ़ रहा है। गोडसे इसी का सदस्य था।

स्वर्ण रेखा नदी किनारे पिस्तौल चलाना सीखा

नाथूराम गोडसे ने जिस पिस्तौल से बापू की हत्या की थी, उस पिस्तौल को ग्वालियर से 500 रुपए में खरीदा गया था। वह समय रियासत काल का था और उस वक्त आसानी से बिना लाइसेंस के पिस्तौल मिल जाती थी। अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयवीर भारद्वाज ने बताया कि इस पिस्तौल को चलाने के लिए नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे ने ग्वालियर में ही रुककर तीन दिन तक पूरी प्रैक्टिस की थी। वे दौलतगंज महासभा के भवन में ही ठहरे थे। सिंधिया के महल के सामने स्वर्ण रेखा नदी के पास यहां पिस्तौल को चलाना और सटीक निशाना लगाने की प्रैक्टिस की थी।

ग्वालियर से ही 29 जनवरी 1948 को पहुंचे थे दिल्ली

हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बताते हैं कि तीन दिन तक यहीं प्रैक्टिस करने के बाद गोडसे और आप्टे 29 जनवरी 1948 की सुबह ग्वालियर रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़कर दिल्ली के लिए रवाना हो गए। 28 जनवरी की रात को उन्हें मिशन को लेकर काफी बेचैनी हो रही थी। ढंग से नींद भी नहीं आई थी। रात को उन्होंने समय बिताने के लिए मूंगफली मंगाकर खाई थी।

ग्वालियर 1935 से हिंदू महासभा का गढ़ रहा है। यहां हिंदू महासभा गोडसे का मंदिर तक बना चुकी है।
ग्वालियर 1935 से हिंदू महासभा का गढ़ रहा है। यहां हिंदू महासभा गोडसे का मंदिर तक बना चुकी है।

1935 से हिंदू महासभा का गढ़ है ग्वालियर

ग्वालियर शुरू से ही हिंदू महासभा का गढ़ रहा है। मध्य भारत हिंदू महासभा का प्रमुख कार्यालय भी यहीं है। 1935 में वीर सावरकर ने यहीं अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना की थी। बापू की हत्या करने वाले गोडसे का भी ग्वालियर से गहरा नाता रहा है। ग्वालियर जब हिंदू महासभा का गढ़ बन ही रहा था, तब से नाथूराम गोडसे ग्वालियर आया-जाया करता था। 1947 में यहां के दफ्तर में नाथूराम गोडसे ने कुछ दिन भी बिताए थे। यहां हिंदू महासभा गोडसे का मंदिर तक बना चुकी है।

किताब में भी गांधीजी की हत्या का उल्लेख

महात्मा गांधी की हत्या की साजिश 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति से एक सप्ताह पहले ही रच ली गई थी। यह दावा एक किताब में किया गया है। इस किताब में हत्या के लिए इस्तेमाल की गई बेरेटा पिस्तौल और ग्वालियर के एक डॉक्टर दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे द्वारा इसकी व्यवस्था किए जाने सहित पूरी घटना का विवरण पेश किया गया है। अप्पू एस्थोस सुरेश और प्रियंका कोटमराजू द्वारा लिखी गई किताब ‘द मर्डरर, द मोनार्क एंड द फकीर: ए न्यू इन्वेस्टिगेशन ऑफ महात्मा गांधीज असैसिनेशन’ गांधीजी की हत्या की परिस्थितियों, इसके कारणों और इसके बाद की जांच आदि पर प्रकाश डालती है।

26 जनवरी को 'गांधी-गोडसे एक युद्ध' रिलीज हो चुकी है। निर्देशक राजकुमार संतोषी हैं। इसमें पहली बार महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का पक्ष भी सामने लाया गया है।
26 जनवरी को 'गांधी-गोडसे एक युद्ध' रिलीज हो चुकी है। निर्देशक राजकुमार संतोषी हैं। इसमें पहली बार महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का पक्ष भी सामने लाया गया है।

'गांधी-गोडसे एक युद्ध' फिल्म पर हिंदू महासभा को यह ऐतराज

हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. जयवीर भारद्वाज का कहना है कि 'गांधी गोडसे एक युद्ध' फिल्म से युवा गोडसे के विचारों को समझेंगे, लेकिन फिल्म में कई कमियां हैं। इसमें ग्वालियर का जिक्र नहीं है, जबकि ग्वालियर ही उनकी हत्या की साजिश का गढ़ था। हत्या में पिस्तौल कहां से खरीदी, यह भी नहीं है। गोडसे के साथ नारायण आप्टे भी बराबर हत्या में शामिल थे, लेकिन उनका उल्लेख उस स्तर पर नहीं है।

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महात्मा गांधी की आज यानी 30 जनवरी को 75वीं पुण्यतिथि है। आजादी के आंदोलन के महानायक महात्मा गांधी की अविभाजित मध्यप्रदेश से जुड़ी कई स्मृतियां हैं। साल 1918 से 1942 तक बापू के मध्यप्रदेश (तत्कालीन मध्य भारत) में नौ दौरे हुए। अहमदाबाद का साबरमती आश्रम छोड़ने के बाद महात्मा गांधी ने पुराने मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर के नजदीक वर्धा में अपना आश्रम बनाया था। गांधी जी का यह नया ठिकाना स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए देश की अघोषित राजधानी बना था। देश का पहला झंडा सत्याग्रह नागपुर में ही हुआ। जिसका नेतृत्व माखनलाल चतुर्वेदी ने किया था। वे झंडा सत्याग्रहियों का नेतृत्व करते हुए जबलपुर से नागपुर आए थे।​​​​​​​ पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें...