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ट्रैफिक की बदहाली का एक प्रमुख कारण ट्रैफिक सिग्नल में गड़बड़ी भी है। शहर में 29 चौराहे ऐसे हैं, जहां 14 साल पुराने सिग्नल लगे हैं। इनमें कई सिग्नल में लाइट तक नहीं है।
22 चौराहे ऐसे हैं, जहां टाइमर ही नहीं लगे हैं। ट्रैफिक कंट्रोल के लिए कुछ चौराहों पर शुरू किया गया सिंक्रोनाइज सिग्नल सिस्टम भी फेल हो गया है। हमारे ट्रैफिक अफसरों को रेलवे के सिग्नल सिस्टम से सीख लेना चाहिए। वहां महज 10 सेकंड में कंट्रोल रूम में मैसेज पहुंचता है और 15 मिनट में सुधार शुरू हो जाता है।
इन चौराहों पर टाइमर नहीं लगे, इसलिए यहां बिगड़ता है ट्रैफिक
यशवंत रोड, मालगंज, एयरपोर्ट, कालानी नगर, बड़ा गणपति, मल्हारगंज, नंदलालपुरा, नृसिंह बाजार चौराहा और पूर्वी क्षेत्र में पूरे बीआरटीएस के 14 चौराहों में से कहीं पर भी टाइमर नहीं लगे हैं। वाहन चालकों को यही पता नहीं चलता कि सिग्नल कब रेड या ग्रीन होगा।
मेंटेनेंस भी फेल, कई जगह ऐसे सिग्नल कि दिखते ही नहीं हैं
एमजी रोड थाने से जेल रोड और शास्त्री ब्रिज तक के मार्ग के कई ट्रैफिक सिग्नल पर कई बार समझ ही नहीं आता कि वे रेड हैं या ग्रीन। एक बार रीगल तिराहा के सिग्नल खराब हुए तो सुधारे गए, लेकिन बाकी स्थानों के सिग्नल पर ध्यान नहीं है।
एक्सपर्ट : शहर में टाइमर लगे सिग्नल की जरूरत
ट्रैफिक एक्सपर्ट प्रफुल्ल जोशी बताते हैं सिंक्रोनाइज सिस्टम हर बार फेल साबित हुआ है। ट्रैफिक सुचारु रखने के लिए सिग्नल पर टाइमर होना जरूरी है। सिंक्रोनाइज सिस्टम उसी मार्ग पर काम कर सकता है, जहां चौराहे के सिग्नल में डेढ़ से दो किलोमीटर की दूरी हो और ट्रैफिक का फ्लो एक ही दिशा में रहे। हमारे यहां हर प्रमुख मार्ग पर आधा किमी में एक चौराहा आता है, जिसमें चारों ओर से ट्रैफिक चलता है। ऐसे में यहां टाइमर सिस्टम ज्यादा बेहतर है। बीआरटीएस पर भी यह सिस्टम लागू हो तो काफी हद तक ट्रैफिक सुधर सकता है।
रेलवे से सीखें- 10 सेकंड में कंट्रोल रूम में मैसेज पहुंचता, 15 मिनट में सुधार शुरू हो जाता
इंजीनियर शशांक शर्मा बताते हैं कि रेलवे सिग्नल की मॉनिटरिंग कम से कम पांच लेवल पर होती है। सिस्टम इतना हाईटेक है कि जैसे ही किसी सिग्नल में खराबी आती है, उसका अलार्म नजदीक के रेलवे स्टेशन, डिवीजन ऑफिस, जोन और मुख्यालय की तकनीकी शाखा तक पहुंच जाता है। यह सिर्फ 10 सेकंड में होता है और रेलवे की टीम कहीं भी गड़बड़ी हो, 15 मिनट में वहां पहुंचकर सुधार शुरू कर देती है। इसमें किसी चूक की कोई गुंजाइश नहीं होती।
सीधी बात: प्रमोद आगले, सिग्नल मेंटेनेंस करने वाली कंपनी इलेक्ट्रो एड्स के संचालक
कई प्रमुख चौराहों पर सिग्नल दिखते भी नहीं कि रेड हैं या ग्रीन इससे काफी गड़बड़ी होती है।
- बीआरटीएस कॉरिडोर को छोड़कर शहर के 29 चौराहों के सिग्नल 2007 से लगे हैं। कुछ जंक्शन पॉइंट पर ट्रैफिक की समस्या जरूर है। टेंडर नहीं होने से सिग्नल का मेंटेनेंस अटका है। इसे जल्द दुरुस्त करेंगे।
चौराहों पर कई बार सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन के प्रयास हुए, लेकिन फेल रहे। क्यों?
- सिग्नल सिंक्रोनाइजेशन सिस्टम का टेंडर 100 करोड़ का है, जो अभी तक पास नहीं हो पाया है। कुछ जंक्शन पर प्रयोग किया था। लेन सिस्टम फॉलो नहीं करने से ये सिस्टम कारगर नहीं रहा।
बीआरटीएस के चौराहों पर टाइमर नहीं। पूरे कॉरिडोर पर ट्रैफिक जाम होता रहता है।
- बीआरटीएस के हर चौराहे पर सेंसर लगे हैं। कई बार चौराहे की एक लेन में ट्रैफिक कम होने पर ये सिग्नल अपने आप ही बीआरटीएस बसों को दो से तीन बार ग्रीन सिग्नल दे देते हैं। यहां ट्रैफिक दबाव से सिग्नल चलते हैं।
इन पर भी एक नजर...
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