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इसे जज्बा ही कहेंगे कि बेटे की हादसे में मौत के बाद दिव्यांग बहू और उसके दो छोटे बच्चों को पालने का जिम्मा 90 साल की महिला उठा रही है। वह तीन साल से बहू-पौते-पौतियों की सेवा करने में लगी है। वह रोजगार के लिए लोगों के घरों में काम करती है लेकिन उसकी इच्छा उसे यह काम रोज मिल सके ताकि वह पौते-पौतियों को पढ़ा भी सके।
बाग मोहल्ला निवासी 90 साल की रेशमबाई के बेटे बाबू चौधरी (40) की तीन साल पहले मजदूरी करने के दौरान एक निर्माणाधीन मकान से गिरकर मृत्यु हो गई। बाबू की बेटी तो उस समय गर्भ में ही थी। बेटे के जाते ही बूढ़ी मां, दिव्यांग पत्नी और बच्चों का जीवन मुश्किल हो गया क्योंकि बाबू की कमाई से ही घर चलता था।
जब कमाने वाला चला गया तो परेशानियां बढ़ती चली गई। इससे पार पाने के लिए रेशमबाई ने आसपास के घरों में गेहूं बीनने से लेकर घरों के छोटे-मोटे काम करना शुरू किया। कुछ मदद विधवा पेंशन और कंट्रोल से मिलन वाले राशन से हो जाती है। रेशमबाई कहती हैं कई बार काम नहीं मिल पाता है जिससे परेशानी होती है। मुझे मकान तो पीएम आवास योजना में मिल गया है। यदि काम लगातार मिलता रहे तो मैं पौते-पोतियों को पढ़ा सकूंगी।
बहू का इलाज करवाने भी सास ट्राइसिकल को धक्का देकर ले जाती है
दिव्यांग बहू शायरबाई का इलाज करवाने के लिए रेशमबाई ट्राइसिकल को धक्का देकर अस्पताल ले जाती है। कुछ लोग कर रहे हैं मदद : नगर परिषद के कर्मचारी विनय सक्सेना ने बताया रेशमबाई हिम्मतवाली हैं जो इस उम्र में काम कर परिवार को पाल रही है। मैं कभी आटे, दाल और तेल की मदद कर देता हूं लेकिन यह काफी कम है। लोगों को मदद के लिए आगे आना चाहिए। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रंजना सारंगे ने बताया बेटे की मौत के बाद घर का खर्च रेशमबाई के कंधों पर आ गया है। बच्चों को पौषण आहार मैं पहुंचाती हूं और साथ में कपड़ों की भी मदद का प्रयास करती हूं।
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