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भगवान बिरसा मुंडा की 145वीं जयंती रविवार को मनाई गई। इस दौरान चमन चौराहे पर भगवान बिरसा मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।
मुख्य अतिथि शासकीय कन्या हाईस्कूल के प्राचार्य बीएल चौहान ने कहा कि बिरसा मुंडा ने अल्पायु में ही अंग्रेजों से लोहा लेते हुए उनके दांत खट्टे कर दिए थे। वे झारखंड के सच्चे सपूत एवं देश भक्त थे। बचपन में जब ईसाई मिशनरियों के स्कूल में अध्यापन के लिए जाया करते थे, तब वहां मिशनरियों ने उनका धर्म परिवर्तन कराना चाहा लेकिन उस षड्यंत्र को समझते हुए उन्होंने विरोध किया और विद्यालय को छोड़ दिया।
कालांतर में वैष्णव परंपरा को अपनाते हुए उन्होंने जनेऊ धारण किया। बिरसा मुंडा ने चेचक, हैजा, सांप काटना आदि को भगवान की देन नहीं है, ऐसा कहते हुए लोगों को इन रोगों से लड़ने के लिए उपाय बताए। उनके उपाय से लोग ठीक होने लगे। उसके बाद से लोग उन्हें भगवान मानने लगे।
प्रमुख वक्ता सेवाभारती के प्रदेश संघठन मंत्री रूपसिंह नागर ने कहा कि क्षेत्र में ब्रिटिश सरकार यहां के जनजातियों को जल, जंगल, जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करनी लगी तब बिरसा मुंडा ने आवाज उठाई, लोगों को संगठित किया और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस ली।
संख्या और संसाधन की कमी के कारण वे छापामार लड़ाई का सहारा लिया करते थे। ब्रिटिश सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा को पकड़ने में 500 रु. का इनाम रखा था। मध्यप्रदेश शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सोहनलाल परमार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महू जिला संघ संचालक प्रेमसिंह यादव, डॉ. संतोष रावत, जितेंद्र पटेल, सूरजसिंह बोड़ाना, डॉ. राजेंद्र चौहान, मोहनलाल गन्धरावलिया, डीएस बाथम, सुधीर चौहान, श्याम गोयल, संजय चेतवानी, भारत सेन आदि मौजूद रहे।
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