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बैतूल-अहमदाबाद हाइवे पर दो दिन से लगातार जाम लग रहा है। वाहन रेंग रहे हैं। 4 किलोमीटर का घाट पार करने में आधा से एक घंटा लग रहा है। रविवार को भी आर्मी का सामान लेकर जा रहे काफिले का एक ट्रेलर साईं मंदिर वाले मोड़ पर फंस गया।
लगातार जाम के कारण इस रूट पर चलने वाली बसें या तो छापरी वाले प्रधानमंत्री ग्रामीण रोड से गुजर रही हैं या राजगढ़ से पारा के रास्ते का उपयोग कर रही हैं। इन रास्तों पर अगर दुर्घटना होती है तो जिम्मेदार बस वाले रहेंगे या एनएचएआई वाले। बस वालों की मजबूरी है कि वो इन रास्तों से जाएं, लेकिन दुर्घटना के बाद क्लैम प्रकरणों में परमिट वाला रूट नहीं होने से परेशानी आएगी।
रविवार और सोमवार को माछलिया घाट के यू टर्न सहित, खाकरा पुलिया, डुंगलापानी के टर्न, भैरव बाबा मंदिर के पास वाले टर्न पर गाड़ियां फंस रही हैं। घाट के कुछ मोड़ को चौड़ा करने के बावजूद ये स्थिति बन रही है। सोमवार को पूरा दिन वाहन काफी धीमी गति से गुजरे। दरअसल नेशनल हाइवे बन चुके इस रोड को फोरलेन कर दिया गया, लेकिन 16 किलोमीटर का हिस्सा नहीं बन सका। इसमें माछलिया घाट सेक्शन भी शामिल है। जाम लगने की 10 वर्षों पुरानी है।
10 साल पुरानी है समस्या- 2010 में घोषित हुआ नेशनल हाइवे, लेकिन फोरलेन नहीं बना
नेशनल हाइवे अथॉरिटी ने 2010 में इंदौर से अहमदाबाद तक के मार्ग को एनएच घोषित कर निर्माण शुरू किया था। प्रदेश के हिस्से में इंदौर से लेकर पिटोल बॉर्डर तक का मार्ग आता है। गुजरात के हिस्से में गुजरात बॉर्डर से अहमदाबाद तक का रोड 5 साल पहले बनकर पूरा हो चुका है।
प्रदेश के हिस्से के 16 किलोमीटर का रोड 40 साल से ज्यादा पुराना है। ये तब डबल लेन था। हाईवे उस समय 1612 एलपी टर्बो 6 टायर व 18 फीट लंबे ट्रकों के हिसाब से घाट कटिंग कर बनाया गया था। अब इस पर 25 फीट लंबे ट्राले तक निकलते हैं। ये घाट के शार्प टर्न पर फंस जाते हैं। इन गाड़ियों को दोनों साइड कवर करके निकालना पड़ता है, जिससे बार-बार जाम की स्थिति बनती है।
समस्या है तो समाधान भी... ये कर सकते हैं
1. फोरलेन का अटका प्रोजेक्ट पूरा हो जाए
ये सबसे जरूरी है। कभी खरमोर एरिया के लिए फॉरेस्ट की अनुमति नहीं मिलने तो कभी बजट की कमी की वजह से ये नहीं हो पाया। माछलिया घाट पर फोरलेन बनाने के लिए 248 करोड़ की जरूरत है। फोरलेन बनाने वाली कंपनी के पास पैसा नहीं है और बैंक वाले भी नहीं दे रहे। ऐसे में जरूरी है कि केंद्र सरकार पैसा दे। बार-बार जनप्रतिनिधियों की कोशिशों के बावजूद ये पैसा नहीं मिला। अभी इसकी संभावना भी कम ही है।
2. बड़े वाहनों के टर्न होने जितनी जगह बनाई जाए
लेकिन ये हल परमानेंट नहीं होगा। आगे चलकर फोरलेन बनाना पड़ेगा। अभी फोरलेन बनने के बावजूद भी उम्मीद के मुताबिक यातायात नहीं है और पर्याप्त टोल भी जमा नहीं हो पा रहा। कारण बीच में 16 किमी टू लेन होने से कई गाड़ियां इस रास्ते पर नहीं आती। ये किया भी तो घाट में क्षतिग्रस्त हो रहे रास्तों को दुरुस्त करना पड़ेगा। साथ ही खाकरा पुलिया को नया और चौड़ा बनाना बेहद जरूरी है। इसके अलावा बड़े वाहनों टर्न होने जितनी जगह बनाना होगी।
पिछले दो साल में कब लगे लंबे जाम
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