गुर्जर-प्रतिहार वंश के सबसे प्रतापी शासन सम्राट मिहिर भोज की जाति और नाम पटि्टका को लेकर हुए विवाद में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई है। कोर्ट ने संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में बनाई कई इतिहासकारों व प्रशासनिक अधिकारियों की टीम को रिपोर्ट पेश करने तीन महीने का समय दिया है।
पर उससे पहले गुर्जर समुदाय व क्षत्रिय महासभा की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं से कई सवाल भी किए। कोर्ट की युगलपीठ ने पूछा कि नाम पर विवाद क्यों होना चाहिए, जो नाम लिखा है, उसे लिखा रहने दिया जाए तो उसमें आपत्ति क्या है। वहीं दूसरी ओर क्षत्रिय महासभा की जनहित याचिका पर भी कोर्ट ने जवाब देने के लिए नगर निगम को समय दे दिया है।
ऐसे समझें क्या है पूरा विवाद
- 8 सितंबर को नगर निगम ग्वालियर ने शीतला माता मंदिर रोड चिरवाई नाका पर सम्राट मिहिर भोज महान की प्रतिमा का अनावरण किया था। अनावरण के साथ ही सम्राट मिहिर भोज पर विवाद शुरू हो गया है। नगर निगम ने प्रतिमा स्थापना के ठहराव प्रस्ताव लाते समय साफ उल्लेख किया था कि सम्राट मिहिर भोज नाम से प्रतिमा लगाई जाएगी, लेकिन जब प्रतिमा का अनावरण किया गया तो सम्राट मिहिर भोज के आगे गुर्जर सम्राट मिहिर भोज लिखा गया था। उनको गुर्जर सम्राट लिखने के साथ ही विवाद शुरू हो गया। इसको लेकर क्षत्रिय महासभा और आखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा ने सम्राट को लेकर अपने-अपने दावे पेश किए। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का तर्क है कि सम्राट मिहिरभोज महान राजपूत क्षत्रिय हैं। इसके संबंध में उन्होंने इतिहास कारों के लेख, शिलालेख व परिहार वंश के सबूत भी रखे हैं तो इसके जवाब में अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा ने भी तर्क रखा है और इतिहास में उन्हें गुर्जर सम्राट बताते हुए सबूत रखे हैं। पर यहां तक बात नहीं रही। इसके बाद शहर में सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक उपद्रव हुआ। यह उपद्रव ग्वालियर तक ही नहीं रहा पड़ोसी शहर मुरैना, भिंड व उत्तर प्रदेश के शहरों तक भी पहुंच गया। कानून व्यवस्था बिगड़ने पर एक सामान्य नागरिक ने मामले को हाईकोर्ट में जनहित याचिका में पेश किया। इसके बाद हाईकोर्ट ने एक जांच कमेटी सभांग आयुक्त की अध्यक्षता व आईजी ग्वालियर जोन की उपाध्यक्षता में बनाई। इसमें संबंधित क्षेत्र के SDM, दो हिस्ट्री के प्रोफेसर भी शामिल रहे हैं।
कमेटी को पेश करनी है रिपोर्ट
ग्वालियर के गोल पहाड़िया निवासी राहुल साहू ने सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा को लेकर उपजे विवाद को लेकर जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि दो समाजों के बीच प्रतिमा को लेकर विवाद हो रहा है। इससे शहर में ला एंड आर्डर की स्थिति बिगड़ रही है। इसके बाद कोर्ट ने 29 सितंबर 2021 को एक अंतरिम आदेश दिया था। संभागायुक्त की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। यह कमेटी सम्राट मिहिर भोज के संबंध में मौजूद शिलालेखों का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार कर रही है। जिन पक्षों को आपत्ति थी, उसको लेकर कोर्ट ने निर्देशित जो आपत्तियां है, उन्हें कमेटी के सामने रखा जाए। सोमवार को हुई सुनवाई को दौरान कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता से रिपोर्ट के संबंध में सवाल किया तो उन्होंने समय मांगा। कोर्ट ने तीन महीने का समय दे दिया।
क्षत्रिय महासभा का तर्क, चौराहों पर प्रतिमा लगाने का अधिकार नहीं
प्रतिमा विवाद को लेकर क्षत्रिण महासभा ने नई जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट की एक गाइड लाइन का हवाला दिया गया है। वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देशित किया था कि किसी भी सार्वजनिक जगह पर प्रतिमा नहीं लगाई जाएगी। इसकी निगरानी की जिम्मेदारी हाई कोर्ट को दी गई थी। सड़क व चौराहों पर प्रतिमाएं नहीं लगाई जा सकती हैं। इसलिए प्रतिमा को हटाया जाए। इस मालमे में नगर निगम को जवाब पेश करना है।
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