कोरोना की पहली लहर के दौरान लॉकडॉउन व कर्फ्यू के कारण इंदौर सहित मप्र के लाखों वर्कर्स ने यहां से पलायन किया था जिसके कारण पूरे उद्योग जगत की हालत चरमरा गई थी। तब छह महीने बाद जब स्थिति सामान्य हुई तो भी उनका मन इंदौर में वापसी के लिए नहीं माना रहा था। इस पर यहां के उद्योगपतियों ने भरोसा दिलाया और बसें भेजी तो वे फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ फिर से काम पर लौटे और सात माह में ही 80 फीसदी उद्योग उबर गए। यह आत्मविश्वास तब डगमगा गया जब अप्रैल-मई में कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण के पीक पर चली गई और कई मौतें होने लगी। इस बार स्थिति अलग थी क्योंकि दूसरी लहर खतरनाक होने के बावजूद न तो लॉकडॉउन था और न ही कर्फ्यू। ऐसे में उद्योगपतियों व वर्कर्स के पास ही एक हल था पूरी तरह से कोरोना प्रोटोकाल का पालन। बस यही फार्मूला उन्होंने अपनाया और एक तरह से खतरे के ढेर के बीच खड़े होकर काम करते रहे। इस तरह दूसरी लहर में उन्होंेने हौंसला बनाए रखा और अब 100 फीसदी उद्योग जहां उबर गए वहीं प्रोडक्शन कैपेसिटी भी काफी बढ़ गई है। आज बुधवार को एमएसएमई मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा इंदौर में है। एसोसिएशन ऑफ इण्डस्ट्रीज मप्र (एमआईएमपी) अपनी इस उपलब्धि के साथ उनसे अन्य मुद्दों पर भेंट करेगा।
पिछले साल कोरोना की पहली लहर में जब अचानक पूरे देशभर में 21 दिन का लॉकडॉउन लगा दिया था तो उस दौरान इंदौर और उसके आसपास के इण्स्ट्रीज में काम करने वाले लाखों वर्कर्स के सामने न केवल रोजगार का संकट हो गया बल्कि कड़ी धूप में भूखे-प्यास पैदल अपने गांवों की ओर पलायन करना पड़ा। कई महीनों तक वे वहां भी परेशानियां झेलते रहे। इसके बाद जब सितम्बर 2020 में हालात सामान्य होने लगे तो भी मन इंदौर वापसी के लिए मान नहीं रहा था। इस पर यहां के उद्योगपतियों ने उनके गांवों में बसें भेजी तो वे फिर पूरे आत्मविश्वास के साथ फिर से काम पर लौटे।
कोरोना को लेकर था काफी खौफ
औद्योगिक क्षेत्र में बीते सालों में यह पहला मौका था जब बड़ी तादाद में सालों से काम कर रहे वर्कर्स संक्रमण व लॉकडॉउन के कारण अपने-अपने गांव चले गए थे। इस दौरान कई महीनों तक यहां सांवेर रोड, पोलोग्राउण्ड, पालदा, पीथमपुर, देवास आदि सिर्फ फार्मा व फूड उद्योग ही चालू थे। इन इण्डस्ट्रीज में काम करने वाले कई वर्कर्स परिवार सहित जा चुके थे। तब अन्य इण्डस्ड्रीज भी काफी समय तक ठप ही रही। फिर जैसे-जैसे हालात सामान्य हुए व अन्य इण्डस्ट्रीज को संचालन की अनुमति दी गई लेकिन संकट मेन पॉवर का था कि वर्कर्स को कैसा लाया जाए या व्यवस्था करें। महीनों तक ठप पड़ी इण्डस्ट्रीज को तेजी से पटरी पर लाना भी जरूरी था। ऐसे में फिर से पुराने वर्करों को लाने के प्रयास किए गए। उन्हें फोन लगाए गए लेकिन वे आने को इसलिए तैयार नहीं हुए क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर कब आ जाए। इसके चलते उनके मन में संशय बना हुआ था।
गांव-गांव जाकर आत्मविश्वास जगाया
दूसरी ओर उद्योगपतियों के लिए स्थिति वैसी ही थी बंद हो चुकी मशीनों को चालू करना। हालांकि उनके सामने चुनौतियां ये थी थी कि कई महीने उद्योग बंद होने के बावजूद लाखों रु. के बिजली के बिल थोंपे गए थे। इसके बावजूद कंपनियों के कर्ताधर्ता व खास लोगों ने पुराने वर्कर्स फिर से भरोसे में लेने का एक तरह से अभियान चलाया। इसके तहत वर्कर्स के गांवों में बसें भेजी गई और साथ में कंपनी के कर्ताधर्ता भी पहुंचे। उन्हें विश्वास दिलाया कि अभी भी कंपनियां विपरीत परिस्थितियों में तुम्हारे साथ हैं। आप लोगों के कारण ही उद्योगों का उबर पाना ही संभव है। इस दौरान एक तरह से उनकी काउसंलिग की गई और उन्हें रोजगार के साथ अन्य मदद का भी भरोसा दिलाया।
ऐेसे किया जा रहा प्रोटोकाल का पालन
इस प्रयास से गति मिली और 80 फीसदी पुराने वर्कर्स फिर से काम पर लौट गए जबकि 20 फीसदी स्थानीय वर्कर्स रखकर प्रोडक्शन शुरू किया गया।
- कोरोना का संक्रमण न फैले इस कारण तीन शिफ्टों में काम शुरू किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे 80 फीसदी उद्योग पटरी पर आए गए।
- इसके बाद अप्रैल-मई में कोरोना की दूसरी लहर में भारी खौफ रहा। चूंकि मामला रोजगार व उद्योगों से जुड़ा था इसलिए इस बार पूरे कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कर काम किया गया। बिना मास्क प्रवेश पर सख्त बंदिश लगाई गई।
- सोशल डिस्टेसिंग के पालन के साथ सेनेटाइजर का उपयोग किया जा रहा है जिसके चलते अब 100 फीसदी उद्योग चल रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ इण्डस्ट्रीज मप्र (एआईएमपी) अध्यक्ष प्रमोद डफरिया का कहना है कि दूसरी लहर में स्थितियां एकदम अलग थी। वर्कर्स तब से पूरे प्रोटोकाल का पालन कर काम कर रहे हैं जिसके चलते आज 100 फीसदी उद्योग अच्छी स्थितियों में आ गए हैं।
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