आज से ठीक 24 साल पहले। 8 जनवरी 1999 को पुलिस ने दुर्दांत डकैत रामबाबू गड़रिया का पहला एनकाउंटर किया था। पुलिस ने रामबाबू की डेडबॉडी का पोस्टमार्टम कराकर अंतिम संस्कार भी करा दिया। लेकिन चार महीने बाद रामबाबू गड़रिया के जिंदा होने की खबर मिली। खुलासा तब हुआ जब एक अपहृत शख्स उसकी गिरफ्त से रिहा होकर घर लौटा। दैनिक भास्कर ने इसकी पड़ताल की। पहले एनकाउंटर में गड़रिया नहीं तो कौन मारा गया, गड़रिया कैसे बना दुर्दांत डकैत? और क्या है उन तीनों एनकाउंटर का सच, पढ़िए ये रिपोर्ट...
ग्वालियर-चंबल के पुलिस रिकॉर्ड में टी-1। टारगेट-वन। यह पहचान है दुर्दांत डकैत रामबाबू गड़रिया की। सरकारी दस्तावेजों में पुलिस तीन बार रामबाबू का एनकाउंटर कर चुकी है। इनमें से दो बार के एनकाउंटर झूठे निकले। तीसरे एनकाउंटर के बाद से ग्वालियर-चंबल के बीहड़ में उसका मूवमेंट तो रुक गया, लेकिन उसकी मौत वाले एनकाउंटर पर अब भी सवाल उठ रहे हैं। इसकी वजह अप्रैल 2007 में मारे गए डकैत के चेहरे का मिलान रामबाबू गड़रिया के चेहरे से नहीं होना है। यह खुलासा हुआ है पुलिस की डकैत गड़रिया फाइल्स की पड़ताल में।
डकैत रामबाबू गड़रिया के बहनोई दयाराम ने बताया कि अप्रैल 2007 से पहले दो बार (जनवरी 1999 और जनवरी 2007) ग्वालियर और शिवपुरी पुलिस रामबाबू के एनकाउंटर में मारे जाने का दावा कर चुकी थी, लेकिन दोनों ही बार रामबाबू जिंदा निकला। जनवरी 1999 में थाना बैराड़ के टीआई अशोक तोमर और उनके साथियों ने रामबाबू के एनकाउंटर में मारे जाने की घोषणा की थी। सरकार ने इस एनकाउंटर के लिए बैराड़ थाना टीआई अशोक तोमर को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन भी दिया था।
इसके करीब 6 महीने बाद ग्वालियर के रिठोदन के जंगल में पुलिस की रामबाबू , गोपाल, प्रताप और दयाराम के साथ मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ के बाद चारों गड़रिया बंधुओं ने सरेंडर किया था। तब बैराड़ थाना टीआई अशोक तोमर के साथ हुई पुलिस मुठभेड़ में रामबाबू के मारे जाने का दावा झूठा साबित हुआ था। हालांकि इसके बाद मार्च 2001 में पेशी पर ले जाने के दौरान रामबाबू समेत चारों भाई पुलिस गिरफ्त से फरार हो गए थे।
जे हैई नईया …जेई है, चलो दाग लगाओ…
दयाराम गड़रिया ने बताया कि अप्रैल 2007 में पुलिस जिस दिन रामबाबू गड़रिया का एनकाउंटर करना बता रही है, उस दिन मैं शिवपुरी जेल से रिहा हुआ था। जेल के गेट से जैसे ही बाहर निकला, तभी वहां मौजूद पुलिस ने पकड़ लिया। गाड़ी में बैठाकर पुलिस शिवपुरी के कोतवाली थाना ले आई। यहां जेल से छूटते ही पकड़े जाने का कारण पूछा, तो वहां मौजूद पुलिस अफसरों ने चुप रहने को कहा।
