सफाई की रैंकिंग के लिए इस बार नए मानकों में वायु गुणवत्ता को भी जोड़ा है। इसके लिए इंडस्ट्री को भी कोयले की जगह इंडस्ट्रियल गैस पर शिफ्ट होने के लिए कहा है, लेकिन उद्योगों को इससे लागत बढ़ने की चिंता सताने लगी है। क्योंकि पूरे देश में सबसे मंहगी इंडस्ट्रियल गैस मप्र में ही मिलती है। यहां 14% वैट लगता है, जबकि अन्य राज्यों में जीएसटी लागू होने के बाद इसे 14 से घटाकर 3 से 5% कर दिया गया।
इंदौर में यह गैस 42.8 रु. स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर पड़ती है। अन्य राज्यों में 35 से 40 रुपए के भाव हैं। मप्र में गैस गुजरात से आती है। गुजरात सरकार इस सप्लाय पर 14% वैट लेती। मप्र का 14% मिलाकर दोहरा टैक्स लगता है। वहीं, इंदौर रीजन में गैस सप्लाय का कॉन्ट्रेक्ट अवंतिका गैस के पास है। यह गेल की सप्लाय से करीब 70 पैसे महंगी पड़ती है। जबकि देवास में यह सस्ती है, क्योंकि वहां गेल की सीधी सप्लाय है।
रीजन में 2500 इंडस्ट्री; 450 ही कर रही इस गैस का उपयोग
इंदौर रीजन में ढाई हजार से ज्यादा इंडस्ट्री हैं, लेकिन करीब 450 में ही गैस सप्लाय हो रही है। बाकी कोयला और फर्निश्ड कोल पर चलती हैं, क्योंकि ये सस्ते पड़ते हैं। हालांकि गुणवत्ता के हिसाब से गैस अधिक उपयोगी है। जगह घेरने वाले वायलर लगाने की जरूरत भी नहीं पड़ती, लेकिन टैक्स और कीमत के चलते उद्योगपति इससे दूरी बना रहे हैं।
एक मिल में लगाएंगे गैस भट्टी, आकलन के बाद सभी जगह करेंगे शुरू
रोलिंग मिल एसो. के अध्यक्ष सतीश मित्तल कहते हैं कि अच्छे पर्यावरण के लिए हम सभी गैस अपनाने को तैयार हैं। इसके लिए एक मिल में जल्द भट्टी गैस पर ही लगाएंगे। इसकी लागत का अध्ययन करेंगे। सफल होने पर सभी जगह शुरू करेंगे। वहीं, सीआईआई के वेस्टर्न रीजन डिप्टी चेयरमैन सुनील चौरड़िया कहते हैं कि सरकार गैस पर टैक्स कम करें या इसे जीएसटी में लाए।
गैस को जीएसटी में लाएं तो मिलेगी राहत
इस गैस का सबसे पहले उपयोग करने वाले केबल उद्योगपति दिलीप देव कहते हैं कि गैस के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। टैक्स अधिक है। जीएसटी में यदि इसे ला दें तो उद्योगपतियों को इनपुट क्रेडिट मिलेगी। इससे उत्पादों की लागत में बहुत अंतर होगा। इसकी गुणवत्ता बेहतर होती है और कोई शंका भी नहीं रहती। सरकार के पास टैक्स को लेकर हम प्रेजेंटेशन दे चुके हैं।
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