राजस्थान के बाद MP पहुंचा बर्ड फ्लू, अलर्ट:इंदौर के डेली कॉलेज में 83 कौवे मरे, कई में मिला एच5एन8 एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस

इंदौर2 वर्ष पहले
टीम ने जेसीबी की मदद से गड्‌ढा खोदकर मृत कौवों को दफनाया।
  • मृत पाए गए कौवों को 6 फीट गहरे गड्‌ढे में किया गया दफन
  • वेटरनरी विभाग के डॉक्टर और निगम की टीम ने मोर्चा संभाला

कोरोना वायरस के कहर के बीच बर्ड फ्लू का नया खतरा पैदा हो गया है। राजस्थान के बाद इंदौर के डेली कॉलेज में बड़ी संख्या में कौवे मृत पाए गए हैं। अब तक कॉलेज परिसर में 83 कौवे मर चुके हैं। इनमें से कई में वायरस का संक्रमण पाया गया है। हालांकि प्रारंभिक जानकारी अनुसार यह वर्ड फ्लू का टाइप तो है, लेकिन वह टाइप नहीं है, जो दूसरे को भी संक्रमित करे।

वेटरनरी विभाग के डॉक्टर और निगम की टीम ने मोर्चा संभाल लिया है। जांच के दौरान पाया गया कि कौवों की मौत एच5एन8 एवियन इन्फ्लूएंजा से हुई है। एच5एन1 से लेकर एच5एन5 टाइप तक वाला वायरस घातक बर्ड फ्लू होता है, जो एक पक्षी से दूसरे पक्षी में फैलता है। वर्तमान में जिस वायरस से कौवों की मौत हुई है, वह केवल कौवों तक ही सीमित है।

पीपीई किट पहनकर एक कर्मचारी ने मृत कौवों को एकत्रित किया।
पीपीई किट पहनकर एक कर्मचारी ने मृत कौवों को एकत्रित किया।

कौवों की मौत का मामला सामने आने के बाद शनिवार को वेटरनरी विभाग के डॉक्टर और निगम की टीम डेली कॉलेज पहुंची। कुछ कौवों की जांच में एच5एन8 एवियन इन्फ्लूएंजा का वायरस मिला है।

डेली कॉलेज में 29 दिसंबर को पहली बार कुछ कौवे मृत मिले थे। इसकी सूचना मिली तो स्वास्थ्य और पशु चिकित्सा विभाग के अफसर मौके पर पहुंचे। पशु चिकित्सा विभाग के उपसंचालक पीके शर्मा ने बताया कि मृत कौवों के सैंपल जांच के लिए भोपाल स्थित प्रयोगशाला भेजे गए थे। इधर, शुक्रवार को 20 कौवों की मौत के अगले दिन फिर से 13 कौवे मृत मिले।

पूरे परिवार को निगम की टीम ने सैनिटाइज किया।
पूरे परिवार को निगम की टीम ने सैनिटाइज किया।

6 फीट गड्ढा खोदकर दफनाया

वायरस से मृत कौवों को निगम की टीम ने पशु विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में शनिवार सुबह एकांत में दफनाया। यहां मौजूद एक कर्मचारी ने पीपीई कीट पहनाकर पहले मृत कौवों को एकत्रित किया। इसके बाद फिर उन्हें काली पॉलीथिन में भरा। इसके लिए पहले जेसीबी की मदद से 6 फीट का गड्ढा खोदा गया। इसके बाद सभी कौवों को गड्ढे में डालकर ऊपर से चूने की परत बिठाई गई। इसके बाद फिर मिट्टी डालकर उन्हें दबा दिया गया।

जनवरी-फरवरी में फैलती है कोराइजा
पशु चिकित्सक डॉ. देवेंद्र पोरवाल के मुताबिक, बर्ड फ्लू कोराइजा बीमारी का रूप है, जो पक्षियों, मुर्गियों की ऊपरी श्वास नलिका को प्रभावित करती है। इसे एक तरह का निमोनिया भी कह सकते हैं। ये आमतौर पर जनवरी-फरवरी में ही फैलती है। 7-8 साल पहले इसके मामले आने शुरू हुए थे। सबसे ज्यादा सतर्कता पोल्ट्री फॉर्म में बरतना होगी।