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चंबल की पहचान रखने वाले ग्राम जोटई का दंगल 117 साल से लगातार आयोजित होता रहा। अप्रैल माह में आयोजित होने वाले इस आयोजन में देशभर के पहलवान आकर अपने दांव-पेंच दिखाते थे लेकिन सौ साल से भी अधिक पुरानी परंपर को कोरोना के कहर ने तोड़ दिया। कोरोना के चलते वर्ष 2020 में और इस वर्ष 2021 में भी यह प्रसिद्ध दंगल नहीं लग पा रहा है। इसका इतिहास बेहद ही रोचक है। सन 1904 में ग्वालियर इलाके में अकाल पड़ा हुआ था। वहां से एक व्यापारी जो कि सरदार था ग्राम जोटई में आया और वहां उसने चौधरी जगन्नाथ सिंह के यहां आकर खाद्य सामग्री खरीदने की बात कही।
तब चौधरी ने उसे भंडारण की जगह पर रखी अरहर दिखाई। सरदार ने अरहर लेकर आपने हाथ से पीस कर कहा कि यह अरहर घुनी हुई है। तब चौधरी जगन्नाथ सिंह ने सरदार ने कहा कि तेरे पास पैसा कहां है। तब उस सरदार ने चांदी का रुपया दिया जिसे लेकर चौधरी ने अपने हाथ से तोड़कर कहा कि यह सिक्का नकली है। सरदार ने कहा कि इतने ही पहलवान हो तो गांव में दंगल क्यों नहीं लगवाते। तबसे चौधरी जगन्नाथ सिंह तोमर के द्वारा सन 1904 से ही दंगल शुरू कर दिया गया था जो होली के बाद नवमी के दिन लगता है।
तत्कालीन सांसद अर्गल ने कराया अखाड़े का निर्माण
स्थानीय लोगों के अनुसार इस दंगल के नियम अन्य दंगलों से अलग है। यहां पर विजेता को इनाम का 80% तथा हारे हुए को 20% राशि उपहार स्वरूप दी जाती है। यदि कुश्ती बराबरी पर छूटी तो दोनों पहलवानों के बीच राशि बराबर बांट दीजाती है। हर साल आयोजित होने वाले इस दंगल को देखने हर साल इलाके के सैकड़ों लोग आते थे। जो ऐतिहासिक था जिसमें शुरू से ही भीड़ ज्यादा होती थी। व्यवस्थाएं बनाने के लिए स्थानीय नागरिकों के आग्रह पर तत्कालीन सांसद अशोक अर्गल द्वारा इस दंगल के लिए अखाड़ा आयोजित करने एक चबूतरा बनवाया गया तथा ग्राम पंचायत ने भी कई विकास कार्य किए। यहां स्थति सरोवर को मिनी स्टेडियम का रूप दे दिया गया है जिसमें लोग कुश्ती का अभ्यास करते हैं।
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