शाम को अंधेरा होने लगा था, तभी पुलिस ने दोबारा गाड़ी में बैठा लिया। यहां से वह सीधे जंगल के रास्ते एक स्थान पर ले गए। यहां सफेद कपड़े में लिपटा एक शव रखा था। पुलिस ने उस कपड़े में लिपटे शव के चेहरे से थोड़ा सा कपड़ा हटाया। बैटरी से लाइट चेहरे पर डाली और कहा - पहचानो यह रामबाबू है।
उसी समय मैंने पुलिस को कहा- वो नहीं आ रओ पिचनाई (यह पहचान में नहीं आ रहा।) जे हैई नईया (वह नहीं है)। अरे , चलो। तुम तो दाग लगाओ। इस पर पुलिस ने कहा - अरे वही है। तुम तो चलो दाग लगाओ। बस उनका दाग लगा दिया। इसके बाद पुलिस मुझे मेरे घर छोड़ गई।
कैसे कहें कि रामबाबू मर गया…
बहन बोली- न हमने डेडबॉडी देखी, न शिनाख्त की
डकैत रामबाबू की बहन रामश्री कहती हैं कि रामबाबू की डेडबॉडी पुलिस ने नहीं दी। हमसे शिनाख्त भी नहीं कराई। पूछने पर डीएनए टेस्ट हुआ क्या? कहती हैं- हम तब जेल में थे। जेल में से हमारा ब्लड सैंपल लेकर गए थे। फिर हमें कोई जवाब नहीं दिया। न हमने शिनाख्त की। न हमें बताया। हम कैसे कह दें कि रामबाबू जिंदा है या मर गए। डीएनए रिपोर्ट में सैंपल मैच हुआ या नहीं? इस बारे में पुलिस ने भी अब तक कुछ भी नहीं बताया है।
रामश्री कहती है कि वैसे तो हर एक…कोई भी पकड़ हो जाए। कुछ भी हो जाए, बहनें, भैय्या, भानेज सब को धरके ले जाएं। जब मारे हैं, तो डेडबॉडी तो बताते न। कोई डेडबॉडी नहीं बताई। न ही कोई शिनाख्त कराई। यह आतंक जब से खत्म हुआ है, तब से हमें कुछ भी नहीं मालूम। जब रामबाबू, दयाराम फरार थे, तब 22 केस लगे थे, जो अब खत्म हो गए हैं।
हम ग्वालियर से 100 किलोमीटर दूर लखेश्वरी मंदिर पहुंचे। यहां रामबाबू आता-जाता रहता था...
रामबाबू-दयाराम जब घंटा चढ़ाने आए तो…
ग्वालियर से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित बेलगढ़ा गांव की पहाड़ी पर मां लखेश्वरी का मंदिर बना है। इस मंदिर के महंत शरणदास बताते हैं कि रामबाबू-दयाराम गड़रिया अपने 8 साथियों के साथ अप्रैल 2006 में लखेश्वरी मंदिर में घंटा चढ़ाने आए थे। उनके साथ गोपाल और प्रताप गड़रिया भी थे।
मंदिर में घंटा चढ़ाने से पहले चारों भाइयों ने एक-एक कर करीब 8 से 10 हवाई फायर किए थे। मंदिर पर यूं तो हमेशा पुलिस पार्टी रहती थी, लेकिन रामबाबू, दयाराम, प्रताप और गोपाल गड़रिया के आने के करीब 7 दिन पहले पुलिस पार्टी मंदिर छोड़कर चली गई थी। जो गड़रिया बंधु के मंदिर में घंटा चढ़ाए जाने के करीब 4 दिन बाद मंदिर पर पहरा देने लौटी थी।
रामबाबू का खौफ जिंदा रखना चाहता है बघेल-पाल समाज
मंदिर के महंत शरणदास ने बताया कि करीब 10-15 साल से मंदिर और उसके आसपास के जंगल में रामबाबू और दयाराम का मूवमेंट नहीं हुआ है, लेकिन बघेल-पाल समाज के लोगों के मन में अभी भी रामबाबू जिंदा है। इस समाज के लोग, जनता में रामबाबू का खौफ जिंदा रखना चाहते हैं।
अब रामबाबू को मारने का दावा करने वाले पुलिस अफसरों की सफाई भी जान लेते हैं
डेडबॉडी तो रिकवर की थी…लेकिन वो बाद में जिंदा निकला
