ग्वालियर में सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति स्थापना होने के साथ ही एक नया विवाद खड़ा हो गया है। सम्राट को अपने-अपने वंश और जाति का बताने के लिए दो समुदाय आमने-सामने आकर खड़े हो गए हैं। गुर्जर समुदाय का दावा है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर जाति के थे। इसलिए उनके द्वारा स्थापित राजवंश को गुर्जर-प्रतिहार वंश कहा जाता है। इस पर क्षत्रिय महासभा का दावा है कि एक समुदाय सम्राट पर जबरन कब्जा करना चाहता है। यह ऐतिहासिक चोरी है। इतिहास के साथ खिलवाड़ है। क्षत्रिय महासभा ने इस संबंध में एक ज्ञापन भी कलेक्टर ग्वालियर को सौंपा है।
इसमें सभी साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं, जिसमें सम्राट मिहिर भोज को प्रतिहार (परिहार) वंश का बताया गया है। इसके जवाब में अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा ने भी बुधवार को एक पत्रकार वार्ता कर इतिहासकार आचार्य वीरेन्द्र विक्रम के माध्यम से सम्राट को गुर्जर बताया है। फिलहाल तो यह विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है।
क्या है असली विवाद
पिछले सप्ताह नगर निगम ग्वालियर ने शीतला माता मंदिर रोड चिरवाई नाका पर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का वर्चुअल अनावरण किया था। अपने अनावरण के साथ ही सम्राट मिहिर भोज पर विवाद शुरू हो गया है। नगर निगम ने प्रतिमा स्थापना के ठहराव प्रस्ताव लाते समय साफ उल्लेख किया था कि सम्राट मिहिर भोज महान नाम से प्रतिमा लगाई जाएगी, लेकिन जब प्रतिमा का अनावरण किया गया तो सम्राट मिहिर भोज के आगे गुर्जर सम्राट मिहिर भोज महान लिखा गया था। उनको गुर्जर सम्राट लिखने के साथ ही विवाद शुरू हो गया है। क्षत्रिय महासभा का तर्क है कि सम्राट मिहिर भोज राजपूत क्षत्रिय हैं। इसके संबंध में उन्होंने इतिहास कारों के लेख, शिलालेख और परिहार वंश के सबूत भी भी रखे हैं तो इसके जवाब में अखिर भारतीय वीर गुर्जर महासभा ने भी तर्क रखा है। उन्होंने भी सबूत रखे हैं।
गुर्जर समाज का दावा
अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा की ओर से पूर्व पार्षद अल्बेल सिंह घुरैया ने इतिहासकार व आचार्य वीरेन्द्र विक्रम के माध्यम से दावा किया है कि सम्राट मिहिरभोज महान ने 53 साल अखंड भारत पर शासन किया। वह गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी शासक थे। उनको समकालीन शासक गुर्जर सम्राट नाम से ही जानते थे। उनके समकालीन शासकों राष्ट्रकूट और पालो ने अपने अभिलेखों में उनको गुर्जर कहकर ही संबोधित किया है । 851 ईसवी मे भारत भ्रमण पर आए अरब यात्री सुलेमान ने उनको गुर्जर राजा और उनके देश को गुर्जरदेश कहा है। सम्राट मिहिर भोज के पौत्र सम्राट महिपाल को कन्नड़ कवि पंप ने गुर्जर राजा लिखा है।
उन्होंने बताया कि प्रतिहारों को कदवाहा, राजोर, देवली, राधनपुर, करहाड़, सज्जन, नीलगुंड, बड़ौदा के शिलालेखों में, परमारो को घागसा के शिलालेख, तिलकमंजरी, सरस्वती कंठाभरण में, चालुक्यों को कीर्ति कौमुदी और पृथ्वीराज विजय में चौहानों को पृथ्वीराज विजय और यादवों के शिलालेखों में गुर्जर जाति का लिखा हुआ है। भारत के इतिहास में 1300 ईसवी से पहले राजपूत नाम की किसी भी जाति का कोई उल्लेख नहीं है। क्षत्रिय कोई जाति नहीं है। क्षत्रिय एक वर्ण है जिसमे जाट , गुर्जर , राजपूत अहीर (यादव ), मराठा आदि सभी जातियां आती हैं। उन्होंने बताया की हमारे सारे प्रमाण मूल लेखों, समकालीन साहित्य और शिलालेखों पर आधारित है। राजपूत समाज के इतिहासकार जब चाहे किसी भी टीवी चैनल पर डिबेट कर सकते है।
क्षत्रिय समाज का सम्राट पर दावा
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का कहना है कि चिरवाई नाका पर सम्राट मिहिरभोज महान की प्रतिमा स्थापित करने के लिए अध्यक्ष नगर निगम ग्वालियर में पारित ठहराव में कहीं भी गुर्जर शब्द का उल्लेख नहीं है, जबकि गुपचुप तरीके से 8 सितंबर 2021 वर्चुअल उद्घाटन कर गुर्जर शब्द प्रतिमा पर अंकित कर दिया गया। इस गुर्जर शब्द का शिलालेख में उल्लेख कर राजपूत क्षत्रिय प्रतिहार वंश के महाराजा को एक समुदाय विशेष ने ऐतिहासिक चोरी करने व तथ्यों को छुपाकर सामाजिक विद्वेष फैलाने का कार्य किया है।
क्षत्रिय महासभा ने कलेक्टर को दिए ज्ञापन में कहा कि राजपूत युग (शासन काल) भारत वर्ष के समस्त दस्तावेजों में 700 ईसवीं से 1200 ईसवीं तक रहा है। इसी दौरान सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार राजवंश का शासन काल 836 ईसवी से 885 ईसवी तक रहा है। उस समय राजस्थान या राजपूताना नाम का कोई राजनैतिक इकाई विद्यमान नहीं थी। संपूर्ण प्रदेश को गुर्जरजा "गुर्जर प्रदेश" नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र का स्वामी होने पर वह कालांतर में गुर्जर-प्रतिहार (गुर्जराधिपति) कहलाए। इसके संबंध में उन्होंने भारत वर्ष में आए विदेशी नागरिक, इतिहास के पन्नों को रखा है, जिसमें गुर्जर प्रतिहार वंश में गुर्जर का मतलब स्थान है न कि जाति से।
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