इंदौर में क्रेटा कार चुराने वाली गैंग के मेंबर्स देशभर में एक्टिव हैं। राजेंद्रनगर इलाके से IT कंपनी के मालिक भरत आहूजा की कार चुराकर भाग रहे चोर श्रवण से पूछताछ में इसका खुलासा हुआ है। सरगना ने उसे 10 हजार रुपए कार ले जाने के लिए दिए थे। गैंग का सरगना गणपत विश्नोई है। उसके साथ सोहेल और बंशी भी कार चुराने इंदौर आए थे। गणपत के साथ एक और शख्स था पप्पू। बिहार का रहने वाला पप्पू ही वो शख्स है, जिसका इस वारदात में अहम रोल है। उसने ही कार के सिक्योरिटी सिस्टम को ब्रेक किया था। ड्राइवर को छोड़कर सभी फरार हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिर गैंग ने कैसे इस 14 लाख की कार के हाईटेक सिक्योरिटी सिस्टम को डिसेबल कर दिया? इससे पहले यह जान लीजिए कि इस तरह की कार में सेफ-स्मार्ट की (चाबी) और इंजन एक-दूसरे से एक सेफ्टी डिवाइस के जरिए कनेक्ट रहते हैं। कार के अंदर लगने वाला यह सेफ्टी डिवाइस सिस्टम फ्रीक्वेंसी (तरंगों) पर काम करता है। स्मार्ट-की में एक बटन होता है। इसे दबाते ही कार के अंदर लगी डिवाइस और स्मार्ट-की में समान कोड जेनरेट होता है। कोड मैच होते ही कार अनलॉक हो जाती है। खास बात यह है कि सिस्टम हर बार नया कोड जेनरेट करता है। मान लीजिए आपने पहली दफा कार अनलॉक की, तो कोड 11 जेनरेट होगा, दोबारा खोलने पर 12 होगा... इसी तरह क्रम चलता रहता है।
हाईटेक सिक्योरिटी के बाद भी चोर कार कैसे चुरा ले गए, आइए, समझते हैं ...
जैमर डिवाइस से घटाया फ्रीक्वेंसी का दायरा
जैमर डिवाइस एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होता है। यह सिग्नल, नेटवर्क और फ्रीक्वेंसी को ब्लॉक कर देता है। ठीक वैसे ही, जैसे कुछ प्रतिबंधित क्षेत्रों में मोबाइल जैमर लगा होता है। ऐसे इलाकों में हमारे मोबाइल में नेटवर्क नहीं आते।
सबसे पहले चोरों ने किया यह कि जैमर की मदद से कार के अंदर लगी डिवाइस की फ्रीक्वेंसी कम कर दी। यानी इसका दायरा घटा दिया। इसके बाद जैमर में लगी चिप की मदद से कार डिवाइस को कोड भेजा। कार डिवाइस ने भी सेफ्टी-की को कोड भेजा, लेकिन चूंकि चोर फ्रीक्वेंसी पहले से ही ब्लॉक कर चुके थे, तो ये कोड-सेफ्टी की तक पहुंचा ही नहीं।
अब चोरों ने एम्प्लीफायर की मदद ली। यह एम्प्लीफायर लैपटॉप से कनेक्ट था। एम्प्लीफायर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है, जो सिग्नल को कैच कर इसकी स्ट्रैन्थ को बढ़ाकर आगे ट्रांसफर करता है। एम्प्लीफायर ने कार डिवाइस की फ्रीक्वेंसी कैच कर लैपटॉप में इंस्टॉल सॉफ्टवेयर तक ट्रांस्फर की। सॉफ्टवेयर में कोड शो हो गया। इसके बाद चोर जैमर पर लगी चिप की मदद से यही कोड कार के डिवाइस से मैच कराकर कोड तोड़ देते हैं। यह काम चंद मिनट में हो जाता है।
कार कंपनी से दो कदम आगे चोर
साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक पहले गाड़ियों में सेंट्रल लॉकिंग सिस्टम आता था। इसका चोरों ने तोड़ निकाला, तो कंपनी ने स्मार्ट की पर काम करना शुरू किया, लेकिन हैकर्स ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। इस तरह के जैमर डिवाइस इंजीनियर्स तैयार कर लेते हैं। पहले इस तरह के डिवाइस ऑनलाइन भी बिकना शुरू हो गए थे। इन पर अब रोक लगा दी गई है। कार कंपनियों के अधिकारियों के मुताबिक उनके पास सामान्य कार की चाबी के लिए भी कोई कस्टमर आता है, तो कार का कोड हासिल कर चाबी तैयार करने में दो दिन का समय लग जाता है। लेकिन, यहां चोरो ने 5 मिनट में इसे डिसकनेक्ट करने की तकनीक निकाल ली है।
ये छोटी सी टिप बचाएगी आपकी कार
इस मामले में सायबर सेल के एसपी जितेन्द्रसिंह बताया कि इस तरह के सॉफ्टवेयर भारत में मिलना मुश्किल है। सोशल साइट्स के माध्यम से इसे बनाने और खरीदने के मामले हो सकते हैं। ऐसे मामलों से अपने वाहनों को सुरक्षित रखने के लिए चॉबी को लेदर कवर में रखें। सिल्वर फाइल जैसी चीजों के रखने के साथ फिक्वैंसी जैसी चीजों से दूर रखने की बात कही है। ऐसे में चोरों के उपकरण उस तक नहीं पहुंच पाते, ऐसी स्थिति में काफी हद तक अपनी कार को बचाया जा सकता है। एसपी के मुताबिक जिलेटिन और लेदर के अंदर भी फिक्वैंसी नहीं पहुंच पाती है।
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