8 जनवरी 1999 को पोहरी ब्लॉक के जंगल में डकैत रामबाबू गड़रिया का एनकाउंटर बैराड़ थाना प्रभारी अशोक सिंह तोमर, गोवर्धन थाना प्रभारी बीडी माहौर और SDOP पोहरी आरडी उनिया की टीम ने किया था। बैराड़ थाना पुलिस के तत्कालीन थाना प्रभारी अशोक सिंह तोमर ने बताया कि एनकाउंटर के बाद पोहरी के जंगल से एक शव को रिकवर किया था।
उसकी पहचान डकैत रामबाबू के रूप में उसी की बहन रामश्री ने की थी, लेकिन इस मुठभेड़ के करीब 4-5 महीने बाद डकैत रामबाबू ने अपने भाई दयाराम, गोपाल और प्रताप के साथ सरेंडर किया था। तब डकैत रामबाबू के जिंदा होने का खुलासा हुआ था, लेकिन 8 जनवरी को हुई मुठभेड़ में मारे गए व्यक्ति की पहचान पांच साल पहले तक नहीं हो सकी थी।
मुठभेड़ स्थल पर मिले साक्ष्यों के आधार पर बताया था रामबाबू का एनकाउंटर में मरना …
मप्र पुलिस के रिटायर्ड डीएसपी और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अशोक सिंह भदौरिया ने बताया कि जनवरी 2007 में डकैत रामबाबू से खोड़ के जंगल में मुठभेड़ हुई थी। गोली उसके गले में लगी थी, लेकिन उसकी डेडबॉडी नहीं मिली थी। मुठभेड़ स्थल पर मिले साक्ष्यों के आधार पर रामबाबू को जनवरी 2007 में हुए एनकाउंटर में मरना बताया था, लेकिन वह जीवित था। रामबाबू घायल हालत में भागने में सफल हो गया। रामबाबू के रिश्तेदार और परिजन ने उसका इलाज कराया था।
रामबाबू के जिंदा होने की खबर मिलने के बाद अप्रैल 2007 में उसकी दोबारा घेराबंदी की गई थी। इस दौरान शिवपुरी में रामबाबू से पुलिस की मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में लगी गोली से वह घटनास्थल पर ही ढेर हो गया। रामबाबू के शव की शिनाख्त परिजन से कराई थी। इसके बाद डकैत रामबाबू गड़रिया का आतंक खत्म हुआ।
22 साल बाद अकेला गांव लौटा हूं… परिवार को ग्वालियर में छोड़ा
ग्वालियर जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित हरसी डैम बना है। इसी डैम के एक किनारे पर बसा है डकैत रामबाबू, दयाराम गड़रिया का गांव हरसी। उन्हीं के परिवार के महाराज सिंह 22 साल बाद पिछले साल अपने गांव हरसी लौटे हैं। वह कहते हैं रामबाबू - दयाराम गड़रिया के खौफ के कारण 1999 में परिवार सहित गांव छोड़ दिया था। गांव में 4 बीघा जमीन थी, जो अब तक पड़ती डली हुई थी। अब उस जमीन पर फसल पैदा करने की कोशिश कर रहा हूं।
महाराज सिंह के मुताबिक वह अभी अकेले गांव लौटे हैं। परिवार में बेटा, बहू सहित सभी लोग हैं, लेकिन रामबाबू और दयाराम के खौफ के कारण कोई भी गांव नहीं लौटना चाहता। सभी अब ग्वालियर में रह रहे हैं। बकौल महाराज सिंह, रामबाबू और दयाराम गड़रिया के आंतक को खत्म हुए करीब 15 साल हो गए हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी का खौफ अब भी डरा देता है।
रामबाबू ऐसे बना डकैत...
