‘जिन पेड़ों को मैंने बाल्टी से सींच कर बच्चों की तरह पाला-पोसा है। उन्हीं पेड़ों को आंखों के सामने कटते कैसे देख लूं। इन्हें बचाने आठ महीने तो क्या, पूरी जिंदगी भी गुजर जाए तो गम नहीं।’ यह आत्मविश्वास उस अन्नदाता का है, जिसने 30 पेड़ बचाने के लिए आठ महीने से दिन-रात एक कर रखे हैं। इंदौर से करीब 15 किमी दूर आक्या गांव के किसान कमल सिंह सोलंकी इन दिनों लगातार कलेक्टोरेट के चक्कर लगा रहे हैं।
इंदौर से हरदा के बीच नेशनल हाईवे एनएच 59ए बनने जा रहा है। 29 किमी लंबे हाईवे सात गांवों की करीब सौ हेक्टेयर जमीन आ रही है। इनमें कमल सिंह की जमीन भी शामिल है। खेत की जमीन देने में उन्हें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन पास में करीब सौ वर्गफीट एरिया को लेकर आपत्ति लगा दी है। करीब 15 लाख का मुआवजा भी लेने से इनकार कर दिया है। उनकी मांग है कि पेड़ बचाने के लिए या तो सड़क घुमा दिया जाए या फिर पेड़ ट्रांसप्लांट कराएं जाएं।
अफसरों के आने की खबर मिलते ही पेड़ों के आसपास घेरा बनाकर खड़े हो जाते हैं लोग
कमल बताते हैं इन 30 पेड़ों में पीपल का एक पेड़ 70 साल पुराना है, जो मेरे दादा ने लगाया था। इसकी आज भी हम पूजा करते हैं। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने यहां पारिजात, बेलपत्र, आंवला, आम, बादाम आिद के पेड़ लगाए हैं। गांव के सरपंच भेरूसिंह सिसौदिया कहते हैं कि हम सड़क और विकास के विरोध में नहीं हैं। बस पेड़ों को बचाया जाए। इसलिए जब भी गांव में अधिकारियों के सर्वे करने आने की बात पता चलती है तो सभी किसान इन पेड़ों के पास जमा हो जाते हैं।
पीएम, सीएम और मंत्री से भी लगाई गुहार
कमल सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कलेक्टर, मंत्री तुलसी सिलावट, उषा ठाकुर को भी पत्र लिखे हैं। मंत्री ठाकुर ने किसानों के पक्ष में नेशनल हाईवे अधिकारियों को पत्र लिखकर पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने का कहा है।
भू-अधिग्रहण अधिकारी एसडीएम रवीश श्रीवास्तव कहना है कि किसान ने आपत्ति लगाई है। हम मौके पर जाकर देखेंगे कि किस तरह इसे सुलझाएं। पेड़ों को बचाया जा सके और सड़क भी बन सके।
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