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पाकिस्तान से आई मूक बधिर गीता जल्द ही महाराष्ट्र को अपना घर बना सकती है। अपनों की उसकी अंतहीन तलाश का सुखद अंत होने की आस जगी है। उसे रविवार सुबह अस्थायी रूप से परभणी भेजा गया है।
गीता वहां एक संस्थान में आत्मनिर्भर बनने का प्रशिक्षण लेगी। गीता के पुनर्वास में मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के विशेषज्ञों की भी मदद ली जा रही है। गौरतलब है कि गीता को 26 अक्टूबर 2015 को इंदौर लाया गया था।
पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज की पहल पर उसे पाकिस्तान से भारत लाया गया था। गीता को इंदौर के मूक-बधिर संगठन में अस्थायी आश्रय दिया था। गीता के माता-पिता मिलने तक उसे यहीं रहना था। 20 जुलाई को जिला प्रशासन ने गीता को इंदौर की ही दूसरी संस्था आनंद सर्विस सोसायटी को सौंपा था।
आनंद सर्विस सोसायटी के ज्ञानेंद्र पुरोहित ने बताया, परभणी के वाघमारे परिवार ने उसे अपनी बेटी होने का दावा किया है। उन्होंने उसके गुमने को लेकर जो तथ्य बताए हैं, वे काफी मिलते जुलते हैं, इसलिए जल्द ही परिवार और गीता का डीएनए मिलाया जाएगा। फिलहाल उसे वहीं आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जाएगी। इसमें परभणी के पहल फाउंडेशन ने उसकी मदद करने की सहमति जताई है।
पुनर्वास में टाटा इंस्टिट्यूट करेगा मदद
आनंद सर्विस सोसायटी की मोनिका पुरोहित ने बताया, गीता को विश्व स्वास्थ्य संगठन की कम्युनिटी बेस्ड रिहैबिलिटेशन तकनीक से पुनर्वासित किया जा रहा है। इसमें दिव्यांगों को धीरे-धीरे अपनी कम्युनिटी के नए लोगों के साथ मिलाया जाता है। मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस, समाज कार्य विभाग की प्रमुख डॉ. वैशाली कोल्हे की भी मदद ली जा रही है। गीता को रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3040 के मंडलाध्यक्ष गजेंद्र सिंह नारंग के साथ अन्य सदस्यों ने विदा किया।
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