रघुवर के साथ फरार हुए थे रामबाबू और दयाराम
महाराज सिंह ने बताया कि रघुवर गड़रिया, रामबाबू गड़रिया, दयाराम, गोपाल और प्रताप सभी से रिश्तेदारी थी। रामबाबू तो परिवार का सदस्य था, लेकिन 1998 में रघुवर की पत्नी को लेकर एक विवाद हुआ। इससे नाराज होकर रघुवर, रामबाबू और दयाराम एक रिश्तेदार की हत्या कर फरार हो गए। गांव में तनाव बढ़ गया। ग्वालियर के तत्कालीन एसपी प्रदीप रुनवाल ने गांव का दौरा किया। मेरे परिवार को पुलिस ने सुरक्षा देने 4 जवानों की तैनाती कर दी, लेकिन रघुवर, रामबाबू और दयाराम परिवार के एक और सदस्य की हत्या करने में सफल हो गए। इसके बाद परिवार सहित गांव छोड़कर ग्वालियर में रहने लगा। तब से मार्च 2021 तक ग्वालियर में रहा। बीते साल दोबारा अप्रैल में हरसी अकेला लौटा हूं। परिवार के सदस्य अभी भी गांव आने को तैयार नहीं हैं।
रामबाबू के नाम पर निर्दोष की हत्या…
कोर्ट ने तीन पुलिस अफसरों पर हत्या का केस दर्ज करने के निर्देश दिए
जनवरी 1999 में डकैत रामबाबू गड़रिया के एनकाउंटर के नाम पर निर्दोष व्यक्ति की हत्या के लिए शिवपुरी कोर्ट के जज एमआर कंसानिया ने तीन पुलिस अफसरों को दोषी माना था। साथ ही तत्कालीन SDOP पोहरी, गोवर्धन थाना प्रभारी और बैराड़ पुलिस थाना प्रभारी के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किए जाने का फैसला सुनाया था। मजिस्ट्रेट एमआर कंसानिया ने यह फैसला शिवपुरी के 10 वकीलों द्वारा लगाई गई याचिका पर सुनवाई के बाद दिया था। इस याचिका में वकीलों ने कोर्ट को बताया था कि रामबाबू गड़रिया और दयाराम गड़रिया जीवित है। 8 जनवरी 1999 को बैराड़ के जंगल में पुलिस ने डकैत रामबाबू के स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति को गोली मारी है। वकीलों के समूह के इस दावे की पुष्टि रामबाबू के एनकाउंटर से हुई थी।
ऐसे खुली डकैत रामबाबू के फर्जी एनकाउंटर की फाइल
शिवपुरी डिस्ट्रीक कोर्ट में डकैत रामबाबू गड़रिया के स्थान पर किसी निर्दोष की हत्या होने की याचिका वकीलों के समूह ने लगाई थी। इस याचिका में रामबाबू के जिंदा होने की जानकारी दी गई थी, लेकिन सबूत के नाम पर याचिकाकर्ता वकीलों ने कोई भी दस्तावेज कोर्ट में पेश नहीं किया था। इस पर मजिस्ट्रेट एमआर कंसानिया ने डकैत रामबाबू, दयाराम और उनके साथियों के सरेंडर करने पर पुलिस सुरक्षा देने का आश्वासन दिया गया था। कोर्ट की इस अपील पर डकैत गड़रिया बंधुओं ने ग्वालियर पुलिस की मौजूदगी में सरेंडर किया था।
डकैत गड़रिया की कैद से छूटे किसान ने वकीलों को दी थी रामबाबू के जिंदा होने की सूचना
कोर्ट में पुलिस एनकाउंटर के खिलाफ याचिका लगाने वाले वकीलों में शामिल एक सीनियर वकील ने बताया कि पुलिस रामबाबू गड़रिया को एनकाउंटर में मृत मानकर चल रही थी, लेकिन रामबाबू की पकड़ से छूटकर आए एक किसान ने वकीलों के ग्रुप को रामबाबू के जिंदा होने की जानकारी दी थी।
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