आपने विकलांग लोगों को नकली पैर लगाकर चलते देखा होगा, जिससे उनकी मुश्किल भरी जिंदगी थोड़ी आसान हो जाती है लेकिन इन नकली अंगों के निर्माण की भी दिलचस्प कहानी है। इन्हें बनाने में भारत के कल्चर का खासतौर से ध्यान रखा जाता है, ताकि इन्हें पहनने वाला व्यक्ति किसी भी धर्म का हो वह मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च में इन्हें पहनकर जा सके। उसे जूते पहनने की जरुरत न पड़े।
इंदौर के एमवाय अस्पताल में रविवार को समिति के नि:शुल्क कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण के लिए स्थायी केंद्र का शुभारंभ हुआ। मुख्य अतिथि मुख्य न्यायमूर्ति रवि मलिमठ थे। जयपुर फुट के नाम से ये कृत्रिम अंग लोगों के बीच प्रसिद्ध है।
श्री भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति जयपुर, जयपुर फुट के नाम से नकली पैर सहित अन्य कृत्रिम अंगों का निर्माण करती है। साल 1975 से समिति इन्हें बना रही है। विदेशों तक कृत्रिम अंगों की सप्लाय समिति करती है।
रबर से बनता है पंजा, ऊपर लगता है एचडीपीई पाईप
जयपुर फुट निर्माण समिति के सुपर वाईजर रंजन रसकर ने बताया कि पैर के लिए नकली पंजा रबर और अन्य मटेरियल से बनाया जाता है। इसे बॉयलर में अधिक तापमान पर गर्म करते हैं। पैर की साईज अनुसार बनी डाई में इसे आकार दिया जाता है। पंजे के बाद पैर के ऊपरी हिस्से का निर्माण के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस के पाउडर से लिक्विड तैयार कर मोल्ड किया जाता है। बेनडेज का इस्तेमाल करते है साथ ही खेती की सिंचाई के लिए उपयोग होने वाले एचडीपीई पाईप जिसे ऑर्डर देकर स्किन के कलर का बनाया जाता है, उसका इस्तेमाल होता है।
रबर का बना होता है, चप्पल-जूते के बगैर भी चल सकते हैं मंदिर भी जा सकते हैं
रंजन का कहना है कि हिंदुस्तान का कल्चर देखते है कि मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च जाते है वो नंगे पैर जाते हैं। इसे ध्यान में रखकर ही पैर को रबर का बनाया गया है। ये पैर इतने मजबूत होते हैं कि खेती-किसानी का काम भी कर सकता है। रंजन के अनुसार नकली पैरों की मदद से व्यक्ति ट्रक, साइकिल आदि सब चला सकता है।चलने-फिरने में उसे परेशानी नहीं होती है।
अब सरकारी केंद्र की हकीकत भी जान लीजिए
एमवाय अस्पताल में जयपुर फुट खोला गया है लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे पहले यहां कृत्रिम अंग तैयार नहीं हो रहे थे या फिर मरीजों को ये उपलब्ध नहीं थे। अस्पताल में पहले से कृत्रिम अंग आरोपण केंद्र मौजूद है, जो साल 1978 से यहां संचालित हो रहा है। यहां पैर का पंजा भारत सरकार के उपक्रम आर्टिफिशियल लिम्बस मेन्युफेक्चरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की मदद से सप्लाय होता है। इसका मुख्यालय कानपुर में है। यहां से डिमांड भेजी जाती है। इसके बाद वहां से उपलब्धता के आधार पर कृत्रिम अंग सप्लाय होते हैं। पंजे के बाद पैर के ऊपर हिस्से के निर्माण यही पर होता है।
सरकारी केंद्र पर ऐसे बनता है
एमवाय अस्पताल में पहले से स्थित केंद्र पर पंजे के ऊपरी हिस्से को पॉलिस्टर रेजिन की मदद से तैयार किया जाता है। इसमें दो केमिकल डाले जाते है, हार्डनर और केटलिस्ट। इनकी मात्रा 2 प्रतिशत रहती है। इसे शेप देने के लिए इंडस्ट्रियल ओवन में डाला जाता है। इन नकली पैरों को लेकर दावा किया जाता है कि ये 5 से 10 साल तक चल जाते हैं। ये भी मरीजों को नि:शुल्क ही उपलब्ध है। यदि किसी को बेचा जाता है तो कीमत चार-पांच हजार रुपए के आसपास रहती है।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.